अहमदाबाद। कोई भी कार्य या क्रिया के पीछे कारण भाव अवश्य छुपा हुआ ही होता है। छोटे बच्चे को विद्यालय में प्राथमिक शाला में डाला जाता है। वहां से प्रारंभ करते समय ही विद्यार्थी को समझाया जाता है, उसे बताया जाता है कि यह ज्ञान तुम्हें किन ऊंचाइयों तक ले जाने वाला है। मंजिल तो पहले से तय करनी ही पड़ती है तब ही सही दिशा में पुरुषार्थ कर पाते है।
श्री लब्धि-विक्रम गुरूकृपा प्राप्त, प्रखर प्रवचनकार, सुप्रसिद्ध जैनाचार्य, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू. आ.देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित धर्मानुरागी आराधकों को संबोधित करते हुए फरमाया कि चित्त की दशा ऐसी होती है कि चिंतन से संकल्प उत्पन्न होते है। संकल्प की दृढ़ता और स्थिरता बनाए रखने से अवश्य सिद्धि हासिल होती ही है। सृष्टि के समस्त सफल व्यक्तियों के जीवन की झांखी लेंगे तो यह जानने को मिलेगा कि वे अपने संकल्प में, मंजिल पहुंचने में दृढ़ रहे-एकाग्र रहे परिणाम स्वरूप उन्हें अपने मन चाहे कार्य में सफल रहे। संकल्प की प्रबलता पे उसके आधार से समस्त जीवन चलता रहेगा। अर्जुन की याद आ ही जाती है। अर्जुन आज भी श्रेष्ठ धनुर्धर के रुप में प्रसिद्ध है। उसके शिक्षा काल में आंखें तो पता चलता है कि अथाग परिश्रम से, प्रबल पुरूषार्थ से तथा धनुर्विद्या में श्रेष्ठतम बनने के संकल्प को दृढ़ बनाकर ही आगे बढ़ते गए और परिणाम दुनिया के समक्ष है। इतिहास सामान्य लोगों का नहीं बल्कि विशिष्ट और श्रेष्ठ व्यक्तियों का लिखा जाता है।
पूज्यश्री फरमाते है कि जिन्हें जीवन में महान कार्य करने हो उन्हें ये छोटी-मोटी बातों पे ध्यान नहीं देना चाहिए। दृष्टि केवल लक्ष्य पे केंद्रित करें ताकि उस तक पहुंचने का रास्ता भटक ना जायें। दुनिया वाले बोलते उसी को है जो कार्य करने की क्षमता को धारणा करता हो। अत: उससे चलित हुए बिना अपने लक्ष्य तक पहुंचने के रास्ते पे निश्चल रहे। चाहे दुनिया इधर से ऊधर हो जाये लेकिन संकल्प दृढ़ रहना चाहिए। समस्त सृटि को बदलने की शक्ति यदि किसी में हो तो वह संकल्प है। जिनका संकल्प दृढ़ होता है उन्हें दुनिया की तमाम शक्तियां कहती है हम तुम्हारें साथ है, पास है। कोई भी कार्य के लिए निष्ठा एवं संकल्प से लग जाये तो अवश्य कार्य सिद्ध होकर ही रहेगा। ऐडिसन जैसे वैज्ञानिक ने सोचा कि दुनिया को द्रव्य अंधकार से मुक्ति दिलाना है अत: द्रव्य प्रकाश रुपी लाईट की शोध करने लगे। हजारों प्रयोग निष्फल गए लेकिन फिर भी निराश-हताश हुए बिना अपने लक्ष्य तक पहुंचाने वाले रास्ते पे चलते रहे और आखिर वे सफल रहे।
सतत निरंतर जब कोई व्यक्ति एक ही कार्यके पीछे गल जाये तब उसे सफलता अवश्य मिलती ही है। मन में केवल चिंतन होना चाहिए संकल्प स्वयं ही उत्पन्न हो जायेंगे। प्रेरणात्मक प्रवचनकार पूज्यश्री फरमाते है कि तीन लोक में श्रेष्ठ जिनशासन में वर्तमान में नन्हें मुन्ने बच्चे भी इतनी हा दृढ़ता से अट्ठाई-सिद्धि तप, नव्वाणुं-उपधान तप आदि करते है। बस मन में संकल्प किया तो कैसे भी करके देव-गुरू की कृपा से यह कार्य यह तपश्चर्या तो करना ही है। अत: कहा गया है कि मनुष्य यदि संकल्प करें तो सब कुछ हासिल कर सकता है। संकल्प से सब कार्य सिद्ध हो सकते है। मात्र दृढ़ता एवं प्रबलता की आवश्यकता होती है। प्रत्येक श्रावक को मोक्ष में जाने का, परमात्म पद प्राप्त करने का संकल्प अवश्य रखना ही चाहिए।
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