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मुंबई। महामंगलकारी शास्त्रों के वचन सुनने के बाद पाप से अटकना चाहिए। मनुष्य जीवन का समय ऐसे ही चला जाता है। हजार काम को छोड़कर जो काम महत्व का है उसे पहले कर लेना चाहिए। महान संयम के भाव जगे, शुभ विचार, सदाचार युक्त जीवन, वैर बिना का जीवन उसे प्रायोरिटी गिनना चाहिए। 
मुंबई से बिराजित प्रखर प्रवचनकर संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है। जिसने शास्त्रों की बात को सही ढंग से समझकर उसे अपने जीवन में उतारा है वह व्यक्ति हरेक क्षण को फालतू जाने नहीं देना। वैर क्लेश में हम फालुत समय को बिगाड़ते है। किसी ने हमें गाली दी। बदला लेने के लिए वर्षों तक उस बात को याद रखते है। नेन्शन मंडेला को जेल हुई। जेलर ने मंडेला के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया। गलत गलत भी सिखाया अमेरिका के प्रेसिडन्ट ने मंडेला से पूछा, जेलर ने तुम्हारे साथ बुरा बर्ताव किया। तुं उसके साथ बदला नहीं ले रहा है? मंडेला ने जवाब दिया। पहले से मैं टेंशन ले रहा है? मंडेला ने जवाब दिया। पहले से मैं टेंशन में था अभी भी फालतु टेंशन मोल क्यों लुं?
उदायन राजा आजु बाजु के विस्तार को जीतकर अपने वश में कर रहा था। उदायन राजा के एक राजपुत्र को इस बात की ईष्यो हुई कि मेरा बाप सभी को हराकर राज्य को अपने वश में कर रहा है पिता का बदला लेने के लिए उसने उज्जैनी के राजा चंडप्रधोत से दोस्ती की। चंडप्रधोत राजा को उदायन राजा के साथ पहले से वैर इसलिए वह राजपुत्र के साथ मिलकर उदायन को खत्म करना चाहता था।
हमारे में बदले की भावना कब होती है? जब कोई हमारे साथ बुरा बर्ताव करता हो तब। हमारे साथ बुरा क्यों होता है? कम के कारण।कर्म बांध तो लेते है फिर वहीं कर्म किसी ने किसी रूप में उदय में आता है। चंड कौशिक शॉप ने भगवान महावीर को डंक मारा। उस समय भगवान के मन में ऐसा विचार नहीं आया कि मैं इसके टुकडुे-टुकडुे कर दूं। भगवान में बदले की भावना नहीं थी बल्कि भगवान महावीर ने चंडकौशिक को कहा, बुज्झ-बुज्झ। क्षमा करना सीखो मेटर खतम हो जाता है। दुर्लभ इस मानव जीवन को पाकर हमें अच्छे काम करने है।
राजपुत्र के मन में वैर की भावना है  राज्य को छोड़कर किसी षड्यंत्र की रचना के लिए चंपानगरी गए। अचानक विचार आया उदायन राजा को जैनाचार्य से खूब अेटेचमेंट है। उनके साथ मिलकर बदले की भावना पूरी हो जाएगी। आचार्यश्री के पास गए। संसार की असारत को बताते हुए हुए गुरू महाराज से विनंति की। हमें दीक्षा दो माया एवं कपट भयंकर चीज है। कोई कितना भी बना जाए मालूम नहीं पड़ता है। गुरू महाराज ने दीक्षा दे दी गुरू का विनय एवं वैयावच्च करके गुरू का प्रेम जीत लिया. गुरू ले विनय रत्न नाम दिया। एक वैर का बदला लेने के लिए संसार चोड़ा एवं तप करने लगे। संयम जीवन का पालन करते हुए भी मन में एक ही भावना कब उदायन राजा को माऊं।
मद्रास का एक किस्सा है लड़के की बुद्धि कमचोर थी फिर भी बाप उसे अच्छी तरह से पालन पोषण कर रहे थे। उस लड़के को किसी लड़की से प्रेम हुआ। बाप ने उसे खूब समझाया परंतु लड़का समजा नहीं। एक दिन उसी लड़के ने खाने में जहर मिला दिया। बाप खाना खाने बैटे। कुछ अलग स्वाद आने से उठकर खड़े हो गए। समझ गए कि मुझे मारने के लिए बेटे ने यह चाल चली ती। गुजराती में कहावत है छोरू कछोरू याय मावतर कुमावतरन थाय। लड़का कितना भी खराब निकले माता कभी कुमाता नहीं होती है। बाप उसी लड़के का फिर से पालन पोषण करने लगे। उदायन राजा ने गुरू महाराज को विनंति करके अपने महल में बुलवाया। साथ में विनयरत्न भी आए। संथारा पोरिसी के बाद उदायन राजा एवं उसके गुरू सो गए थे। विनय रत्न म. में भी सोने की अेक्टिंग की। रात के समय ओधे में से कंकोली चूरी को निकालकर उदायन राजा के गले की नर्स कांट दी। खून की धारा बही गुरू का संथारा भीग गया। गुरू खड़े हुए। अनहोनी को कोई नहीं रोक सकता है। आचार्य महाराज विचार में पड़ गए। कल सुबह होगी। लोग पूछेंगे। कितनी भी सफाई दूंगा। कोई मेरी बात नहीं मानेंगे। शासन की अपभ्राजना होगी। लोग निंदा करेंगे। इसकारण से गुरू महाराज से उसी छूरी से अपना गला कांटकर शहीद हो गए। जो जैन है वह मुस्तक पर तिलक करेगा कहेगा, कभी दुराचार नहीं करूंगा, किसी को ठगूंगा नहीं।
पूज्यश्री आगे फरमातेहै विनयरत्न वहां से सीधा चंडप्रधोत राजा के पास मया एवं कहां मैंने आपका काम कर दिया है। 16 वर्ष तक साधु के वेष में रहकर छूरी से उदायन राजा को मार डाला। चंडप्रधोत राजा गुस्से में कहने लगे चला जा यहां से। धर्म के नाम से अनीति करता है। जैन कथा का इतिहास देखो, शासन के लिए आचार्यश्री से अपने जीवन का बलिदान दिया। हमें भी शासन के लिए कुछ भी कर मिटने के लिए तैयार रहना चाहिए।