
अहमदाबाद। बुद्धि का कमाल ही कुछ अलग है जिसके पास बुद्धि है वह अपने बलबूते पर जल्दी खड़ा हो जाता है तथा जिसके पास बुद्धि की कमी है वह व्यक्ति ठोकरें खाता हुआ भी आगे नहीं बढ़ पाता है। अगर व्यक्ति अच्छे काम कर रहा हो तो भी दिमाग के कारण और गलत काम कर रहा है तब भी दिमाग के कारण। कुछ लोग तेज दिमाग वाले होते है तो कुछ कमजोर दिमाग वाले होते है लेकिन काम दोनों का दिमाग से ही होता है। तेज दिमाग वाले हाजिर जवाब होते है। अकबर एवं बीरबल के लतीफे हम सभी जानते है। एक बार अकबार और शहजादा जंगल से जा रहे थे। शहजादे को गर्मी लगी। उसने कोट उतारा और बीरबल के कंधे पर रख दिया। अकबर कोभी मजाक सूझा। उसने भी अपना कोट उतारकर बीरबल के कंधे पर रख दिया। बीरबल ने दोनों को सहन किया। अकबर ने बीरबल का मजाक उड़ाते हुए कहा, बीरबल, एक गधे का भार तो हो गया होगा। बीरबल ने कहा, जहां पनाह माफ करें, एक और एक, दो का भार उठा रहा है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू.राजयशसूरीश्वरजी म.सा. श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है जिसके पास बुद्धि का खजाना है वह व्यक्ति चाहे देश में होगा अथवा विदेश में होगा उसका अस्तित्व हमेशा सलामत रहेगा। कहते है यूं तो मनुष्य के पास दिल भी है लेकिन दिल से केवल रिश्तों को बनाया जा सकता है जिंदगी को नहीं। स्थितों को एवं जगल को चलाने के लिए दिमाग की आवश्यकता होती है। माना कि आज दुनिया कम्प्यूटरमयी हो गई लेकिन इस कम्प्यूटर को पैदा करने वाला और चलाने वाला तो मनुष्य का दिमाग ही है। व्यापार करना हो, कैरियर बनाना हो, फैक्ट्री चलानी हो, समाज में अपनी प्रेसर्टीज बढ़ानी हो सब कुछ दिमाग एवं बुद्धि के बलबूते ही हो पाता है। दुनिया में सारे कमाल बुद्धि के है।
नागौर राज्य के राजा को नए दीवान की नियुक्ति करनी थी। इसके लिए अलग-अलग योग्य लोगों का चयन किया गया लेकिन नागौर नरेश ने जोधपुर के सिंघवीजी को दीवान बनाने का तय किया। इसी बीच महारानी ने राजा को अनुरोध किया कि राजन्! बारह के व्यक्ति को दीवान बनाने के बजाय अपने घर के सदस्यों में से बनाओ तो अच्छा है। इस प्रकार कहकर रानी ने अपने सगे भाई नवाबजी को दीवान बनाने का आग्रह रखा। राजा, बात को समझ गए क्योंकि उन्हें रिश्तेदारों से ज्यादा दिमाग वालों की जरूरत थी। राजा ने निर्णय किया कि दोनों की परीक्षा की जाए। राजन् ने दोनों को बुलवाकर सोने की एक-एक डिबिया दी। नवाबजी को जयपुर एवं सिंघवीजी को उदयपुर भेजा गया। नवाबजी ने महाराज को वह सोने की डिबियां दी। जैसे ही जयपुर के राजा ने डिबियां खोली राख निकली। नवाबजी के मुंह पर फेंकी। तुम्हारे राजा की यह हिम्मत कि इस तरह राजसभा में मेरी तौहीन करें। नवाबजी को धक्का देकर निकाल दिया गया। इस ओर सिंघवी उदयपुर के महाराणा के पास पहुंचे। उन्होंने भी राजा को सोने की डिबी दी। डीबी में से राख निकली। सिंघवी मामला माप गए। उन्होंने राजा को कहा, राजन््! ये तो नागौर की हिंगलाज माता की रक्षा है। इस राख को यदि पानी में घोलकर पीया जाए तो पुत्रहीन को सुपुत्र की प्राप्ति होती है। कहते है, जिस व्यक्ति को बुद्धि का उपयोग सही स्थान पर करना आता है वह व्यक्ति जिंदगी की बाजी जीत जाता है। उस व्यक्ति को मान-सम्मान भी खूब मिलता है।महाराणा सिंघवी पर खुश हो गए। नागौर नरेश को साधुवाद एवं धन्यवाद का पत्र लिखा साथ ही सिंघवी को दस हजार सोना महोर भेंट के रुप में दी गई? नवाबजी ने अपनी सारी घटना महाराणा को बताई तथा ये भी कहा कि जिंदा बचकर आया हूं। सिंघवी ने राजा के हाथों में वह पत्र दिया एवं भेंट स्वरूप मिली हुई सुवर्ण मुद्राए भी दिखाई। महाराणा ने सिंघवी को ही अपना दिवान बनाया। दुनिया का किसी भी व्यक्ति की शक्ति, ताकात, निर्णय एवं खजाना कहो वह है व्यक्ति का दिमाग, उसकी बुद्धि, उसका मस्तिष्क। ज्ञान इंसान के जीवन की रोशनी है। जिस प्रकार शरीर के पोषण के लिए अच्छे से अच्छे आहार को ग्रहण करते है वैसे ही दिमाग के पोषण के लिए इसमें अच्छे से अच्छे विचारों के बीज बोतें रहिए। विचारों की रोशनी आपके अंतर मस्तिष्क को विकसित करेगी। खाली बैठने के बजाय कुछ न कुछ करते रहिए। आपके पास कितनी शक्ति है उसका आप आप स्वयं नहीं कह सकते। आपकी बुद्धि के विकास के लिए पुस्तकों का वाचन कीजिए, गुरू के मुख से प्रवचन सुनिए शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनने के भाव जगाए।