
आपदा कैसी भी हो, उसके अंत की एक तारीख होती है। कुछ वैज्ञानिकों ने उस तारीख की घोषणा कर दी है, जब एक महामारी के रूप में कोविड इस दुनिया से विदा हो जाएगा। कोविड वायरस विदा नहीं होगा, लेकिन उसका वह रूप चला जाएगा, जो उसे महामारी बनाता है। फिर वह एक ऐसे मर्ज में बदल जाएगा, जो एक साथ बड़े पैमाने पर लोगों को अपना शिकार नहीं बनाएगा, लेकिन गाहे-बगाहे लोगों को होता रहेगा, ठीक वैसे ही, जैसे सर्दी-जुकाम, वायरल, टायफाइड और निमोनिया वगैरह होते हैं। ऐसा हुआ, तो हमें पूरी राहत भले न मिले, लेकिन आंशिक रूप से जरूर मिल जाएगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द ही इसकी ज्यादा कारगर वैक्सीन तैयार हो जाए और लोगों को ज्यादा भरोसेमंद सुरक्षा-चक्र मिले। लेकिन कोविड को लेकर जो अन्य खबरें आ रही हैं, वे कहीं ज्यादा परेशान करने वाली हैं। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक हालिया शोध के अनुसार, जिन बुजुर्गों को कोविड हुआ था, उन्हें ठीक होने के बाद भी ऐसी कई नई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, जो पहले कभी नहीं थीं। इस शोध में 65 साल से ऊपर के उन 1,33,366 अमेरिकी लोगों का अध्ययन किया गया है, जिन्हें 1 अप्रैल, 2020 से पहले कोविड संक्रमण हुआ था।
शोध में पाया गया कि ऐसी परेशानियां हर तीन में से एक बुजुर्ग में पाई गई हैं। इनमें ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें स्थायी तौर पर उच्च-रक्तचाप की बीमारी मिल गई है। ऐसे लोग भी हैं, जिनके दिल, किडनी और गुर्दे के कामकाज पर असर पड़ा है। कई लोगों के हृदय की समस्या संक्रमण के एक साल बाद ज्यादा घातक हो गई है। कुछ लोगों को सांस लेने की समस्या हो रही है। मस्तिष्क पर भी असर पडऩे के मामले मिले हैं। यह पाया गया कि कोविड ठीक होने के एक साल बाद 32 प्रतिशत लोग ऐसी समस्या के लिए या तो डॉक्टर से मिले हैं या फिर अस्पताल में भर्ती हुए हैं। वैसे, जिस समय कोविड संक्रमण फैलना शुरू हुआ था, उसी समय यह साफ हो गया था कि यह वायरस सिर्फ फेफड़े पर असर नहीं डाल रहा। उस दौरान बहुत सारे लोगों की जान दिल, किडनी या गुर्दे वगैरह के फेल हो जाने के कारण भी गई। तब बहुत से लोग इस बहस में उलझे हुए थे कि इस तरह के संबद्ध रोगों से होने वाली मौतों को महामारी से हुई मौत माना जाए या नहीं। इस दौरान जो लोग ठीक होकर अपने-अपने घर वापस चले गए, वे खुद को खुशनसीब समझ रहे थे और उन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। निस्संदेह, खुशनसीब तो वे थे, लेकिन उन्हें कोविड महारोग बाद में भी परेशान करता रहेगा, यह किसी ने नहीं सोचा था।
इस महामारी ने कई-कई मोर्चों पर समाज की परीक्षा ली है, लेकिन इसने सबसे ज्यादा परीक्षा चिकित्सा विज्ञान की ली है। लगता है, अभी भी यह परीक्षा खत्म नहीं हुई है। कोरोना महामारी ने समाज और अर्थव्यवस्था को बहुत पीछे धकेला है। इस दौरान सिर्फ चिकित्सा विज्ञान ही है, जो लगातार दम साधकर लगातार आगे बढ़ा है, लेकिन अभी उसे मीलों चलना है। हमें अभी नहीं पता कि कोविड अगर महामारी के बजाय एक आमफहम रोग बन गया, तो हमारे शरीर के अन्य अंगों पर उसका क्या असर होगा? कोरोना वायरस के बारे में अभी बहुत कुछ जानना शेष है।