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भारत की एकदिवसीय क्रिकेट टीम की कप्तानी से विराट कोहली को हटाने को लेकर विभिन्न प्रकार की चर्चाएं हो रही हैं. इस संदर्भ में यह समझना जरूरी है कि इसकी पृष्ठभूमि कुछ समय पहले से ही बन रही थी। यह जगजाहिर तथ्य है कि लंबे समय से तीनों प्रारूपों की टीमों का संचालन कोच रवि शास्त्री और कप्तान विराट कोहली कर रहे थे और अपनी इच्छा से कर रहे थे। जब से सौरभ गांगुली भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष बने, उसी समय से वे दो बातों को लेकर निश्चित थे- एक यह कि रवि शास्त्री को लेकर लंबे समय तक नहीं चला जा सकता है तथा दूसरी बात यह कि भारतीय टीम का प्रदर्शन इसलिए अच्छा है, क्योंकि टीम अच्छी है और इसमें कोच की कोई विशेष भूमिका नहीं है। उनका यह भी मानना रहा है कि टीम की 60-65 प्रतिशत सफलता से हम संतुष्ट हो जा रहे हैं, पर अगर टीम को अच्छा नेतृत्व मिले, तो वह इससे कहीं अच्छा प्रदर्शन करने की क्षमता रखती है। गांगुली की नजर में वर्तमान टीम की दो कमियां रही हैं- एक, इसने कोई भी आइसीसी कप नहीं जीता है, और दूसरा यह कि टीम की संरचना की वजह से हम अनेक अहम मैच हार गये हैं। यह पृष्ठभूमि रही है भारतीय टीम के इंग्लैंड दौरे से पहले। इंग्लैंड दौरे में लगातार चार मैचों में अश्विन को बाहर बैठाये रखा गया था। न्यूजीलैंड से हार के बाद विराट कोहली ने संवाददाता सम्मेलन में यह कह दिया था कि टीम ने गंभीरता से नहीं खेला था। कुछ खिलाडिय़ों को यह बात अच्छी नहीं लगी थी। इंग्लैंड दौरे में गांगुली और जय शाह भी थे। वहां कुछ खिलाडिय़ों ने गांगुली से मुलाकात की थी, जिनमें अश्विन भी थे और उन्होंने कहा कि जिस तरह से खेलनेवाले 11 खिलाडिय़ों को चुना जाता है, उस प्रक्रिया से वे नाखुश हैं क्योंकि उसमें कोई पारदर्शिता नहीं है। इसका मतलब यह था कि शास्त्री और कोहली की इच्छा से ही टीम बनती है। उसी दौरान बोर्ड ने यह तय कर लिया था कि कोच के तौर पर रवि शास्त्री का कार्यकाल आगे नहीं बढ़ाया जायेगा। ऐसे में नये कोच की खोज शुरू हुई। इनके सामने सबसे प्रमुख नाम राहुल द्रविड़ का था, लेकिन वे हिचक रहे थे। इसका कारण यह था कि द्रविड़ ने देखा था कि पहले विराट कोहली ने कोच अनिल कुंबले के साथ किस तरह का व्यवहार किया था। वे तैयार नहीं हो रहे थे, तो बोर्ड ने उन्हें भरोसा दिलाया कि अगर उनके और कोहली के बीच में कोई समस्या आती है, बोर्ड का पूरा समर्थन द्रविड़ के साथ होगा। साथ ही, नेतृत्व यह भी मन बना चुका था कि विराट कोहली को एक टीम की कप्तानी से हटा दिया जायेगा। कुल मिला कर, वर्तमान विवाद का विश्लेषण यही है। अब यह हुआ कि विराट कोहली इस स्थिति को पचा नहीं सके। राहुल द्रविड़ को कोच बनाया जाना उन्हें पसंद नहीं आया।
 उन्होंने टी20 टीम की कप्तानी तो छोड़ दी, पर वे एकदिवसीय टीम का कप्तान बने रहना चाहते थे। अब समस्या यह रही कि जब कोहली ने टी20 की कप्तानी छोड़ी थी, तभी उन्हें यह संकेत दे देना चाहिए था कि वे एकदिवसीय टीम की कप्तानी भी छोड़ दें और भारतीय टेस्ट टीम का नेतृत्व करते रहें, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

यह सब ढंग से उन्हें बता दिया जाना चाहिए था। अब जब टीम की घोषणा की गयी, तब बोर्ड ने कोहली को जानकारी दी कि अब वे एकदिवसीय टीम के कप्तान नहीं रहेंगे। बस इस विवाद की इतनी ही कहानी है और यह सब सही संवाद की कमी का नतीजा है। ऐसा नहीं है कि किसी भी संबंधित व्यक्ति या पक्ष का इरादा ठीक नहीं है।

मेरा मानना है कि मौजूदा प्रकरण बहुत जल्दी समाप्त हो जायेगा और इसके लंबा चलने की कोई उम्मीद नहीं है। ऐसा कहने के पीछे तीन कारण हैं। ऐसी किसी समस्या के गंभीर होने की एक बड़ी वजह यह होती है कि किसी का इरादा या उद्देश्य ठीक नहीं हो। यहां न तो सौरभ गांगुली का इरादा खराब है और न ही राहुल द्रविड़ या विराट कोहली या रोहित शर्मा का इरादा खराब है।

ये सभी लोग अपनी भूमिका को समझ रहे हैं और जो कमी होगी, वह भी जल्दी ही समझ में आ जायेगी। इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमों में क्रिकेट के हर रूप में अलग-अलग कप्तान होते हैं। उनके यहां यह प्रक्रिया पहले ही अपनायी जा चुकी है। अब हमारे यहां इसे लागू किया जा रहा है। इस बात को हमारे खिलाड़ी भी जल्दी समझ जायेंगे, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।

जैसा मैंने पहले रेखांकित किया है कि आज जो स्थिति बनी है, वह ठीक से आपसी संवाद न हो पाने के कारण पैदा हुई है, पर यह आशा की जा सकती है कि सभी संबद्ध लोग एक-दूसरे के संपर्क में होंगे और गलतफहमियों व शिकायतों को दूर किया जा रहा होगा। इस चर्चा में एक व्यावहारिक पहलू का भी संज्ञान लिया जाना चाहिए।

हम सब जानते हैं कि क्रिकेट के तीनों रूपों में बहुत अधिक मैच खेले जा रहे हैं। महामारी के कारण खिलाडिय़ों को बायो-बबल में रहना पड़ता है। ऐसे में एक नेतृत्व तीनों टीमों में अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभा सकता है। आखिरकार खेल प्रशंसकों को क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड, कोच, कप्तान और खिलाडिय़ों से बेहतर खेल की अपेक्षा रहती है। इन सभी की भी यही इच्छा और कोशिश होती है। गुटबंदी और बेमतलब बयानों से भारतीय क्रिकेट को बड़ा नुकसान हो सकता है। ऐसा नहीं होना चाहिए। (बातचीत पर आधारित)।