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0 शीर्ष अदालत ने कहा-दूसरों पर थोप क्यों रहे, एक लाख जुर्माना भी

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक अजीबो-गरीब मामला आया। एक शिष्य ने अपने गुरु को परमात्मा घोषित करने के लिए जनहित याचिका लगाई। इसे जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने खारिज कर दिया। साथ ही याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगा दिया।

याचिका लगाने वाला उपेंद्र नाथ दलाई, श्रीश्री अनुकूल चंद्र ठाकुर का शिष्य है। उसकी मांग थी कि श्रीश्री ठाकुर के धर्म-समाज में योगदान को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट उन्हें परमात्मा मानने का निर्देश दे। उपेंद्र की याचिका में BJP, RSS, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, गुरुद्वारा बंगला साहिब, इस्कॉन समिति, बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया, नेशनल क्रिश्चिएन काउंसिल को भी पार्टी बनाया गया था।

जुर्माना लगाते हुए कहा- अब लोग 4 बार सोचेंगे
शिष्य की दलीलों के बाद कोर्ट ने इस याचिका को जनहित में नहीं पाया। इसलिए उस पर एक लाख रुपए जुर्माना भी लगाया। उपेंद्र की जुर्माना नहीं लगाने की गुजारिश पर जस्टिस शाह ने कहा- हमने तो कम जुर्माना लगाया। किसी को अधिकार नहीं कि जनहित याचिका का दुरुपयोग करे। अब लोग ऐसी याचिका लगाने से पहले कम से कम 4 बार सोचेंगे। यह जुर्माना 4 हफ्तों के भीतर सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री में जमा करने का आदेश दिया गया है।

कौन हैं अनुकूलचंद्र चक्रवर्ती
श्रीश्री ठाकुर के नाम से मशहूर हैं। वे देवघर में सत्संग के संस्थापक थे। अनुकूल चंद्र का निधन 27 जनवरी 1969 को हुआ था। भारत सरकार ने 1987 में उनके नाम पर एक मेमो डाक टिकट जारी किया था।

कोर्ट ने अपने आदेश में क्या-क्या कहा?
0 कोर्ट ने खाचिका खारिज करते हुए कहा- भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है। याचिकाकर्ता को इस बात की अनुमति नहीं दी जा सकती कि वह देश के लोगों से जबरदस्ती श्रीश्री अनुकूल चंद्र को परमात्मा मनवाए।
0 जस्टिस शाह बोले- अगर आप उन्हें परमात्मा मानना चाहते हैं तो मानें, दूसरों पर क्यों थोप रहे हैं। हम यहां आपका लेक्चर सुनने नहीं, सुनाने आए हैं। हम सेक्युलर देश हैं।
0 आप मानो कि एक ही गुरुजी हैं... ऐसा कभी होता है भैया? सबको पूरा अधिकार है इस कंट्री में। जिसको जो धर्म मानना है, माने।

कौन हैं अनुकूलचंद्र चक्रवर्ती- श्रीश्री ठाकुर के नाम से मशहूर हैं। वे देवघर में सत्संग के संस्थापक थे। अनुकूल चंद्र का निधन 27 जनवरी 1969 को हुआ था। भारत सरकार ने 1987 में उनके नाम पर एक मेमो डाक टिकट जारी किया था।