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जब देश कोरोना महामारी की वजह से फिर निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है, तब यह प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के लिए बड़ी परीक्षा की घड़ी है। महज पंद्रह दिन में संक्रमण तनावपूर्ण स्थिति में है। प्रतिदिन मामलों की संख्या दो लाख के आंकड़े को पार कर चुकी है और उस मुकाम पर पहुंचने के संकेत दे रही है, जहां प्रतिदिन दस लाख मामले आने की आशंका है। ऐसे में, प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मुख्यमंत्रियों की बैठक स्वागतयोग्य है। इसमें कोई शक नहीं कि पश्चिमी देशों की तुलना में भारत की कोरोना के खिलाफ जंग कुछ बेहतर रही है। हमारी तुलना में एक चौथाई आबादी वाले विकसित देश अमेरिका में प्रतिदिन दस लाख से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। वैसे, एक आशंका यह भी है कि भारत में संक्रमण की वास्तविक संख्या आधिकारिक संख्या से पांच गुना ज्यादा भी हो सकती है। भारत चिकित्सा के लिहाज से इतना पिछड़ा देश है कि यहां ज्यादातर लोग बीमारी की जांच से भी अंतिम समय तक बचते हैं। दूसरी लहर के समय हमने देखा है कि किस तरह अनेक लोग इलाज से वंचित रहे, क्योंकि उन्होंने कोरोना जांच समय पर नहीं कराया। ऐसे लोग भी थे, जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत थी, लेकिन उनके पास कोरोना पॉजिटिव की रिपोर्ट नहीं थी, तो वे सुविधा से वंचित रह गए। इस बार तमाम सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकारी स्तर पर अस्पतालों में जांच आसानी से हो जाए। देश में एक विशाल आबादी है, जो निजी तौर पर जांच के लिए पांच सौ रुपये खर्च नहीं कर सकती। सहजता से जांच के बाद मरीजों की खोज-खबर लेना भी जरूरी है। पिछली लहर के दौरान हमने देखा था कि पॉजिटिव रिपोर्ट के बावजूद बड़ी संख्या में मरीजों को तड़पने और भटकने के लिए उनके हाल पर छोड़ दिया गया था। मुख्यमंत्रियों के स्तर पर सुधार की कोशिश होनी चाहिए। जांच और इलाज से बचना ठीक नहीं है। एक और अहम कोशिश यह होनी चाहिए कि सरकारें संक्रमण का पूरा आंकड़ा रखें। आंकड़े अगर दुरुस्त नहीं होंगे, तो बाद में परेशानी होगी। अचानक से मरीजों व मृतकों की संख्या में इजाफा दिखेगा। ध्यान रहे, अमेरिका में तमाम मामले दर्ज हो रहे हैं, इसलिए कागज पर दिख भी रहे हैं। इससे आज और भविष्य में वहां की चिकित्सा व्यवस्था को चाक-चौबंद करने में मदद मिलेगी। अत: भारत में भी आंकड़ों के महत्व को समझना चाहिए। एक सप्ताह के अंदर यह प्रधानमंत्री की कोरोना विषय पर दूसरी बैठक है। ऐसी बैठकों में पुख्ता और बुनियादी समस्याओं पर विमर्श की जरूरत है। जो देश ज्यादा ईमानदारी से कोरोना से लड़ रहे हैं, उनके यहां की बैठकों और उनकी उपयोगिता का भी हमें अध्ययन करना चाहिए। उच्च स्तरीय बैठकों में जरूरतमंदों की चर्चा जरूर होनी चाहिए। उच्च स्तरीय बैठकों में टीकाकरण पर विचार करना और उसकी कमियों को दूर करना भी जरूरी है। गौर करने की बात है कि एक सप्ताह में दिल्ली में 97 लोगों की मौत कोरोना से हुई है। 
उनमें से 70 का टीकाकरण नहीं हुआ था। उनमें से 19 मरीजों को केवल पहली खुराक ही मिली थी, जबकि सिर्फ आठ मरीज ऐसे थे, जिनका पूर्ण टीकाकरण हुआ था। मतलब साफ है, टीकाकरण में बचाव का यथोचित उपाय है। अभी सबसे बड़ा प्रयास यही होना चाहिए कि वंचितों तक टीका, जांच और इलाज कैसे सहजता से पहुंचे।