अर्थव्यवस्था में नगदी की जगह डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने की हो रही कोशिशें कामयाब होती दिख रही हैं। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की शोध रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में अनौपचारिक आर्थिकी का हिस्सा महज 15 से 20 फीसदी रह गया है। वर्ष 2018 में यह आंकड़ा 52.4 प्रतिशत था। पांच साल पहले हुई नोटबंदी के बाद किये गये उपायों तथा महामारी के दौरान पैदा हुए हालात ने इसमें बड़ा योगदान किया है। अर्थव्यवस्था का डिजिटलीकरण नोटबंदी के मुख्य उद्देश्यों में था।
जन-धन खाता, लाभुकों के खाते में भुगतान, मोबाइल बैंकिंग का प्रसार, ई-श्रम पोर्टल आदि से इस उद्देश्य को पाने में सहयोग मिला है। छोटे-से-छोटे कारोबारी और कामगार के लिए सरकार ने अनेक योजनाएं चलायी हैं। उल्लेखनीय है कि नोटबंदी, जीएसटी और फिर महामारी से सबसे अधिक प्रभावित अनौपचारिक सेक्टर ही हुआ था। डिजिटलीकरण से इस सेक्टर को कर्ज, बीमा, बचत आदि से संबंधित बेहतर अवसर प्राप्त हुए हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का डिजिटल भुगतान सूचकांक भी इसे इंगित करता है। इसी के साथ, नकली नोटों का चलन भी बहुत कम हो गया है। साल 2019 में 3.1 लाख नकली नोटों की पहचान हुई थी, पर अब यह आंकड़ा दो लाख पर आ गया है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के संग्रहण तथा भविष्य निधि खातों की संख्या में वृद्धि भी डिजिटल लेन-देन के महत्व को रेखांकित करती है। पर, अभी भी नगदी का चलन उच्च स्तर पर है। वित्त वर्ष 2020-21 में यह चलन सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 14.5 प्रतिशत है। हालांकि 2018 से ही इसमें बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन अभी इसकी सबसे बड़ी वजह महामारी रही है, जब एक ओर लॉकडाउन व अन्य कारणों से जीडीपी में भारी संकुचन आया, वहीं दूसरी ओर नगदी की मांग बढ़ गई। यह मांग अभी भी बनी हुई है और इसे नीचे आने में कुछ समय लग सकता है। यह स्थिति पूरी दुनिया में है। अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने के साथ-साथ इसमें सुधार के संकेत भी मिलने लगे हैं। बीते 29 अक्टूबर को नगदी का चलन बजट में आकलित वित्त वर्ष 2022 की जीडीपी का 13.2 प्रतिशत था। जानकारों का मानना है कि आर्थिक गतिविधियों के तेज होने, बाजार में मांग व आपूर्ति बढऩे तथा मुद्रास्फीति में कमी होने के साथ यह चलन भी नीचे आएगा। यह भी समझा जाना चाहिए कि डिजिटल भुगतान करनेवाले लोग भी आम उपभोक्ता होते हैं, जो बहुत सारी खरीदारी नगदी में करते हैं। डिजिटल संसाधनों का समुचित विकास अभी कस्बों और गांवों में अपेक्षित ढंग से नहीं पहुंच सका है। मोबाइल और इंटरनेट के विस्तार के साथ इस अभाव को कम किया जा सकता है। बैंकों समेत वित्तीय संस्थाओं और वित्तीय तकनीक की कंपनियों को व्यावहारिक चुनौतियों के समाधान के लिए अधिक सक्रिय होना चाहिए।
उम्मीद की जानी चाहिए कि सुधारों की गति बरकरार रखते हुए सरकार भी नियमन और निगरानी को लेकर मुस्तैद बनी रहेगी।
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