पुनीराम गुरूजी
सभी धर्मो ने किसी न किसी अपने धर्म संस्थापक को ईश्वर का रूप दिया है और उसके उपदेषो को अंगीकार करके उसके मार्ग मे चलने का काम किया है, इसलिए हम ईश्वर को जानने और मानने के लिए किसी न किसी धर्म का सहारा जरूर लेतें हैं और धर्म के सच्चाई तक पहुंचने का प्रयास करते है, धर्म हमे अच्छाई और बुराई का ज्ञान कराता है लेकिन अलग अलग धर्मों में समाज को टुकड़ों में बांट देता है जो जिस धर्म को मानता है वह दूसरे धर्म की निंदा करता है, बुराई निकालता है, और अपने धर्म को अच्छा मानने लगता है। हमे पता नही चलता कि कौन सा धर्म अच्छा है और कौन सा धर्म अच्छा नही है। यदि धर्म नही होता तो ईश्वरवाद ही नही होता, न ही अलग अलग धर्मो के अलग अलग ईश्वर होते।
धर्म हमें समाज को समझने का अवसर देता है कि कौन सा धर्म अच्छा है और कौन बुरा है इन्ही को आधार मानकर सभी धर्मेां का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि घर्म अच्छा है कि नही, कि धर्म अच्छा नही है। हमे सच्चाई की ओर जाना पड़ेगा किसी धर्मषास्त्र को पढ़ लेने और उसके मार्ग में चलने मात्र से ईष्वर की प्राप्ति नही होती है यदि हो जाती तो सभी कोई किसी न किसी धर्म को अंगीकार करके जीवन जी रहें है जो किसी भी धर्म को नही मानने वाले लोग खोजने पर कोई कोई मिल सकता है, बाकी सारी दुनिया किसी न किसी धर्म से जुड़ा हुआ है। आज की स्थिति में जो जिस धर्म को मानते हैं, वे उसी धर्म की गुणगान करते रहते है और अन्य धर्मो की आलोचना करते रहतें है। मानव का जीवन एक पाठषाला है जहां से सारी शिक्षा और ज्ञान समाज में हमे मिलती है। जीवित तो सभी रहतें हेै परन्तु किसी धर्म को आधार मानकर जीवित रहना जरूरी है, यदि नही है तो फिर कैसे जीयें।
मानव में समानता व सहयोग की भावना ही, हमारा प्राकृतिक व मानव धर्म है : जरूरी नही है कि हम किसी धर्म मे जाकर चिपक जाये और उसके नियमो को माने बल्कि इस दुनिया में जीने का सबको अधिकार है, आदमी तो बिना धर्म के भी जीवन जी सकता है। बिना जाति के जीवन संभव है। हम किसी धर्म मे जाकर चिपक जाये उसके नियम को बिना जाने, जो सच्चाई और ईमानदारी को दरकिनार करता हो उसे आंख बंद करके बिना सोंचे समझे मानते रहें, यह आवश्यक नही है। सभी धर्म मे अच्छाई और बुराई तो होती है। हमे चाहिए कि सभी धर्मेा का सार जो है वह हमे अपने जीवन में ग्रहण कर अपनाना चाहिए। जीवनोपयोगी नीतियां जो मानव को ईंसान बना दें। ऐसी ज्ञान ग्रहण करना चाहिए। किसी प्रकार की कल्पित कथा, कहानी, दृष्टांत उदाहरण पर ध्यान नही देना चाहिए, बल्कि आपके जीवन में आज की स्थिति परिस्थिति में जो हो रहा है, जो आप देख रहें हो उसमे सच्चाई और ईमानदारी पर ध्यान देना चाहिए। मानव धर्म हमे प्रकृति की ओर ले जाती है। और सबको समान भाव से देखते हुये समानता, स्वतंत्रता, मानवता की शिक्षा देती है।
दुनिया मे कोई अलग नही है सब एक ही माता पिता के संतान है किसी गांव और शहर में रहने मात्र से वह अलग जाति के नही हो जाते बल्कि सृष्टि में जितने भी मानव स्त्री पुरूष है वे सभी एक माता के संतान है और हम सब भाई, बहन है। यही हमारी मानव जाति है और उनसे समानता का भाव सहयोग का भावना ही हमारा धर्म है। यहां हम सभी मिलजुलकर बिना भेदभाव के रहतें हैं तो फिर हमे प्राकृतिक धर्म और मानव धर्म के अलावा किसी धर्म की आवष्यकता नही है। इसी वाणी और विचार को आप सभी माता पिता, भाई, बहनों तक पहुचाने का मेरा अंतिम ईच्छा है आप सभी को पुनीराम गुरूजी का जय सतनाम।
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