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नई दिल्ली। चुनाव आयोग के बिहार की मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण करने के फैसले के खिलाफ कांग्रेस और अन्य प्रमुख विपक्षी दल के नेताओं की ओर से उच्चतम न्यायालय में दायर याचिकाओं के विपरीत भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) नेता एवं अधिवक्ता अश्विन उपाध्याय ने एक याचिका दायर की है।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाला बागची की अंशकालीन कार्य दिवस पीठ ने मंगलवार को याचिकाकर्ता अधिवक्ता उपाध्याय की गुहार पर उनसे कहा कि वह अपनी याचिका में खामियों को दूर कर उसे 10 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का अनुरोध रजिस्ट्री (शीर्ष अदालत की) से करें।
याचिकाकर्ता उपाध्याय ने आज न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष विशेष उल्लेख कर अपनी याचिका पर सुनवाई के लिए 10 जुलाई (चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ) के लिए सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया था।
शीर्ष अदालत ने सोमवार को कहा था कि वह बिहार की मतदाता सूची से संबंधित आयोग के 24 जून 2025 के निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 10 जुलाई को विचार करेगी।
अधिवक्ता उपाध्याय की ओर से दायर याचिका में संसदीय, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों से पहले एक नियमित अंतराल पर मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण करने का चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग गई है।
उन्होंने (उपाध्याय) अपनी याचिका में कहा है कि स्वतंत्रता के बाद देश में बड़े पैमाने पर अवैध घुसपैठ, छलपूर्ण धर्म परिवर्तन और बेलगाम जनसंख्या वृद्धि के कारण 200 जिलों और 1500 तहसीलों की जनसांख्यिकी बदल गई है। ऐसे में केंद्र, राज्य सरकारों और भारत के चुनाव आयोग का यह संवैधानिक कर्तव्य है कि वे यह सुनिश्चित करें कि संसदीय, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों में केवल वास्तविक नागरिक ही अपना वोट डालें, न कि विदेशी। इसके लिए समय-समय पर मतदाता सूचियों की विशेष गहन जांच आवश्यक है।
गौरतलब है कि इससे पहले (विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा) चुनाव आयोग के 24 जून, 2025 को जारी उक्त आदेश को अव्यावहारिक और मनमाना बताते हुए इसे रद्द करने की मांग शीर्ष अदालत से की गई।
ये मांग करते हुए कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, राष्ट्रीय जनता दल सांसद मनोज कुमार झा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सांसद सुप्रिया सुले, सीपीआई के महासचिव डी राजा, शिवसेना (यूबीटी) के अरविंद सावंत, झारखंड मुक्ति मोर्चा सांसद सरफराज अहमद और सीपीआई (एमएल) के दीपांकर भट्टाचार्य ने याचिका दायर की थी। इसी प्रकार गैर सरकारी संगठनों - एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, पीयूसीएल और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव समेत अन्य ने इस संबंध में चुनाव आयोग के फैसले की वैधता को शीर्ष अदालत में चुनौती देते हुए अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं।
चुनाव आयोग के उक्त आदेश के खिलाफ याचिका दायर करने वालों ने दावा किया कि यह कदम संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 21 ए के प्रावधानों का उल्लंघन है। उन्होंने तर्क दिया कि यदि इस आदेश को रद्द नहीं किया गया तो मनमाने ढंग से और उचित प्रक्रिया के बिना लाखों मतदाताओं को अपने प्रतिनिधियों को चुनने से वंचित किया जा सकता है। इससे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और लोकतंत्र बाधित हो सकता है, जो संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं।