
0 नगर पंचायत की कार्यशैली पर उठा सबसे बड़ा सवाल
0 रायपुर और कानसिंघी की मिसालें सामने
अशोक दीक्षित
छुरा। “दान” शब्द भारतीय संस्कृति में सबसे पवित्र माना गया है। भूदान आंदोलन से लेकर व्यक्तिगत पहल तक, हमारे समाज में सैकड़ों उदाहरण हैं, जहां लोगों ने अपनी मेहनत और पुश्तैनी ज़मीन को समाज के लिए अर्पित कर दिया। इन दान की गई ज़मीनों पर आज अस्पताल, छात्रावास और जनसेवा के केंद्र संचालित हैं, लेकिन छुरा नगर पंचायत इन परंपराओं को शर्मसार करता है। स्व. जुगरी बाई ध्रुव द्वारा वर्ष 1985 में जनकल्याण हेतु दान दी गई भूमि पर निर्मित धर्मशाला आज दुकानों और गोडाउन में तब्दील कर दी गई है। यह न सिर्फ दानदाता परिवार, बल्कि पूरे समाज के विश्वास के साथ विश्वासघात है।
वर्ष 1985 में जब छुरा ग्राम पंचायत था और युवराज ओंकार शाह सरपंच थे, तब स्व. जुगरी बाई ध्रुव ने सदर रोड स्थित कीमती भूमि दान दी थी। उस पर बनी धर्मशाला वर्षों तक राहगीरों का सहारा, ग्रामीणों की बैठक और सामाजिक आयोजनों का केंद्र रही, लेकिन जैसे ही छुरा नगर पंचायत बना, प्रशासन ने इस पवित्र स्थल को व्यापार का साधन बना डाला। धर्मशाला को दुकानों और गोडाउन में बदलकर किराये पर दिया जाने लगा।
जहां दान हुआ, वहां सेवा हुई
इतिहास गवाह है कि भूदान और परोपकार की भावना से दी गई भूमि को कभी भी व्यक्तिगत या व्यावसायिक हित के लिए प्रयोग नहीं किया गया। अस्पताल, छात्रावास, विद्यालय, धर्मशाला इन सभी भवनों ने समाज को ही लौटाया है, लेकिन छुरा नगर पंचायत का मामला इन सभी मिसालों को ध्वस्त करता हुआ नज़र आता है।
दानदाता परिवार का आक्रोश –यह भूदान की आत्मा की हत्या है
दानदाता परिवार का कहना है कि उनकी माता-पिता और पूर्वजों ने इस भूमि को समाज की सेवा के लिए दान किया था। हमारे पुरखों ने धर्मशाला समाज को समर्पित की थी। आज वहां बोरे, गोडाउन और दुकानें हैं। यह जनहित के साथ धोखा और भूदान की आत्मा की हत्या है।
नगर पंचायत की चुप्पी टूटी – पर जनता को भरोसा नहीं
हमारे संवाददाता से चर्चा में सीएमओ यमन देवांगन ने कहा कि मैंने विभागीय कर्मचारी को निर्देशित किया है कि दानदाता के मूल दस्तावेज़ और भवन की आबंटन प्रक्रिया की जानकारी जुटाई जाए। दस्तावेज़ आने के बाद आगे की कार्रवाई होगी।
इधर आम लोग और दानदाता परिवार इसे “समय टालने की चाल” मान रहे हैं। उनका कहना है कि दस्तावेज़ पहले से ही उपलब्ध हैं और बहाने बनाकर मामले को लंबा खींचा जा रहा है।
लोगों की चेतावनी – अब मौन नहीं, आंदोलन होगा
छुरा के लोगों ने साफ कहा है कि यदि धर्मशाला से व्यावसायिक कब्ज़ा तुरंत नहीं हटाया गया, तो आंदोलन की राह अपनानी पड़ेगी। यह छुरा की आत्मा है। यदि भूदान का अपमान होगा, तो जनता चुप नहीं बैठेगी।
दान पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश
0 मध्यप्रदेश हाईकोर्ट (2007) – दान या भूदान की गई भूमि का उपयोग केवल उसी उद्देश्य के लिए किया जा सकता है, जिसके लिए दी गई है।
0 सुप्रीम कोर्ट (2010, Public Trust Doctrine) – जनसेवा हेतु दी गई भूमि जनता की संपत्ति है, इसे निजी लाभ में नहीं बदला जा सकता।
0 छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी कई मामलों में कहा है कि दान की गई भूमि का दुरुपयोग संविधान और समाज दोनों के साथ धोखा है।
रायपुर का उदाहरण – भूदान से बना अस्पताल, हर दिन हजारों को जीवनदान
राजधानी रायपुर का उदाहरण सामने है। शहर के प्रसिद्ध दाऊ कल्याण सिंह ने अपने जीवनकाल में राज्य शासन को अपनी भूमि भूदान की थी। उस भूमि पर आज डी.के. हॉस्पिटल संचालित है, जहाँ हर दिन हजारों मरीज इलाज पाते हैं। यह न केवल दानदाता की महान भावना का जीवित उदाहरण है, बल्कि समाज और शासन की संवेदनशीलता का प्रमाण भी है।
कानसिंघी की मिसाल – छात्रावास हेतु दिया गया भूदान, आज भी संचालित
इसी तरह छुरा विकासखंड के ग्राम कानसिंघी में ग्राम ज़मींदार लीलाधर ठाकुर ने तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल, कृष्णा कुमार दीक्षित और ग्राम प्रमुख की उपस्थिति में भूमि दान की थी। उद्देश्य था – शासकीय विद्यालय के पास छात्रावास का निर्माण। आज भी उस दान की गई भूमि पर छात्रावास संचालित है और सैकड़ों बच्चों का भविष्य संवार रहा है।