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रूस-यूक्रेन युद्ध का असर विज्ञान पर भी दिखने लगा है। जहां तक इन दोनों देशों की बात है, तो वैज्ञानिक शोध लगभग थम गया है। पहले व दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भी सकारात्मक शोध लगभग थम गया था और अच्छे वैज्ञानिक भी अपनी-अपनी सरकारों की सैन्य सेवा में लग गए थे। ऐसे वैज्ञानिकों की फेहरिस्त लंबी है, जो युद्ध के साजो-सामान बनाने में जुटे थे। हिटलर ने विज्ञान व वैज्ञानिकों का भयानक दुरुपयोग किया था। अब रूस-यूक्रेन युद्ध के बढऩे पर विश्व की तमाम सैन्य-शक्तियों व महाशक्तियों का ध्यान नकारात्मक गतिविधियों की ओर ज्यादा जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं। युद्ध शिक्षा को किस तरह से प्रभावित करता है, यह तो हम यूक्रेन से लौट रहे छात्रों की समस्या में देख ही रहे हैं। यूक्रेन के जो विश्वविद्यालय या वैज्ञानिक संस्थान शोध कार्य में लगे होंगे, उन्हें धनाभाव में भी काम रोकना पड़ेगा। कई रिपोर्टों से पता चलता है कि रूस में भी वैज्ञानिक बिरादरी सहमी व थमी हुई है।
उधर अमेरिकी संस्थान नासा ने भी स्पष्ट कर दिया है कि उसके पहले चालक दल वाले आर्टेमिस मिशन को 2026 से पहले लॉन्च नहीं किया जा सकेगा। यह खबर नासा द्वारा चंद्रमा के चारों ओर आर्टेमिस-1, बगैर चालक वाली उड़ानों में देरी की अधिसूचना के बाद आई है। इसका अर्थ यह है कि अमेरिका का मानव-चंद्र मिशन किसी भी सूरत में 2025 से पहले पूरा नहीं होगा। अमेरिका ही नहीं, पूरी दुनिया में अंतरिक्ष अन्वेषण पर असर की शुरुआत हो चुकी है। जमीनी घटनाओं का नकारात्मक असर अंतरिक्ष में तरंगित होने लगा है। रॉकेट लॉन्च सिस्टम से लेकर मंगल ग्रह को खंगालने के लिए प्रस्तावित रोवर तक असर साफ है। युद्ध के तनाव ने दुनिया को भटका दिया है। बढ़ते तनाव के कारण अंतरिक्ष मिशन की एक विस्तृत शृंखला को टालना या रद्द करना पड़ रहा है। यूरोपीय संघ, अमेरिका और कई अन्य ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिए हैं; नतीजतन, रूस लगातार अपनी अंतरिक्ष संबंधी योजनाओं को बदल या रद्द कर रहा है। अंतरिक्ष विज्ञान की रूस पर निर्भरता को सब जानते हैं, अत: अनेक देशों में विज्ञान या अंतरिक्ष विज्ञान प्रभावित होने वाला है। लग रहा है कि रूस और यूरोपीय संघ का संयुक्त मंगल अभियान भी भटक जाएगा। कई वर्षों के प्रयासों के बाद रूस और यूरोप करीब आए थे, लेकिन अब संशय के बादल मंडराने लगे हैं। अंतरिक्ष आधारित ईरोसिता टेलेस्कोप सिस्टम को रूस और जर्मनी मिलकर चला रहे थे, पता नहीं अब इस वैज्ञानिक अभियान का क्या होगा? नेविगेशन सैटेलाइट्स और वनवेब इंटरनेट नेटवर्क पर भी असर पडऩा तय है। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर अभी तक असर नहीं पड़ा है, लेकिन आने वाले दिनों में इस स्टेशन से रूस को अलग करने की कोशिश अमेरिका कर सकता है। जो दुनिया विज्ञान की उपलब्धियों की ओर मिलकर चली थी, वह घायल होती दिख रही है। चीन पर अभी तक कोई असर नहीं है, लेकिन वैज्ञानिक अच्छी तरह जानते हैं, इस युद्ध से चीन सर्वाधिक फायदे में रहेगा। चिंता की बात यह है कि बीजिंग की विश्वसनीयता अभी वैसी नहीं है, जैसी अमेरिका या रूस की है। चीन ने तो अभी तक कोरोना संबंधी जांच को ही दुनिया से साझा नहीं किया है। दुनिया की भलाई इसी में है कि जल्द से जल्द युद्ध समाप्त हो और विज्ञान सकारात्मक दिशा में फिर से बढ़े।