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भारत इन दिनों जितने दबाव में है, उतनी ही मांग में भी है। दुनिया के अनेक आला देशों के आला अधिकारियों व नेताओं ने भारत की ओर रुख कर रखा है। विशेष रूप से जब से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की शुरुआत हुई है, तब से भारत में किसी न किसी विदेश मंत्री या विदेश सेवा के अधिकारी की मौजूदगी देखी जा रही है। भारत की तटस्थ स्थिति ने दुनिया की महाशक्तियों को बेचैन कर रखा है। संयुक्त राष्ट्र में भारत ने यूक्रेन का पक्ष तो लिया है, लेकिन वह रूस के खिलाफ भी नहीं गया है। ऐसे में, यह धारणा फैल गई है कि भारत को जिस तरह से नाटो का साथ देना चाहिए, वह नहीं दे रहा है। अत: भारत न केवल अमेरिका की ओर से, बल्कि यूरोपीय देशों की ओर से भी दबाव में है। अमेरिका, रूस, चीन, मैक्सिको, नीदरलैंड, ब्रिटेन इत्यादि देशों के कूटनीतिज्ञ भारत पर लगातार नजर रखे हुए हैं और अपनी-अपनी ओर इसे खींचने की कोशिश कर रहे हैं। यह महज संयोग नहीं है कि जब रूस के विदेश मंत्री सर्गेस लावरोव भारत यात्रा पर हैं, तब अमेरिका के उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह भी भारत में मौजूद हैं। रूस भारत से मदद चाहता है, तो अमेरिका भी चाहता है। अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि भारत किसी भी तरह से रूस की मदद करे, और रूस की भी कोशिश है कि वह भारत को युद्ध में नाटो के साथ खड़ा होने से रोके। दुर्दिन में भी भारत ने रूस से तेल खरीदने की मंजूरी देकर पिछले दिनों जो धमाका किया था, उसकी गूंज दुनिया में अभी भी है। अमेरिका, नाटो और यूरोपीय देशों ने यही समझा कि भारत पिछले दरवाजे से रूस की मदद करते रहना चाहता है, क्योंकि रूस उसका पुराना साथी है। सबसे बड़ी बात यह कि चीन अब रूस के साथ लगभग शाब्दिक रूप से खुलकर खड़ा हो गया है। ध्यान रहे, रूसी विदेश मंत्री चीन से होते हुए ही भारत आए थे। चीनी विदेश मंत्री भी हाल ही में भारत आए थे और भारत को अपने ढंग से मनाने की कोशिश भी की थी, लेकिन इस आपाधापी में चीन बिना किसी समझौते या रियायत के भारत के साथ व्यवसाय करते रहना चाहता है। इस मामले में रूस और अमेरिका कुछ अलग हैं, दोनों देशों के पास भारत को रिझाने के लिए कुछ न कुछ है। तेल, तकनीक, आईटी, शिक्षा, व्यापार, पर्यटन और सांस्कृतिक लिहाज से भी अमेरिका अब भारत के ज्यादा करीब है। कभी रूस के प्रति भी भारत में बहुत लगाव था, लेकिन व्लादिमीर पुतिन के समय रूस ज्यादातर मौकों पर चीन के साथ खड़ा दिखा है और भारत से कुछ दूरी भी बनी है। जाहिर सी बात है कि हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल इस वक्त देश के व्यस्ततम लोगों में शुमार हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि आज तेजी से बदलती विश्व व्यवस्था में अपना देश निर्णायक मोड़ पर है। बहुत सोच-समझकर कदम आगे बढ़ाना चाहिए। किसी भी विदेशी नेता या अधिकारी के दबाव में न आते हुए, अपने देश के हित को सबसे ऊपर रखना है। यह युद्ध के चलते पीडि़त हो रहे देशों और उनके लोगों के प्रति संवेदना का समय है। युद्ध की निंदा और यूक्रेन की मदद में कोई कोर कसर न रहे, तो दुनिया भारत के पक्ष को समझेगी। किसी भी स्थिति में भारत को युद्ध में कूदने से बचना चाहिए। युद्ध विरोध की भावना और मानवता का दामन थामे हुए यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दुनिया में भारत प्रेमियों की तादाद बढ़े, भारत विरोधियों की नहीं।