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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में एमबीबीएस की पढ़ाई में दाखिले के लिए कथित फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के इस्तेमाल के आरोपों की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने के मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय की 'खंडपीठ-एकल पीठ' आदेश विवाद के बाद स्वत: संज्ञान सुनवाई करते हुए संबंधित मामलों को सोमवार को अपने पास स्थानांतरित कर लिया।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की संविधान पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार को राज्य में एमबीबीएस प्रवेश के लिए उपयोग किए जाने वाले कथित फर्जी अनुसूचित (एससी)/अनुसूचित जनजाति (एसटी) प्रमाणपत्रों के संबंध में राज्य पुलिस द्वारा शुरू की गई जांच की स्थिति विवरण दाखिल करने का निर्देश दिया।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय की एकल पीठ द्वारा एक खंडपीठ के आदेश को अवैध घोषित करने और एक अन्य (उस खंडपीठ के) न्यायाधीश पर पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी के राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए काम करने का आरोप लगाने का मामला सामने आने के बाद शीर्ष अदालत के दखल देने की अभूतपूर्व स्थिति उत्पन्न हुई थी। शीर्ष अदालत की विशेष पीठ ने उच्च न्यायालय के समक्ष संबंधित मामलों की कानूनी कार्यवाहियों पर शनिवार को रोक लगा दी थी और कहा था कि इस मामले पर सोमवार को सुनवाई करेगी।

शीर्ष अदालत के समक्ष पश्चिम बंगाल सरकार का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि एकल न्यायाधीश की पीठ इन मामलों की सुनवाई जारी रखेगी और वह भविष्य में भी ऐसा करेगी। इस पर पीठ ने कहा कि हमें आक्षेप नहीं लगाना चाहिए। आखिरकार हम एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के साथ काम कर रहे हैं। हम यहां जो कुछ भी कहते हैं, वह उच्च न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला नहीं होना चाहिए। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि इस मामले में चौंकाने वाले तथ्य हैं, जिन्हें इस अदालत के समक्ष लाया जाएगा। शीर्ष अदालत के समक्ष एसटी/एसटी एसोसिएशन का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने दलील दी कि 52 प्रमाणपत्रों में से 14 फर्जी पाए गए।

इस पर श्री सिब्बल ने दलील देते हुए कहा कि अब तक राज्य पुलिस ने 14 मामलों में 10 मुकदमे (एफआईआर) दर्ज किये हैं। पीठ ने राज्य सरकार के वकील से कहा कि हम एफआईआर में की गई जांच की स्थिति जानना चाहते हैं। इसके बाद शीर्ष अदालत ने सभी पक्षों से तीन सप्ताह के भीतर अपनी दलीलें दाखिल करने को कहा।

कलकत्ता उच्च न्यायालय में यह असामान्य घटनाक्रम 25 जनवरी को हुआ, जिसके एक दिन बाद न्यायमूर्ति सौमेन सेन और न्यायमूर्ति उदय कुमार की खंडपीठ ने पश्चिम बंगाल में एमबीबीएस प्रवेश में अनियमितताओं की सीबीआई जांच के लिए न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय की एकल पीठ के निर्देश पर रोक लगा दी थी। शीर्ष अदालत ने 26 जनवरी को स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया था। न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय की एकल पीठ ने 25 जनवरी को खंडपीठ के आदेश को अवैध करार दिया था। खंडपीठ ने 24 जनवरी को मामले की सीबीआई जांच के निर्देश पर रोक लगा दी थी और कहा था कि राज्य सरकार को मामले में अपनी जांच पूरी करने की अनुमति दी जानी चाहिए।