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मुंबई। इस पृथ्वी पर किसी का भी जन्म निरुद्देश्य नहीं होता। प्रत्येक के जन्म की अहमियत एवं सार्थकता है। हमारा जीवन कीड़े मकोड़े की तरह अर्थहीन नहीं है। हमारा जन्म एवं जीवन दोनों उद्देश्ययुक्त है। उद्देश्यपूर्ण जीवन और सकारात्मक दृष्टि अपनाने पर व्यक्ति का हरेक दिन सार्थक एवं धन्य बन जाता है।
किसी भी व्यक्ति की मानसिकता के अनुसार ही जीवन जीने का मार्ग निर्धारित होता है। मानसिकता विचारों को प्रभावित करती है एवं विचार ही व्यक्त्वि का निर्माण करते हैं। व्यक्तित्व का निर्माण ही जीवन का धन है। बेहतर विचारों से ही बेहतर मानसिकता एवं बेहतर व्यक्तित्व का निर्माण होता है। हमें अपनी मानसिक शक्ति की पहचान स्वयं को करना जरूरी है।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू.राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है असाधारण व्यक्ति अपनी मानसिक शक्ति और आध्यात्मिक शक्ति का प्रयोग करके ही असाधारण बनते है। शारीरिक कमजोरी होगी तो चलेगी लेकिन मानसिक कमजोरी जीवन में कामयाबी के पथ पर नहीं पहुंचा सकेगी।
कमोजर शरीर और मजबूत मन का काम का है लेकिन कमजोर मन और हुष्ट-पुष्ट शरीर किसी काम का नहीं। जीवन का विकास शरीर से नहीं मन से तय होता है। जो लोग शरीर की कसरत करते है वे लोग शरीर के साथ क्या मन को भी मजूत करते है? जीवन में कामयाबी प्राप्त करने के लिए सुंदर चेहरे की नहीं बल्कि मजबूत मन की जरूरत है। जिसका मन मजबूत है वह ईन्सान बड़े से बड़े रोग को, बड़ी से बड़ी बाधा को भी जीत जाता है।
एक युवती जब उन्नीस बरस की हुई तब उसकी मांग चल बसी। कुछ ही दिनों के बाद उसके पिताजी का भी स्वर्गवास हो गया। चाचा-चाची ने उस युवती की संभाल लेकर एक अच्छे युवान के साथ उसकी शादी की। परंतु भाग्य ने उस युवती का साथ न दिया। किसी दुर्घटना में उस युवती का साथ न दिया। किसी दुर्घटना में उस युवती के पति की मृत्यु हो गई। ससुराल वाले ने उसे अपशब्द सुनाकर छोटी बच्ची के साथ घर से निकाल दिया। उस युवान स्त्री ने साहस बटोरकर बच्ची के पालन पोषण के लिए चपरासी की नौकरी की साथ ही पढ़ाई चालु करके बी.ए. किया। उसे टीचर की नौकरी मिली. पढ़ाई जारी रखकर पी.एच.डी. करके कॉलेज की लेक्चरर बनी। पुन: शादी करके दो बच्चे की मां बनी।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाने हुए पूज्यश्री फरमाते है जीवन में जो व्यक्ति साहस करके आगे बढ़ता है वह व्यक्ति सफलता को पाता है आप कल्पना कीजिए यदि वह स्त्री ससुराल की बेइज्जती के बाद निराश होती तो वह अवश्य आत्महत्या ही करती। यहां पर उस युवती ने मन को मजबूत रखा-आत्म विश्वास के सहारे आगे बढ़ी। हरके व्यक्ति को उस स्त्री के उदाहरण का अपने जीवन में उतपरकर निराश न होकर उत्साही बनना चाहिए हम अपने मन को जिस प्रकार जिस दिशा में लेकर जाएगें उस प्रकार वह ट्रेनिंग लेगा। मन को मजबूत बनाकर हरेक कार्य में सफलता मिलाओ।