Head Office

SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH

tranding

0 मॉड्यूल को पृथ्वी की कक्षा में ट्रांसफर किया
0 ये प्रयोग सैंपल रिटर्न मिशन के लिए जरूरी

बेंगलुरु। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन, यानी इसरो ने हॉप एक्सपेरिमेंट के बाद एक और यूनीक एक्सपेरिमेंट में चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल को चंद्रमा की कक्षा से पृथ्वी की कक्षा में ट्रांसफर किया। ये एक्सपेरिमेंट इसरो के चंद्रयान-4 मिशन के लिहाज से काफी अहम है। चंद्रयान-4 मिशन में चंद्रमा का सॉइल सैंपल पृथ्वी पर लाया जाएगा।

चंद्रयान-3 मिशन को 14 जुलाई 2023 को लॉन्च किया गया था। इसमें तीन हिस्से थे- प्रोपल्शन मॉड्यूल, लैंडर और रोवर। प्रोपल्शन मॉड्यूल को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया गया था। वहीं लैंडर और रोवर ने 23 अगस्त को चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंडिंग की थी। प्रोपल्शन मॉड्यूल पर शेप (एसएचएपीई) पेलोड लगा है जिसे पृथ्वी की स्टडी करने के लिए डिजाइन किया गया है।

चंद्रयान-3 मिशन का प्राइमरी ऑब्जेक्टिव चंद्रमा के साउथ पोलर रीजन के पास सॉफ्ट लैंडिंग करना और विक्रम और प्रज्ञान पर लगे पेलोड के जरिए एक्सपेरिमेंट करना था। वहीं प्रोपल्शन मॉड्यूल का मेन ऑब्जेक्टिव लैंडर मॉड्यूल को चंद्रमा की कक्षा तक ले जाना और लैंडर को अलग करना था। इसके बाद, शेप (एसएचएपीई) यानी स्पेक्ट्रोपोलैरीमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ पेलोड की मदद से पृथ्वी से निकलने वाली रेडिएशन्स की स्टडी करना था।

फ्यूल बचा तो 2 और एक्सपेरिमेंट किए
1. हॉप एक्सपेरिमेंट: विक्रम की दोबारा लैंडिंग कराई
इसरो ने 3 सितंबर को विक्रम लैंडर की चांद की सतह पर दोबारा लैंडिंग कराई थी। विक्रम लैंडर में सॉफ्ट लैंडिंग के बाद कुछ फ्यूल बच गया था, इसलिए हॉप एक्सपेरिमेंट परफॉर्म किया गया। इसरो ने बताया कि लैंडर को 40 सेमी ऊपर उठाया गया और 30 से 40 सेमी की दूरी पर सुरक्षित लैंड करा दिया। इसे हॉप एक्सपेरिमेंट यानी जंप टेस्ट कहा।

2. प्रोपल्शन मॉड्यूल को चंद्रमा की कक्षा से पृथ्वी की कक्षा में डाला
इसरो ने बताया कि प्रोपल्शन मॉड्यूल में 100 किलो फ्यूल बच गया था। ऐसे में भविष्य के मून सैंपल रिटर्न मिशन और अन्य मिशन्स के लिए अतिरिक्त जानकारी मिल सके इसके लिए इस फ्यूल को इस्तेमाल करने का निर्णय लिया गया। तय किया गया कि प्रोपल्शन मॉड्यूल को पृथ्वी की कक्षा में फिर से स्थापित किया जाएगा।
प्रोपल्शन मॉड्यूल में मौजूद फ्यूल को ध्यान में रखते हुए मिशन प्लान किया गया। ये भी ध्यान रखा गया कि प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रमा की सतह से न टकराए। ये पृथ्वी की जियोस्टेशनरी इक्वेटोरियल ऑर्बिट (जीईओ) बेल्ट और उससे नीचे की ऑर्बिट में भी न जाए, इसे भी ध्यान रखा गया। पृथ्वी से 36000 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद कक्षा को जीईओ बेल्ट कहा जाता है। मिशन प्लान करने के बाद पहली बार 9 अक्टूबर 2023 को प्रोपल्शन मिशन का इंजन फायर किया गया। इससे प्रोपल्शन मॉड्यूल की चंद्रमा से ऊंचाई 150 किमी से बढ़कर 5112 किमी हो गई। कक्षा की अवधि भी 2.1 घंटे से बढ़कर 7.2 घंटे हो गई।