नई दिल्ली। कंपनियों के बीच विवादों के त्वरित एवं विश्वनीय समाधान करने के लिए गठित ‘नयी दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केन्द्र’ का नाम बदलकर ‘भारत अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केन्द्र’ करने वाले विधेयक पर बुधवार को राज्यसभा की मंजूरी मिलने के साथ ही इस पर संसद की मुहर लग गयी।
राज्यसभा ने इस विधेयक को ध्वनिमत और सर्वसम्मति से पारित कर दिया जबकि लोकसभा इसे अगस्त 2022 में पारित कर चुकी है। इस विधेयक से नयी दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र अधिनियम 2019 में बदलाव होगा।
विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने विधेयक पर लगभग दो घंटे तक चली चर्चा का उत्तर देते हुए कहा कि सरकार अदालतों में लंबित करोड़ों मुकदमों को निपटाने का प्रयास कर रही हैं। इसके लिए राज्य सरकारों और न्यायपालिका को हर संभव सहायता उपलब्ध करायी जा रही है। निचली अदालतों का बुनियादी ढ़ांचा विकसित किया जा रहा है। मामलों को त्वरित रुप से निपटाने के लिए वैकल्पित व्यवस्था को अपनाया जा रहा है। इस विधेयक के पारित होने से व्यवसाय जुड़े मामलों को तेजी से निपटाया जा सकेगा। सरकार ने इसके लिए 75 लाख रुपए आवंटित किये हैं। इसमें एक प्रमुख और दो विशेषज्ञों की नियुक्ति की गयी है।
उन्होंने कहा कि भारत वैश्विक स्तर पर तेजी से उभर रहा है। इसलिए इसके संस्थानों को वैश्विक स्तर पर लाना होगा। सरकार इस दिशा में प्रयास कर रही है। सरकार चाहती है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संस्थानों की विश्वसनीयता, साख और स्वीकार्यता बढ़ाने की दिशा में काम रही है। सरकार चाहती है कि भारतीय कंपनियां विवादों के निपटान के लिए विदेश नहीं जाएं और विदेशी कंपनियां इसके लिए भारत आये। उन्होंने कहा कि सरकार भारतीय संस्थाओं की वैश्विक विश्वसनीयता बढ़ा रही है।
उन्होंने कहा कि विधेयक का उद्देश्य मध्यस्थता केन्द्र का नाम नयी दिल्ली की जगह बदलकर भारत अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केन्द्र करना तथा इसके लिए स्थायी पेनल बनाना है। उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से बढ रही है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रवाह भी बढा है। इसे देखते हुए देश में वैश्विक स्तर के मध्यस्थता केन्द्र को स्थापित किया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि इसे निष्पक्ष तथा स्वायत्त बनाये जाने से इसकी विश्वसनीयता बढेगी तथा भारत को दुनिया भर में विश्वसनीय मध्यस्थता केन्द्र के रूप में स्थापित करने में मदद मिलेगी।