Head Office

SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH

यह तो तय था। पिछले काफी दिनों से यह आशंका जताई जा रही थी कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का मतदान खत्म होते ही पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी की घोषणा हो जाएगी। कुछ विपक्षी नेता तो बार-बार ट्वीट और बयानों के जरिए वोटरों को आगाह भी कर रहे थे, यह और बात है कि मतदाताओं ने उन्हें बहुत महत्व नहीं दिया, लेकिन अब जब रसोई गैस सिलेंडर के दाम में एकमुश्त 50 रुपये और पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों में 80 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि की गई है, तो वे आशंकाएं भी सच साबित हो गई हैं, और महंगाई के और बढऩे की नई चिंता लोगों के सिर पर सवार हो गई है। गौरतलब है, इसी सोमवार को डीजल की थोक खरीद पर करीब 25 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई थी। लाजिमी है कि वस्तुओं की ढुलाई और परिवहन संसाधनों पर इससे दबाव बढ़ेगा और इसका बोझ अंतत: उपभोक्ताओं को ही उठाना होगा। पेट्रो उत्पादों के दाम में बढ़ोतरी का फौरी कारण किसी से छिपा नहीं है। रूस-यूक्रेन युद्ध और रूस पर पश्चिम की पांबदियों ने जिस वैश्विक अस्थिरता को जन्म दिया है, उससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 118 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर चली गई है। बल्कि एक वक्त तो इसने पिछले 13 वर्षों का उच्चतम स्तर को छू लिया था। ऐसे में, तेल कंपनियों पर आर्थिक दबाव दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा था। चिंता की बात यह भी है कि इस युद्ध को शुरू हुए लगभग एक महीना होने जा रहा है, और फिलहाल इसके अंत की कोई सूरत नजर नहीं आ रही है। ऐसे में, दामों को स्थिर बनाए रखना मुश्किल होता जा रहा था। हालांकि, विपक्ष का आरोप है कि सरकार जब रूस से सस्ते दाम पर तेल खरीद ही रही है, तब उसे इस समय दाम बढ़ाने की क्या जरूरत थी, जब लोग माली तंगी के शिकार हैं? पर हकीकत यह है कि भारत लगभग 80 प्रतिशत तेल आयात खाड़ी के मुल्कों व अमेरिका-अफ्रीकी देशों से करता है। ऐसे में, रूस से खरीदारी से बहुत राहत की उम्मीद नहीं बांधी जा सकती। फिर, रूस से आयात के गहरे कूटनीतिक निहितार्थ भी हैं, जिनकी अनदेखी सरकार नहीं कर सकती, लेकिन यह भी तय है कि देश के मध्य व निम्न आयवर्ग के लिए महंगाई असह्य होती जा रही है। तमाम आर्थिक कसौटियां बता रही हैं कि महामारी ने देश की एक विशाल आबादी को गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिया है, बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बन चुकी है, ऐसे में खाने-पीने की चीजों के दाम में आंशिक बढ़ोतरी भी करोड़ों लोगों की थाली और पोषण पर सीधा असर डालेगी। चूंकि पेट्रो उत्पादों की मूल्य-वृद्धि का सीधा संबंध रोजमर्रा की वस्तुओं की महंगाई से है। इसलिए सरकार को अपने निगरानी तंत्र को दुरुस्त रखने के साथ-साथ समाज के अशक्त लोगों के हितों की निगहबानी करनी पड़ेगी। आमदनी न बढऩे की सूरत में महंगाई कितनी मारक हो सकती है, यह श्रीलंका और पाकिस्तान की मौजूदा सामाजिक उथल-पुथल हमें बता रही है। हमारे समाज में भी असंतोष का स्तर बढ़ा है, 'हैपिनेस इंडेक्सÓ की ताजा रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है। इसलिए पेट्रो उत्पादों के मूल्य निर्धारण तंत्र को अब इतना पारदर्शी बनाए जाने की जरूरत है कि वह अर्थव्यवस्था के अनुरूप कोई कठोर फैसला ले, तो वह राजनीतिक दबाव से संचालित न दिखे। फिर उनकी मूल्य-वृद्धि को स्वीकारने में किसी के लिए किंतु-परंतु की गुंजाइश नहीं रह बचेगी।