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0 20 साल वाले 30 लाख के लोन पर करीब 1 लाख रु. ज्यादा चुकाने होंगे

मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बुधवार को रेपो रेट में 0.25% का इजाफा किया है। इससे रेपो रेट 6.25% से बढ़कर 6.50% हो गया है। यानी होम लोन से लेकर ऑटो और पर्सनल लोन सब कुछ महंगा हो जाएगा और आपको ज्यादा ईएमआई चुकानी होगी। हालांकि अब एफडी पर ज्यादा ब्याज दरें मिलेंगी। 1 अगस्‍त 2018 के बाद रेपो रेट की यह सबसे ऊंची दर है। तब भी रेपो रेट 6.50% थी।

आरबीआई ने गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में मौद्रिक नीति समिति की बुधवार को समाप्त हुई तीन दिवसीय बैठक के बाद यह घोषणा की। इससे पहले दिसंबर में हुई मीटिंग में ब्याज दरों को 5.90% से बढ़ाकर 6.25% किया गया था। श्री दास ने घोषणा करते हुये कहा कि अक्टूबर 2022 के बाद दिसंबर 2022 में खुदरा महंगाई में तेजी से नरमी आयी है, जो विशेषकर खाद्य पदार्थाें की कीमतों के घटने से हुआ है। उन्होंने कहा कि छह सदस्यीय समिति में से चार सदस्यों ने रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की बढोतरी किये जाने के पक्ष में मतदान किया जबकि दो ने इसके विरोध में। इस तरह से बहुमत के आधार पर यह निर्णय लिया गया है। इसके साथ ही समिति ने विकास को गति देने तथा महंगाई को लक्षित दायरे में बनाये रखने के पक्ष में ये निर्णय लिया है।

अब रेपो दर 6.25 प्रतिशत से बढ़कर 6.50 प्रतिशत हो गयी है, जो तत्काल प्रभाव से लागू हो गयी है। इस बढ़ोतरी के बाद स्टैंडिंग डिपोजिट फैसिलिटी दर (एसडीएफआर) 6.00 प्रतिशत से बढ़कर 6.25 प्रतिशत, बैंक दर बढ़कर 6.75 प्रतिशत, मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी दर (एमएसएफआर) भी 6.75 प्रतिशत हो गयी है। रिजर्व बैंक महंगाई को काबू में करने के लिए मई 2022 में नीतिगत दरों में की गयी 0.40 प्रतिशत की बढोतरी के बाद से लगातार इसमें वृद्धि कर रहा है। मई के बाद जून, अगस्त और सितंबर में भी इन दरों में आधी-आधी फीसद की वृद्धि की गयी थी। दिसंबर में रेपो दर में 0.35 प्रतिशत की बढोतरी की गयी थी।

श्री दास ने कहा कि महंगाई का अनुमान मिश्रित है। रबी सीजन में सुधार हुआ लेकिन मौमस को लेकर अभी भी स्थितियां अनुकूल नहीं दिख रही है। वैश्विक कमोडिटी का अनुमान भू राजैनितक तनाव के कारण आपूर्ति पर पड़ने वाले प्रभावों पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि भारतीय बॉस्केट में कच्चे तेल का औसत मूल्य 95 डॉलर प्रति बैरल रहने का अनुमान है। इसके आधार पर चालू वित्त वर्ष में महंगाई के 6.5 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है। मार्च में समाप्त होने वाली चौथी तिमाही में इसके 5.7 प्रतिशत पर रहने की संभावना है। मानसून के सामान्य रहने पर अगले वित्त वर्ष में खुदरा महंगाई 5.3 प्रतिशत रह सकती है। अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इसके 5.0 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.6 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है। 
 
6 बार में 2.50% की बढ़ोतरी
मॉनेटरी पॉलिसी की मीटिंग हर दो महीने में होती है। इस वित्त वर्ष की पहली मीटिंग अप्रैल में हुई थी। तब आरबीआई ने रेपो रेट को 4% पर स्थिर रखा था, लेकिन आरबीआई ने 2 और 3 मई को इमरजेंसी मीटिंग बुलाकर रेपो रेट को 0.40% बढ़ाकर 4.40% कर दिया था। 22 मई 2020 के बाद रेपो रेट में ये बदलाव हुआ था। इसके बाद 6 से 8 जून को हुई मीटिंग में रेपो रेट में 0.50% इजाफा किया। इससे रेपो रेट 4.40% से बढ़कर 4.90% हो गई। फिर अगस्त में इसे 0.50% बढ़ाया गया, जिससे ये 5.40% पर पहुंच गई। सितंबर में ब्याज दरें 5.90% हो गई। फिर दिसंबर में ब्याज दरें 6.25% पर पहुंच गई। अब ब्याज दरें 6.50% पर पहुंच गई है।

एक साल में करीब 2988 रुपए बढ़ी ईएमआई
ब्याज दरों के बढ़ने के बाद मई से पहले जो होम लोन आपको 5.65% रेट ऑफ इंटरेस्ट पर मिल रहा था वो अब 8.15% पर पहुंच गया है। यानी 20 साल के लिए 20 लाख के लोन पर आपको हर महीने करीब 2,988 ज्यादा की EMI देनी होगी।

क्या पहले से चल रहे लोन पर भी बढ़ेगी ईएमआई
लोन की ब्याज दरें 2 तरह से होती हैं फिक्स्ड और फ्लोटर। फिक्स्ड में आपके लोन कh ब्याज दर शुरू से आखिर तक एक जैसी रहती है। इस पर रेपो रेट में बदलाव का कोई फर्क नहीं पड़ता। वहीं फ्लोटर में रेपो रेट में बदलाव का आपके लोन की ब्याज दर पर भी फर्क पड़ता है। ऐसे में अगर आपने फ्लोटर ब्याज दर पर लोन लिया है तो EMI भी बढ़ जाएगी।

आरबीआई रेपो रेट क्यों बढ़ाता या घटाता है?
आरबीआई के पास रेपो रेट के रूप में महंगाई से लड़ने का एक शक्तिशाली टूल है। जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है तो, आरबीआई रेपो रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है। रेपो रेट ज्यादा होगा तो बैंकों को RBI से मिलेने वाला कर्ज महंगा होगा। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देंगे। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होगा। मनी फ्लो कम होगा तो डिमांड में कमी आएगी और महंगाई घटेगी।

इसी तरह जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में आरबीआई रेपो रेट कम कर देता है। इससे बैंकों को आरबीआई से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन मिलता है। इस उदाहरण से समझते है। कोरोना काल में जब इकोनॉमिक एक्टिविटी ठप हो गई थी तो डिमांड में कमी आई थी। ऐसे में आरबीआई ने ब्याज दरों को कम करके इकोनॉमी में मनी फ्लो को बढ़ाया था।

रिवर्स रेपो रेट के बढ़ने-घटने से क्या होता है?
रिवर्स रेपो रेट उस दर को कहते है जिस दर पर बैंकों को आरबीआई पैसा रखने पर ब्याज देता है। जब आरबीआई को मार्केट से लिक्विडिटी को कम करना होता है तो वो रिवर्स रेपो रेट में इजाफा करता है। आरबीआई के पास अपनी होल्डिंग के लिए ब्याज प्राप्त करके बैंक इसका फायदा उठाते हैं। इकोनॉमी में हाई इंफ्लेशन के दौरान आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ाता है। इससे बैंकों के पास ग्राहकों को लोन देने के लिए फंड कम हो जाता है।