0 शीर्ष अदालत ने कहा-बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक
0 13 मार्च को पता चलेगा किस पार्टी को किसने, कितना चंदा दिया
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 6 साल पुरानी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये स्कीम असंवैधानिक है। बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है। यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। संविधान पीठ ने अपने फैसले में योजना के साथ-साथ इससे संबंधित आयकर अधिनियम और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में किए गए संशोधनों को भी रद्द कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की 5 सदस्यीय संविधान पीठ सर्वसम्मति से ये ऐतिहासिक फैसला दिया। अपने फैसले में पीठ ने चुनावी बांड जारी करने वाले बैंक , भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को बांड जारी करना बंद करने का निर्देश दिया। साथ ही, उसने राजनीतिक दलों को भी उन बांडों को वापस करने का निर्देश दिया, जो वैधता के 15 दिनों के भीतर के हैं और भुनाए नहीं गए हैं। संविधान पीठ ने एसबीआई को चुनावी बांड प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों और बांड से संबंधित सभी विवरण तीन सप्ताह के भीतर (यानी 06 मार्च तक) चुनाव आयोग को सुपुर्द करने का भी निर्देश दिया। चीफ जस्टिस ने कहा कि पॉलिटिकल प्रोसेस में राजनीतिक दल अहम यूनिट होते हैं। वोटर्स को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है, जिससे मतदान के लिए सही चयन होता है।
2018 से अब तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए सबसे ज्यादा चंदा भाजपा को मिला है। 6 साल में चुनावी बॉन्ड से भाजपा को 6337 करोड़ की चुनावी फंडिंग हुई। कांग्रेस को 1108 करोड़ चुनावी चंदा मिला।
शीर्ष अदालत ने कहा कि चुनावी बांड योजना अपनी गुमनाम प्रकृति के कारण सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है। इस प्रकार से यह संविधान के अनुच्छेद 19(1) (ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है।
संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा, "चुनावी बांड योजना, आयकर अधिनियम की धारा 139 द्वारा संशोधित धारा 29(1)(सी) और वित्त अधिनियम 2017 द्वारा संशोधित धारा 13(बी) के प्रावधान, अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह योजना सूचना के अधिकार के मुकाबले सूचनात्मक गोपनीयता के अधिकार को प्रधानता देती है। संविधान पीठ ने कहा कि व्यक्तियों के योगदान की तुलना में किसी कंपनी का राजनीतिक प्रक्रिया पर अधिक गंभीर प्रभाव होता है। कंपनियों द्वारा योगदान पूरी तरह से व्यावसायिक लेनदेन है। कंपनी अधिनियम की धारा 182 में संशोधन स्पष्ट रूप से कंपनियों और व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करने के लिए मनमाना है। पीठ ने कहा कि चुनावी बांड योजना घाटे में चल रही कंपनियों को बदले में योगदान देने की अनुमति देने के नुकसान को पहचानने में सक्षम नहीं है।
पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह भी कहा कि राजनीतिक दलों को वित्तीय सहायता से पारस्परिक लाभ की व्यवस्था हो सकती है और चुनावी बांड योजना काले धन पर अंकुश लगाने का एकमात्र तरीका नहीं हो सकता है। शीर्ष अदालत ने तीन दिनों की सुनवाई के बाद दो नवंबर 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
चुनावी बांड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाएं एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, सीपीआई (एम), कांग्रेस नेता जया ठाकुर और अन्य की ओर से दायर कई थीं।
याचिकाकर्ताओं ने सुनवाई के दौरान दलील दी थी कि इस योजना ने किसी भी कंपनी को गुमनाम रूप से सत्ता में बैठी पार्टियों को रिश्वत देने की अनुमति देकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के साथ ही इसे वैध बना दिया।
उन्होंने पीठ के समक्ष कहा था कि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि लगभग सभी चुनावी बांड केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ दलों के पास गए हैं। खरीदे गए 94 फीसदी चुनावी बांड एक करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग में और बाकी 10 लाख रुपये के हैं। चुनावी बांड योजना दो जनवरी 2018 को अधिसूचित की गई थी। इस योजना माध्यम से भारत में कंपनियां और व्यक्ति भारतीय स्टेट बैंक की अधिसूचित शाखाओं से बांड खरीदकर गुमनाम रूप से राजनीतिक दलों को चंदा देने का प्रावधान किया गया था।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि योजना सभी योगदानकर्ताओं के साथ समान व्यवहार करती है। इसकी गोपनीयता महत्वपूर्ण है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि काले धन से हटकर एक विनियमित योजना की ओर बढ़ने से जनहित में मदद मिलेगी। उन्होंने यह भी कहा था कि इस योजना में केवाईसी का भी फायदा है। पार्टियों को सभी योगदान चुनावी बांड के माध्यम से लेखांकन लेनदेन के रूप में और सामान्य बैंकिंग चैनलों के भीतर होते हैं।
अब आगे क्या
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब यह पता चलेगा कि किस कंपनी, किन लोगों से या विदेश से कितना पैसा मिला है। 2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा।