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0 खाने-पीने के सामानों के दाम बढ़े

नई दिल्ली। भारत की थोक महंगाई फरवरी में कम होकर 0.20% पर आ गई है। जनवरी में ये 0.27% रही थी। महंगाई का ये 4 महीने का निचला स्तर भी है। नवंबर में महंगाई 0.26% रही थी। महंगाई में गिरावट आई है, लेकिन खाने-पीने के सामानों के दाम बढ़े हैं।

वहीं अगर एक साल पहले यानी फरवरी 2023 की बात करें तो थोक महंगाई तब 3.85% रही थी। वहीं अप्रैल 2023 से लेकर अक्टूबर 2023 तक महंगाई निगेटिव जोन में रही थी। अप्रैल में महंगाई -0.92% तो अक्टूबर में -0.52% रही थी।

फरवरी में खाद्य महंगाई दर घटी
0 खाद्य महंगाई दर जनवरी के मुकाबले 3.79% से बढ़कर 4.09% रही है।
0 रोजाना जरूरत के सामानों की महंगाई दर 3.84% से बढ़कर 4.49 हो गई है।
0 फ्यूल और पावर की थोक महंगाई दर -0.51% से घटकर -1.59% रही।
0 मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्ट्स की थोक महंगाई दर -1.13% से घटकर -1.27% रही।

रिटेल महंगाई में भी आई थी गिरावट
इससे पहले 12 मार्च को सरकार ने रिटेल महंगाई के आंकड़े जारी किए थे। भारत की रिटेल महंगाई फरवरी 2024 में मामूली घटकर 5.09% पर आ गई है। यह महंगाई का 4 महीने का निचला स्तर है। इससे पहले जनवरी में महंगाई 5.10% रही थी।

डब्ल्यूपीआई का आम आदमी पर असर
थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहने से ज्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है। अगर थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है, तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स पर डाल देते हैं। सरकार केवल टैक्स के जरिए डब्ल्यूपीआई को कंट्रोल कर सकती है। जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी। हालांकि, सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कम कर सकती है। डब्ल्यूपीआई में ज्यादा वेटेज मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है।

महंगाई कैसे मापी जाती है?
भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल, यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीपीआई) भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (डब्ल्यूपीआई) का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है। महंगाई मापने के लिए अलग-अलग आइटम्स को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75%, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 20.02% और फ्यूल एंड पावर 14.23% होती है। वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86%, हाउसिंग की 10.07% और फ्यूल सहित अन्य आइटम्स की भी भागीदारी होती है।