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0 भारत की स्थिति में सुधार, चीन में मीडिया की हालत खराब
0 ग्लोबल मीडिया पर राजनीतिक दबाव
पेरिस। पेरिस स्थित इंटरनेशनल एनजीओ रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरडब्ल्यूबी) की 2025 के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को 180 देशों में 151वीं रैंकिंग पर रखा गया है। इस लिस्ट में पिछले साल भारत की रैंकिंग 159 थी।

इंडेक्स में इरीट्रिया सबसे निचले पायदान पर और नॉर्वे पहले पायदान पर है। भूटान, पाकिस्तान, तुर्किये, फिलिस्तीन, चीन, रूस, अफगानिस्तान, सीरिया और उत्तर कोरिया को भारत से नीचे रखा गया है।

फंडिंग की कमी से जूझ रहा है दुनिया भर का मीडिया
आरडब्ल्यूबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के आज तक के इतिहास में इकोनॉमिक इंडिकेटर अपने सबसे निचले स्तर पर है। दुनिया भर का मीडिया फंडिंग की कटौती से जूझ रहा है। इंफर्मेशन के संसाधनों पर गूगल, एपल, फेसबुक, अमेजन और माइक्रोसॉफ्ट जैसी टेक कंपनियों के दबदबे की वजह से मीडिया को और ज्यादा आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। पहले जो विज्ञापन मीडिया आउटलेट्स को मिलते थे अब उनका एक बड़ा हिस्सा इन टेक प्लेटफॉर्म्स को मिल रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई देशों में मीडिया पर पॉलिटिकल नेताओं का कंट्रोल है। लेबनान, भारत, आर्मेनिया और बुल्गारिया जैसे देशों में मीडिया आउटलेट्स नेताओं और बिजनेसमैन से मिलने वाली सशर्त फंडिंग की वजह से अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं।

अमेरिका की रैंकिंग 2 पायदान फिसली
रिपोर्ट में कहा गया है कि डोनाल्ड ट्रम्प के सत्ता में आने के बाद अमेरिका में प्रेस की स्थिति में गिरावट आई है। इंडेक्स में अमेरिका 57वें पायदान पर है, जबकि पिछले साल उसकी रैंकिंग 55 थी। वो 42 देश, जहां दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी रहती है वहां प्रेस की स्थिति "बहुत गंभीर" है। इन देशों में प्रेस को लगभग न के बराबर आजादी है। यहां पत्रकारिता करना खतरे से खाली नहीं है।

गाजा जंग में 200 से ज्यादा पत्रकारों की मौत
रिपोर्ट में करीब 18 महीने से जंग से जूझ रहे फिलिस्तीन को 163वें पायदान पर रखा गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि गाजा में इजराइली सेना ने कई न्यूजरूम को पूरी तरह तबाह कर दिया है। 2023 में लड़ाई शुरू होने के बाद से अब तक गाजा में 200 से ज्यादा पत्रकार मारे जा चुके हैं। दूसरी तरफ चीन और वियतनाम जैसे देशों में मीडिया पर सरकार का या फिर सरकार के जुड़े संगठनों का कंट्रोल है। जो लोग स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं उन्हें लगातार खतरे का सामना करना पड़ता है। दूसरी तरफ विदेशी मीडिया संस्थानों को किसी भी समय ब्लैकलिस्ट कर दिया जाता है।

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