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नेशनल डेस्क (सशि)। फेस्टिव सीजन के बीच बाजारों और घरों में खूब रौनक देखने को मिलती है।  दिवाली से दो दिन पहले जहां धनतेरस की चहल-पहल देखने को मिलती है, वहीं दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा से वातावरण कृष्णमय हो जाता है।  हर त्योहार से कोई न कोई पौराणिक कथा जुड़ी हुई है, ऐसे में क्या आप जानते हैं कि दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है, इसके पीछे क्या कहानी है।  आइए, जानते हैं- 

इसलिए मनाई जाती है गोवर्धन पूजा 
गोवर्धन पूजा से श्रीकृष्ण की एक लीला जुड़ी हुई है।  मान्यता है कि बृजवासी इंद्रदेव की पूजा करने की तैयारियों में लगे हुए थे।  सभी पूजा में कोई भी कमी नहीं छोड़ना चाहते थे, इसलिए अपना सामर्थ्यनुसार सभी इंद्रदेव के लिए प्रसाद और भोग ली व्यवस्था में लगे हुए थे। यह सब देखकर श्रीकृष्ण ने अपनी माता यशोदा से सवाल किया कि आप किसकी पूजा की तैयारियां कर रहे हैं,  इसपर माता यशोदा ने उत्तर दिया कि वो इंद्रदेव की पूजा करने की तैयारियों में लगी हुई हैं। 
मईया ने बताया कि इंद्र वर्षा करते हैं और उसी से हमें अन्न और हमारी गायों के लिए घास-चारा मिलता है। यह सुनकर कृष्ण जी ने तुरंत कहा मईया हमारी गाय तो अन्न गोवर्धन पर्वत पर चरती है, तो हमारे लिए वही पूजनीय होना चाहिए। इंद्र देव तो घमंडी हैं, वह कभी दर्शन नहीं देते हैं। कृष्ण की बात मानते हुए सभी ब्रजवासियों ने इन्द्रदेव के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा की। इस पर क्रोधित होकर भगवान इंद्र ने मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। वर्षा को बाढ़ का रूप लेते देख सभी ब्रज के निवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगें। तब कृष्ण जी ने वर्षा से लोगों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कानी अंगुली पर उठा लिया।

इसके बाद सभी गांववासियों ने अपनी गायों सहित पर्वत के नीचे शरण ली। इससे इंद्र देव और अधिक क्रोधित हो गए तथा वर्षा की गति और तेज कर दी। इन्द्र का अभिमान चूर करने के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियंत्रित करें और शेषनाग से मेंड़ बनाकर पर्वत की ओर पानी आने से रोकने के लिए कहा। इंद्र देव लगातार रात-दिन मूसलाधार वर्षा करते रहे। कृष्ण ने सात दिनों तक लगातार पर्वत को अपने हाथ पर उठाएं रखा। इतना समय बीत जाने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि कृष्ण कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं। तब वह ब्रह्मा जी के पास गए तब उन्हें ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण कोई और नहीं स्वयं श्री हरि विष्णु के अवतार हैं। इतना सुनते ही वह श्री कृष्ण के पास जाकर उनसे क्षमा मांगने लगें।
इसके बाद देवराज इन्द्र ने कृष्ण की पूजा की और उन्हें भोग लगाया। तभी से गोवर्धन पूजा की परंपरा कायम है। मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं। इस दिन गाय के गोबर के टीले बनाने की भी परंपरा है जिन्हें फूलों से सजाया जाता है और इनके आसपास दीपक जलाएं जाते हैं। इन टीलों की परिक्रमा भी की जाती है ,जिसे गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा के जैसा माना जाता है।