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भारतीय इतिहास, सभ्यता एवं संस्कृति में उत्तर-पूर्वी राज्यों का महत्वपूर्ण स्थान है, परंतु इनकी आर्थिक संभावनाओं को समुचित रूप से साकार नहीं किया जा सका है। अब इस स्थिति में धीरे-धीरे परिवर्तन आ रहा है। बीते कुछ वर्षों से पूर्वोत्तर के लिए बजट आवंटन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है तथा सर्वांगीण विकास के उद्देश्य से कई परियोजनाओं का प्रारंभ हुआ है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मणिपुर में 48 सौ करोड़ रुपए से अधिक लागत की 22 परियोजनाओं के उद्घाटन से इस प्रक्रिया को गति मिलेगी। इस अवसर पर उन्होंने उचित ही आशा जतायी है कि भारत के विकास में पूर्वोत्तर क्षेत्र अग्रणी भूमिका निभायेगा। इनमें इंफ्रास्ट्रक्चर, संपर्क, कौशल विकास, ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व की इमारतों का जीर्णोद्धार तथा स्वास्थ्य सेवा से संबंधित सुविधाओं का विकास शामिल हैं।
बीते अक्टूबर माह में इस क्षेत्र के विकास के लिए समर्पित केंद्रीय मंत्रालय के मंत्री जी किशन रेड्डी ने घोषणा की थी कि स्वदेश दर्शन योजना के तहत उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए 16 परियोजनाओं को स्वीकृति मिली है। आवागमन की सुविधाओं का अभाव पूर्वोत्तर की सबसे प्रमुख समस्याओं में से है। इससे वस्तुओं की ढुलाई में परेशानी आती है और पर्यटन भी प्रभावित होता है।
केंद्र सरकार की योजनाओं में इस पहलू पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। हवाई उड़ानों की संख्या बढ़ाने और हवाई अड्डों को बेहतर करने के साथ रेल सुविधाओं का विस्तार हो रहा है। इसमें पटरियों का दोहरीकरण और विद्युतीकरण मुख्य तत्व हैं। पूर्वोत्तर में सैकड़ों किलोमीटर लंबी नयी सड़कों का निर्माण हो रहा है।
बंगाल के बंदरगाहों से आंतरिक जलमार्गों को जोडऩे से भी संपर्क में सहूलियत होने लगी है। इन पहलों से क्षेत्र में उद्योग और व्यापार के विकास की नई संभावनाएं पैदा हुई हैं। क्षेत्र की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित करने के क्रम में इंद्रधनुष गैस ग्रिड के तहत सभी आठ राज्यों को पाइपलाइन के माध्यम से जोड़ा जा रहा है। पूर्वोत्तर के लिए केंद्रीय मंत्रालय के अतिरिक्त एक पूर्वोत्तर परिषद भी सक्रिय है।
इसका मुख्य कार्य परियोजनाओं को पूरा करना तथा विकास प्रयासों को सहयोग देना है। ऐतिहासिक रूप से पिछड़ेपन की वजह से पूर्वोत्तर के राज्य केंद्रीय आवंटन पर बहुत अधिक निर्भर रहते हैं। सरकार ने भी इस उत्तरदायित्व को गंभीरता से लेते हुए बजट आवंटन में निरंतर वृद्धि की है। वर्ष 2021-22 के बजट में उत्तर-पूर्व के लिए लगभग 56 हजार करोड़ रुपये का आवंटन हुआ था, जो 2020-21 से 14 हजार करोड़ रुपये अधिक था।

साथ ही, यह भी घोषणा हुई थी कि आगामी तीन वर्षों में 34 हजार करोड़ रुपये की लागत से 13 सौ किलोमीटर लंबे राजमार्गों का निर्माण होगा। इसके अलावा केंद्रीय सहायता के तौर पर विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के द्वारा क्षेत्र की योजनाओं पर व्यय करने के 68 हजार करोड़ रुपये भी तय किये गये थे। निश्चित ही, पूर्वोत्तर अस्थिरता एवं वंचना से निकलते हुए विकास की ओर उन्मुख है।