अनेक राज्यों में कोरोना से मरने वालों के परिजनों को मुआवजा नहीं मिलने का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचना और उस पर कोर्ट की नाराजगी हर लिहाज से वाजिब है। कोर्ट ने आदेश के बावजूद कोविड-19 पीडि़तों के परिजनों को मुआवजा नहीं देने पर बिहार और आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव को तलब किया। कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि वे कानून से ऊपर नहीं हैं। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि दोनों राज्यों के मुख्य सचिव को कारण बताना चाहिए कि अनुपालन न करने के लिए उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई क्यों नहीं की जाए। यह वाकई बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुआवजा देने के लिए बार-बार निर्देश के बावजूद सरकारें पर्याप्त सचेत नहीं हैं। राज्यों को गंभीरता से इस शिकायत पर ध्यान देना चाहिए, ताकि कोर्ट यह न कहे कि राज्य सरकारें उसके आदेश की पालना के प्रति गंभीर नहीं हैं। अव्वल तो सुप्रीम कोर्ट ने वैसे ही बहुत कम मुआवजा तय किया है, महज पचास हजार रुपये का भुगतान राज्य सरकारों को करना है। कोरोना इलाज में कितना खर्च हुआ है, यह किसी से छिपा नहीं है। मध्य प्रदेश के एक किसान की जान तो आठ करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी नहीं बची। राज्य सरकारों को विशेष रूप से जवाबदेह होना चाहिए।
जो लोग सक्षम हैं, उन्हें भी भारी आर्थिक नुकसान हुआ है। लोककल्याणकारी सरकारों के दौर में तो मुआवजा उन लोगों को भी मिलना चाहिए था, जिनके लाखों रुपये अपनी जान बचाने में लग गए। यह सरकारों के लिए मुफीद है कि उन्हें ठीक होने वालों को कोई मुआवजा नहीं देना है। मुआवजे का दावा केवल वही लोग कर रहे हैं, जिन्होंने परिजन खोए हैं। ऐसे लोगों को न्यूनतम मुआवजे का भी भुगतान नहीं करना कोर्ट के आदेश की अवज्ञा नहीं, तो क्या है? सर्वोच्च न्यायालय ने बिल्कुल सही कहा है कि लोगों को भुगतान न करने का कोई औचित्य नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने इससे पहले भी कई सरकारों को मुआवजा देने का निर्देश अलग से दिया है, फिर भी अनेक राज्य हैं, जो ढिलाई बरत रहे हैं। दरअसल, मुआवजा देने को लेकर इतने तरह के नियम-कायदे राज्य सरकारों ने बना रखे हैं कि वास्तविक हकदार भी कागजी खानापूर्ति नहीं कर पाने की वजह से मुआवजे से वंचित रह जा रहे हैं। कोरोना के समय चूंकि राज्य सरकारों ने आंकड़ों को दुरुस्त नहीं रखा है, इसलिए और परेशानी आ रही है। खास तौर पर आंध्र प्रदेश को देखिए, यहां कोरोना से केवल 14,471 मौतें दर्ज हैं, जबकि लगभग 36,000 दावे प्राप्त हुए हैं और सिर्फ 11,000 मामलों में मुआवजा दिया गया है। बिहार सरकार के आंकड़ों पर भी सर्वोच्च न्यायालय में सवाल खड़े हुए हैं। बिहार में कोरोना से मौत के12,090 मामले दर्ज हुए हैं, जबकि 11,095 दावे मिले हैं और 9,821 मामलों में मुआवजा दिया गया है। मौत के दर्ज मामले और मुआवजे के दावे में अंतर भारतीय राज्यों में सामान्य है। निचले स्तर के कर्मचारियों ने मौत के आंकड़ों को दुरुस्त रखने के लिए कुछ भी खास नहीं किया है। ऐसे कर्मचारी भी बड़ी संख्या में हैं, जो मुआवजे के हकदार लोगों को दौड़ा रहे हैं। ऐसे कर्मचारियों के रहते, जाहिर है, बड़े अधिकारियों को सर्वोच्च न्यायालय के कठघरे में खड़ा होना पड़े, तो क्या आश्चर्य?
Head Office
SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH