
चीनी मीडिया ने एक वीडियो जारी कर यह आभास कराने की कोशिश की थी कि नए वर्ष के मौके पर उसके जवान गलवन घाटी में उपस्थित हैं। भारतीय सेना की ओर से जारी फोटो से यह साबित हुआ कि चीन ने देश-दुनिया को गुमराह करने की कोशिश की थी।
यह अच्छा हुआ कि भारतीय सेना ने चीन के झूठ की पोल खोलने के लिए गलवन में तैनात अपने जवानों की फोटो जारी कर दी। ऐसा किया जाना इसलिए आवश्यक हो गया था, क्योंकि चीनी मीडिया ने एक वीडियो जारी कर यह आभास कराने की कोशिश की थी कि नए वर्ष के मौके पर उसके जवान गलवन घाटी में उपस्थित हैं। भारतीय सेना की ओर से जारी फोटो से यह साबित हुआ कि चीन ने किसी और स्थान का वीडियो जारी कर देश-दुनिया को गुमराह करने की कोशिश की थी। वास्तव में उसके झूठ का पर्दाफाश तो खुद उसके वीडियो से हो रहा था, क्योंकि उसमें मामूली बर्फ ही दिख रही थी। रही-सही कसर भारतीय सेना की ओर से जारी फोटो से पूरी हो गई। कहना कठिन है कि अपना झूठ बेनकाब हो जाने से चीन शर्मिदा होगा या नहीं, लेकिन कम से कम भारत के उन विपक्षी नेताओं और साथ ही स्वयंभू रक्षा विशेषज्ञों को तो शर्मसार होना ही चाहिए, जिन्होंने बिना कुछ सोचे-समङो चीनी मीडिया का मोहरा बनना पसंद किया। उन्होंने ऐसा इसीलिए किया ताकि प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा जा सके। इस पर हैरानी नहीं कि इनमें सबसे आगे थे राहुल गांधी। वह एक अर्से से यही करते चले आ रहे हैं। वह हर पुष्ट-अपुष्ट सूचना पर वही करते हैं, जो उन्होंने गत दिवस किया। हालांकि यह इस मान्यता के विपरीत ही है कि विदेश नीति के मामले में पक्ष-विपक्ष को एकजुटता दिखानी चाहिए, लेकिन राहुल गांधी मोदी सरकार पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ते, भले ही इसके लिए चीन या फिर पाकिस्तान की भाषा बोलते क्यों न नजर आएं। यह उनका पुराना रवैया है। यद्यपि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने चीनी वीडियो को दुष्प्रचार बताकर उसके झांसे में न आने का आग्रह किया था, लेकिन राहुल गांधी और उनके साथियों ने ऐसा करना ही पसंद किया। उन्हें यह समझ आए तो बेहतर कि चीन के साथ उनके भी दुष्प्रचार की पोल खुल गई है। यहां इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि डोकलाम में गतिरोध के समय राहुल गांधी विदेश मंत्रलय को सूचित किए बगैर चीनी राजदूत से मिलने चले गए थे और जब यह सूचना सार्वजनिक हुई तो कांग्रेस की ओर से ऐसी किसी मुलाकात से इन्कार किया गया, लेकिन तब तक सच सामने आ चुका था। यह भी ध्यान रहे कि कांग्रेस की ओर से आज तक इस सवाल का जवाब नहीं दिया गया कि आखिर उसके नेताओं ने 2008 में अपने बीजिंग दौरे के वक्त चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी से क्या समझौता किया था और क्यों? चूंकि यह समझौता सोनिया गांधी और राहुल गांधी की मौजूदगी में हुआ था इसलिए उस पर स्पष्टीकरण आवश्यक है।