
मुंबई। दुनिया में दो प्रकार के लोग देखने को मिलते हैं कुछ लोग वैरागी तो कुछ लोग मौज मस्ती की जिंदगी जीने वाले वैवाहिक जीवन जीना पसंद करते हंै। कितने व्यक्ति को पूर्व के किसी कर्म के कारण वैवाहिक जीवन जीना ही पड़ता है तो कितने पूर्व के संस्कार से छोटी उम्र में ही दीक्षित हो जाते हैं। अईमुत्ता वज्रस्वामी जैसों ने छोटी उम्र में ही दीक्षा ली थी। ये चीज पूर्व के संस्कार के कारण ही शक्य बनी।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू.राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है वैवाहिक जीवन जीने वालों का जीवन मर्यादामय जीवन होना चाहिए। शादी करनी पड़ी है तो अपनी पत्नी के अलावा अन्य स्त्री पर दृष्टि नहीं करनी चाहिए। कहते है अन्य स्त्री के प्रति दृष्टि करने से मन में विकार भाव उत्पन्न होता है। आज कुल की लड़कियों में सहनशीलता रही नहीं। मां बाप की इजाजत बगैर लड़के को खुद ही पसंद करती है। मां बाप को बिना बताये उस लड़के के साथ भागकर लव मैरिज करती है कुछ दिन तक एक दूसरे के साथ अच्छा बनता है। फिर तो दिन तक एक दूसरे के साथ अच्छा बनता है फिर तो बात-बात में कुछ हुआ तो सीधा एक ही निर्णय तलाक।
पूज्यश्री इसी प्रकार का एक हिस्सा जो हैदराबाद में हुआ था, उसके बारे में बताते है। एक लड़की की शादी उसके मां बाप ने 25 लाख में करवाई। शादी खूब ठाठ-माठ से हुई। लड़की को लड़के के साथ ऐडजस्ट नहीं हुआ। घर आकर पिताजी से कहती है पप्पा! मुझे उस लड़के के साथ नहीं रहना है आप शीघ्र हम दोनों का तलाक करा दो। बाप विचारे क्या करे? उन्होंने आखिर में दोनों का तलाक करा ही दिया।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है शादी एक धंधा सा बन गया है पहले शादी कर लेते है फिर तलाक लेकर पति के हिस्से में से अपना भाग मांगते है। पूर्व के काल ही सतीयां किस-किस प्रकार की होती थी। अनुपमा देवी का रंग काला था तेजपाल ने जब से शादी हुई थी तब से लेकर 12-12 वर्ष था अनुपमा देवी से बातचीत नहीं की फिर भी इस स्त्री के मन में कभीये विचार नहीं आया कि मैं उससे तलाक ले लूं।
इसी तरह अंजना महासती को पवनंजय से 22 वर्ष तक कभी उसके सामने नहीं देखा. फिर भी अंजना ने पवनंजय का कभी त्याग नहीं किया। पूज्यश्री विवाह की सुन्दर व्याख्या बताते है विाह याने सहन करने की कला, विवाह याने पति को पूरा समर्पण, विवाह याने पति को हमेशा साथ देना विवाह याने धर्ममय जीवन, विवाह याने संस्कारमय जीने की कला।
कहते है तीर्थंकरों को परमात्मा को भोगवाली कर्म बाकी रहते हैं, तभी उनको मां बाप की आज्ञा से शादी करनी पड़ती है। मगर वे इस स्थिति में भी शादी भोग के लिए नहीं बल्कि कर्म खपाने के लिए ही शादी करते हंै।
जैनों के लिए जैन विधि से शादी करने की विधि बताई है। यदि हर जैनी इस विधि के मुताबिक अमल करेंगे तो उनके जीवन में त्याग तप की भावना जगेगी। बस, आप भी शादी को बंधन न समझकर मुक्ति का एकरार मानकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।