मुंबई। जिस कुटुंब में वात्सल्य, विवेक, विनय नहीं उस कुटुंब को युद्ध भूमि बनने में देर नहीं लगती है। बर्तन खडख़ड़ाने से पता चलता है कि टूटा हुआ है या पूरा है। उसी प्रकार मानव के बोलने से पता चलता है कि वह मूर्ख है या सीधा है। पेट में गया हुआ विष मानव को एक ही झटके से समाप्त कर देता है परंतु कान में गया हुआ विष मानव को धीरे-धीरे खतम करता है। इसीलिए वाणी सत्य, मधुर तथा प्रिय बोलनी चाहिए। पाणी का बेखबर बाढ़ यदि गामो गाम को डुबा देता है तो वाणी का गाफिल उपयोग कुटुंबों के कुटुंब को तहसनहस कर देता है।
में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प।पू। राजयश सूरीश्वरजी म।सा। श्रोताजनों को संबोधित करते हुए जबकि शब्द का नियंत्रण तो सिर्फ विवेक से ही हो सकता है।
शरीर में फिरता हुआ खून यदि बिगड़ जाता है तब शरीर रोगों से ग्रस्त बन जाता है। मुरदे को लम्बे समय तक रखने से घर में दुर्गन्ध आती है उसी प्रकार ह्रदय में लम्बे समय तक व्यक्ति के प्रति रहा हुआ द्वेषभाव से जीवन भी दुर्गन्ध मयी बनता है। जिस प्रकार गाडी में ब्रेक चाहिए उसी प्रकार जीभ के उपर भी ब्रेक लगाना जरूरी है।
जीवन में कभी भी किसी को चोट लगानी नहीं न ही दूसरों के द्वारा लगाई हुई चोट को याद रखनी। शब्द की ताकात अणुबोंब से भी ज्यादा अणुबोंब तो बाझ जगत का नाश करता है अंतर जगत को नहीं। अणुबोंब शरीर का नाश करता है आत्मा का नहीं। द्रौपदी के शब्दों से पांडवो पर आभ टूट पड़ा था इन शब्दों के कारण ही महाभारत का युद्ध हुआ। लाखों लोगों के मौत से अनेक कुटुंबियों की बरबादी हुई। व्यक्ति के ये बुरे शब्दों उनके अंतर में रहे हुए दुर्गुणों या सद्गुणों का ऐक्सरे या सोनोग्राफी है बुरे शब्द बोलने वालों को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि लकड़ी की मार से किसी के हाथ अथवा पैर टूट कर भी ठीक हो सकता है परंतु किसी का मन अतवा ह्रदय टूट पाए तो उसे दोडऩा मुश्किल है।
पूज्यश्री फरमाते है वाणी से आदमी के साथ वैर भी होता है तथा वाणी से आदमी को वश भी किया जाता है। कड़वा वचन तो मौत बिना का मृत्यु है वाणी को दूध तथा घी की तरह उपयोग करना परंतु कभी वाणी को पानी की तरह उपयोग मत करना। इसीलिए कहते है धीरे बोलो, थोड़ा बोलो एवं सभी को अच्छा लगे वैसे बोल बोलो। मानव को केंची की तरह जीभ नहीं चलानी चाहिए। झगड़े का मूल वाणी का दुरूपयोग है। किसी भी परिस्थिति में फीट होने से फाईट नहीं होनी है। हरेक परिस्थिति में फीट होने से फाईट नहीं होनी है। हरेक परिस्थिति को शांत मन से तथा हलकापन से लेना चाहिए।
कभी भी किसी के ऊपर गुस्सा नहीं करना चाहिए। न ही उसे फटकारना चाहिए बल्कि नम्रता एवं विवेकपूर्वक उसे समझाना चाहिए।
एक भिखारी सेठानी के पास गया। सेठनी ने उस पर दया खाकर सब्जी एवं खीचडी उसे दी भिखारी खाते खाने सेठानी को बोलने लगा सेठानी को बोलने लगा, सेठानी जी आपने ज्यादा काके आपका शरीर भैंस की तरह बना दिया है। आप घर में कुछ कामकाज करते हो या फालतु घर में बैठे ही रहने हो। यह सुनने ही सेठानी आग बबूला हो गई। बड़ा डंडा हाथ में लेकर आई। तथा कहने लगी जहां खाता है तुं वही चूकता है। उठ खड़ा हो जा। अभी तुं घर से बाहर निकल नहीं तो डंडे की मार खाएगा। भिखारी रस वाली सब्जी तथा खीचड़ी लेकर भागा। सब्जी का रस कपड़े में से गिरता देखकर किसी ने भिखारी को पूछा, ये क्या गिर रहा है भिखारी ने जवाब दिखाया मेरी जीभ टपक रही है।
ज्यादातर लोग बुरा बोलकर दुखी होते है। इसीलिए सोच समझकर बोल बोलो। विवेक बिगैर का खाता है तो हॉस्पिटल में अडमीट होना पड़ता है विवेक बिगैर का बोलता है तो महाभारत का सर्जन होता है भाषा सौम्य होनी चाहिए। गोली से ज्यादा बोली की मार ज्यादा है। गोली की मार ठीक हो जाएगी परंतु बोली की मार तो कभी ठीक होने वाली ही नहीं है। वाणी का विवेक घर को स्वर्ग से सुंदर बनाता है। बस, जीभ पर कंट्रोल रखकर विवेक युक्त वाणी बोलकर शीघ्र आत्मा का कल्याण करें।