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नई दिल्ली/देहरादून। जोशीमठ संकट के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत दखल से इनकार कर दिया। सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि संकट को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का मामले में याचिकाकर्ता चाहें तो उत्तराखंड हाईकोर्ट जा सकते हैं।

इस मामले में स्वामी अविमुक्तेश्वारानंद सरस्वती ने याचिका लगाई थी। याचिका में मांग की गई थी कि केंद्र सरकार से कहा जाए कि वह संकट को राष्ट्रीय आपदा घोषित करे और मरम्मत के काम में मदद करे। साथ ही जोशीमठ के रहने वालों को तुरंत राहत दी जाए।

उधर,उत्तराखंड के जोशीमठ में दो और होटल एक-दूसरे की तरफ झुक गए हैं। इनका नाम स्नो क्रेस्ट और कॉमेट है। दोनों होटलों के बीच करीब 4 फुट की दूरी थी, जो अब कम होकर सिर्फ कुछ इंच रह गई है। इन दोनों होटलों की छत एक-दूसरे से लगभग टकरा रही है। यानी ये होटल कभी भी एक-दूसरे से टकरा सकते हैं।

सुरक्षा को देखते हुए इन दोनों होटलों को खाली करा दिया गया है। ये दोनों होटल उस जगह से 100 मीटर दूर हैं, जहां होटल मलारी इन और माउंट व्यू हैं। इन दोनों होटलों को गिराने की प्रक्रिया रविवार को शुरू हुई है।

जोशीमठ-औली रोपवे के पास दीवार में 20 फीट लंबी दरार उभरी
जोशीमठ-औली रोपवे के पास बड़ी दरारें उभर आई हैं। इस रोपवे के ऑपरेशंस एक हफ्ते पहले बंद कर दिए गए थे। रोपवे इंजीनियर दिनेश भाटी ने बताया कि इस रोपवे परिसर के पास एक दीवार पर चार इंच चौड़ी और 20 फीट लंबी दरार आ गई है।
इस इलाके में दरार पड़े घरों की संख्या भी 723 से बढ़कर 826 हो गई है। इनमें से 165 घर असुरक्षित इलाके में हैं। राज्य आपदा प्रबंध संस्थान ने बताया कि अब तक 233 परिवारों को रिलीफ सेंटर्स में शिफ्ट किया जा चुका है।

हाथों से तोड़े जा रहे होटल मलारी इन और माउंट व्यू
रविवार से शुरू हुआ होटलों को गिराने का काम सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBRI) रुड़की की निगरानी में हो रहा है। CBRI के चीफ साइंटिस्ट डीपी कानूनगो ने कहा कि होटल को रिपेयर नहीं किया जा सकता। दोनों होटलों के आसपास मकान हैं, इसलिए इन्हें गिराना जरूरी है। होटल और ज्यादा धंसे तो गिर जाएंगे, जिससे ज्यादा नुकसान होगा। इसलिए इन्हें जल्द से जल्द गिराया जाएगा। इसके लिए मैकेनिकल डिस्मेंटलिंग तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हम यहां किसी भी प्रकार की भारी वाइब्रेटिंग मशीन का उपयोग नहीं कर सकते हैं। हमें जमीन को बचाना है। इसके लिए मजदूरों को स्पेशल ट्रेनिंग दी गई है। हम यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि जमीन के अंदर कम से कम या कोई कंपन न हो।