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समवेत शिखर डेस्क। दीपों का त्योहार दिवाली हर बार की तरह इस बार भी कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाएगी। 14 नवंबर यानी आज मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाएगी. शाम 5:40 से रात 8:15 तक पूजा का शुभ मुहूर्त है। ऐसे में आइये जानते हैं प्रकाश के इस पर्व की पूजा विधि, क्या है इसका महत्व, रंगोली बनाना क्यों जरूरी, कथा, शुभ मुहूर्त और पूजा सामग्री सभी की विस्तृत जानकारी दे रहे हैं।

इस दिन लोग अपनी तरक्की समृद्धि और घर की शांति का वरदान मां लक्ष्मी और श्री गणेश से मांगते हैं। विधि-विधान से पूजा-अर्चना करके भगवान का आह्वान किया जाता है। आपको बता दें कि चतुर्दशी तिथि 14 नवंबर की दोपहर 1 बजकर 16 मिनट तक रहेगी. इसके बाद अमावस्या लग जाएगा।

दोनों दिवाली एक ही दिन

ज्योतिष गणना के अनुसार इस बार छोटी व बड़ी दिवाली दोनों दिवाली एक ही दिन मनायी जाएगी. दरअसल, कार्तिक मास की त्रयोदशी से भाईदूज तक दिवाली का त्योहार मनाने की परंपरा होती है, लेकिन, इस बार छोटी दिवाली और बड़ी दिवाली 14 नवंबर यानी कार्तिक मास की चतुर्दशी को मनायी जाएगी।
 
 शुभ मुहूर्त
14 नवंबर को चतुर्दशी तिथि है. यह दोपहर 1:16 तक रहेगी। 
इसके बाद अमावस तिथि शुरू हो जाएगा जो 15 नवंबर की सुबह 10:00 बजे तक रहेगा। ऐसे में शाम 5:40 से रात 8:15 बजे तक दिवाली पूजा का शुभ मुहूर्त है। 15 तारीख को केवल स्नान दान की अमावस्या की जाएगी। 
 
यंत्र-तंत्र की पूजा जरूरी
मां लक्ष्मी के साथ-साथ दिवाली में में श्री यंत्र की पूजा भी की जाती है। 2020 की दीपावली में गुरु धनु राशि में रहेगा। यही कारण है कि श्री यंत्र की पूजा कच्चे दूध से करने से सभी राशि के जातकों को लाभ होगा. इधर, शनि अपनी मकर राशि में विराजमान होगी। साथ ही साथ इस दिन अमावस्या का भी योग बन रहा है। ऐसे में इस दौरान भी तंत्र-यंत्र की पूजा करनी चाहिए। 
 
दिवाली की पूजा सामग्री
मां-लक्ष्मी और श्री गणेश की पूजा-पाठ के लिए आपको कुमकुम, चावल (अक्षत), रोली, सुपारी, पान, लौंग, नारियल, इलायची, अगरबत्ती, धूप, रुई बत्ती, मिट्टी, दीपक, दूध, दही, गंगाजल शहद, फल, फूल, चंदन, सिंदूर, पंचमेवा, पंचामृत, श्वेत-लाल वस्त्र, चौकी, कलश, जनेऊ, बताशा, कमलगट्टा, संख, माला, एक आसन, हवन कुंड, आम के पत्ते, लड्डू काजू की बर्फी व अन्य सामग्री की जरूरत पड़ सकती है। 
 
दीपावली पूजन विधि
सबसे पहले आपको पूजा वाली चौकी लेना होगा, उसे साफ करके कपड़ा बिछाना होगा। अब मां लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी की प्रतिमा को वहां स्थापित करें। याद रहे मूर्तियों का मुख हमेश पूर्व की ओर होना चाहिए। हाथ में थोड़ा गंगाजल ले लें, अब भगवान की प्रतिमा पर निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए छिड़कें। 
ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।।
इसके बाद जल को अपने आसन और खुद पर भी छिड़कें। अब धरती मां को प्रणाम करें और आसन पर बैठें, हाथ में गंगाजल लेकर पूजा करने का संकल्प करें। इसके बाद जल से भरा कलश लें और मां लक्ष्मी के पास अक्षत की ढेरी रखें. अब कलश पर मौली बांध दें और ऊपर आम का पल्लव रखें। उसमें सुपारी, दूर्वा, अक्षत व सिक्का रखें। कलश पर एक नारियल स्थापित करें. नारियल लाल वस्त्र में लपेटा होना चाहिए।  याद रहे उसका अग्रभाग दिखाई देता रहे। इसे कलश वरुण का प्रतीक माना गया है।  अब सबसे पहले श्री गणेश जी की पूजा करें। फिर मां लक्ष्मी जी की अराधना करें. वहीं, इस दौरान देवी सरस्वती, भगवान विष्णु, मां काली और कुबेर का भी ध्यान लगाएं। पूजा के समय 11 या 21 छोटे सरसों के तेल के दीपक जरूर जला लें और एक बड़ा दीपक भी जलाएं। इसके अलावा एक दीपक चौकी के दाईं ओर एक बाईं ओर रख दें। भगवान के बाईं तरफ घी का दीपक जलाकर रखें और फूल, अक्षत, जल व मिठाई उन्हें अर्पित करें। अपने इच्छा अनुसार गणेश, लक्ष्मी चालीसा पढ़ सकते हैं। अब गणेश जी और मां लक्ष्मी की आरती उतारें और उन्हें भोग लगाकर पूजा संपन्न करें। 11 या 21 दीपकों को घर के सभी दरवाजों के कोनों में रख दें। याद रहे पूरी रात पूजा घर में एक घी का दीपक भी जलता रहना चाहिए। यह बेहद शुभ माना जाता है।