आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी पर मां पार्वती को समर्पित जया पार्वती व्रत रखा जाता है। इस व्रत को विजया व्रत भी कहा जाता है। सौभाग्य का वरदान देने वाला यह व्रत लगातार पांच दिनों तक चलता है। यह व्रत गणगौर, हरतालिका, मंगला गौरी और सौभाग्य सुंदरी व्रत के समान ही है। इस व्रत में महिलाएं माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ की पूजा करती हैं। कन्याएं सुयोग्य वर पाने के लिए यह व्रत करती हैं। इस व्रत को करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
व्रत वाले दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के पूजा स्थल की अच्छी तरह साफ-सफाई कर वहां भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती की मूर्ति स्थापित करें। भगवान शिव और माता पार्वती पर कुमकुम, चंदन, रोली और पुष्प चढ़ाएं। नारियल और अनार अर्पित करें। ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव और मां पार्वती का स्मरण करें। व्रत के समापन पर ब्राह्मण को भोजन कराएं और वस्त्र दान करें। इस व्रत में नमक या नमक से बने खाद्य पदार्थों का सेवन न करें। इस व्रत में अनाज और सब्जियां भी नहीं खानी चाहिए। व्रत के दौरान फल, दही, दूध, जूस, दूध से बनी मिठाइयां खा सकते हैं। विवाहिताएं इस व्रत को इच्छा अनुसार 5 से 20 साल तक रहती हैं। व्रत समाप्ति के एक रात पहले रातभर जागकर भजन, कीर्तन किया जाता है। व्रत के अंतिम दिन मंदिर में पूजा अर्चना के बाद नमक, आटे से बनी रोटी, पूरी व सब्जी खाकर व्रत खोला जाता है। गुजरात में इस व्रत को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
(इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें)