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0 सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग भी की जाएगी

नई दिल्ली। सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली 15 याचिकाओं पर अब 18 अप्रैल को सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने मामले को महत्वपूर्ण बताते हुए ने सोमवार को मामला 5 जजों की संवैधानिक बेंच को भेज दिया है। सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट और यूट्यूब पर की जाएगी।

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि यह एक मौलिक मुद्दा है। हमारा विचार से यह उचित होगा कि मामले को 5 जजों की बेंच के सामने संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के आधार पर फैसले के लिए भेजा जाए। हम मामले को संवैधानिक बेंच के सामने रखने का निर्देश देते हैं। 

सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने के पक्ष में नहीं है केंद्र सरकार
इससे पहले रविवार को केंद्र सरकार ने हलफनामा दाखिल कर सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया था। न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक केंद्र ने 56 पन्नों के हलफनामे में कहा कि सेम सेक्स मैरिज भारतीय परंपरा के मुताबिक नहीं है। यह पति-पत्नी और उनसे पैदा हुए बच्चों के कॉन्सेप्ट से मेल नहीं खाती। इसलिए इसे कानूनी रूप देना ठीक नहीं होगा। हालांकि सरकार ने समाज की वर्तमान स्थिति का जिक्र करते हुए ये भी कहा कि अभी के समय में समाज में कई तरह की शादियों या संबंधों को अपनाया जा रहा है। हमें इस पर आपत्ति नहीं है।

कोर्ट में दोनों पक्षों की दलीलें 
याचिकाकर्ताओं के वकील एन के कौल ने कोर्ट में कहा कि हमें केंद्र सरकार के हलफनामे पर जवाब देने के लिए समय चाहिए। कौल ने कहा कि इस मामले पर केंद्र सरकार का स्टैंड वही है जो हाईकोर्ट के सामने था। क्या इस मामले पर अप्रैल में सुनवाई हो सकती है?

इस पर केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि देश के हर नागरिक को प्यार करने और उसे जाहिर करने का अधिकार है। कोई भी उस अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर रहा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें शादी करने की मंजूरी दे दी जाए। स्पेशल मैरिज एक्ट में भी पुरुष-महिला की शादी की बात का जिक्र है। अगर सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता दी जाती है तो स्पेशल मैरिज एक्ट बनाने की मंशा नष्ट हो जाएगी, जिसका असर पूरे समाज पर पड़ेगा।​​​​​​​ समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से बच्चे को गोद लेने पर सवाल उठेगा। इसलिए संसद को देखना होगा कि इससे बच्चे की मानसिक स्थिति पर क्या असर होगा। क्या कोई बच्चा मां के रूप में एक पुरुष को स्वीकार कर पाएगा। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट के जजों ने कहा कि समलैंगिक जोड़े के गोद लिए हुए बच्चे का समलैंगिक होना जरूरी नहीं है।​​​​​​​

​​​​​​​मेरिट के आधार पर याचिका खारिज करना उचित
हलफनामे में सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने अपने कई फैसलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की व्याख्या स्पष्ट की है। इन फैसलों के आधार पर भी इस याचिका को खारिज कर देना चाहिए, क्योंकि उसमें सुनवाई करने लायक कोई तथ्य नहीं है। मेरिट के आधार पर भी उसे खारिज किया जाना ही उचित है। कानून में उल्लेख के मुताबिक भी समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती, क्योंकि उसमें पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है। उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं। समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग-अलग माना जा सकेगा? केंद्र ने कहा कि शादी की परिभाषा अपोजिट सेक्स के दो लोगों का मिलन है। इसे विवादित प्रावधानों के जरिए खराब नहीं किया जाना चाहिए।