मुंबई। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर में गिरावट को लेकर छिड़ी बहस के बीच भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर डॉ शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय मुद्रा की स्थिति विभिन्न उन्नत देशों और उभरते बाजारों वाली अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं की तुलना में अच्छी स्थिति में है।
श्री दास ने कहा कि कर्ज महंगा करने की केंद्रीय बैंकों की नीति, भू-राजनैतिक परिस्थितियों, कच्चे तेल और अन्य जिंसों की कीमतों में तेजी और महामारी का असर पूरी दुनिया पर छाया हुआ है। जापानी येन, यूरो और ब्रिटेन का पाउंड स्टरलिंग भी इससे अछूता नहीं हैं। आरबीआई गवर्नर आज मुंबई में बैंक ऑफ बड़ौदा बैंकिंग सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि वैश्विक अनिश्चितताओं के चलते पोर्टफोलियो निवेशक संपत्ति बेचकर उसे सुरक्षित ठिकानों में लगा रहे हैं। उन्होंने कहा,“ उभरते देशों की अर्थव्यवस्थाएं पूंजी के प्रवाह, मुद्राओं की विनिमय दर में गिरावट, आरक्षित मुद्रा भंडार में कमी से विशेष रूप से प्रभावित हुयी हैं, जिससे इन देशों में वृहद आर्थिक प्रबंध ज्यादा उलझ गया है। ”
गौरतलब है कि इस सप्ताह अमेरिकी डॉलर की दर 80 रुपये को पार कर गयी और बाजार विश्लेषकों का अनुमान है कि आने वाले महीनों में रुपया डॉलर के मुकाबले 82 तक हल्का पड़ सकता है।
डॉ दास ने कहा कि वैश्विक परिस्थतियों का भारत की मुद्रा पर प्रभाव अपेक्षाकृत हल्का है। उन्होंने कहा कि इसका मुख्य कारण है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत और अखंडित है। अर्थव्यवस्था की गतिविधियां धीरे-धीरे सुधर रही हैं। चालू खाते का घाटा हल्का है, मुद्रास्फीति में भी स्थिरता आ रही है तथा भारत के वित्तीय बाजार का पूंजीगत आधार मजबूत है।
आरबीआई प्रमुख ने कहा कि भारत के विदेशी ऋण का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के साथ अनुपात कम हो रहा है तथा देश का विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त है।
उन्होंने कहा कि आरबीआई बाजार में विदेशी मुद्रा का प्रवाह पर्याप्त स्तर पर बनाए रखने के लिए डॉलर की आपूर्ति बनाए हुए है।
आरबीआई गवर्नर ने कहा,' कुल मिलाकर इसी दिन के लिए हमने उस समय विदेशी मुद्रा का भंडार खड़ा किया था, जब देश में विदेशी पूंजी का प्रवाह तेजी से हो रहा था।'
श्री दास ने कहा कि भारत ने विदेशों से जो वाणिज्यिक कर्ज ले रखे हैं, उसके बड़े हिस्से को विदेशी विनिमय दर में उतार-चढ़ाव के जोखिमों से सुरक्षित रखने की गयी है। इसी संदर्भ में उन्होंने बताया कि 180 अरब डॉलर के विदेशी वाणिज्य कर का 44 प्रतिशत 79 अरब डॉलर के कर्ज के लिए हेजिंग (वायदा और विकल्प के बाजार में सुरक्षा के अनुबंध) नहीं किए गए हैं। विनिमय दर में उतार चढ़ाव से असुरक्षित विदेशी वाणिज्यिक ऋणों में 40 अरब डॉलर का ऋण पेट्रोलियम, रेलवे, बिजली क्षेत्र की कंपनियों द्वारा लिया गया ऋण है। इन कंपनियों के पास ऐसी संपत्तियां हैं जो स्वाभाविक रूप से विनिमय दर जोखिम के खिलाफ बाड़ का काम करती हैं। उन्होंने कहा कि सरकारी उपक्रमों के विनिमय दर जोखिम को जरूरत पड़ने पर सरकार भी संभालने के लिए खड़ी हो सकती है। उन्होंने कहा कि 39 अरब डॉलर का वाणिज्यिक ऋण कुल बकाया विदेशी ऋण का केवल 22 प्रतिशत बनता है।