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अवैध खनन में लिप्त माफिया तत्वों का दुस्साहस किस हद तक बढ़ गया है, इसका ताजा प्रमाण है हरियाणा के नूंह में डीएसपी सुरेंद्र सिंह की डंपर से कुचलकर हत्या। कानून के शासन को खुली चुनौती देने वाली इस घटना की भर्त्सना करना और अपराधियों के विरुद्ध कठोरतम कार्रवाई करने का वचन देना ही पर्याप्त नहीं। आवश्यकता इसकी है कि खनन माफिया के दुस्साहस का दमन करने के साथ उन कारणों की तह तक भी जाया जाए, जिनके चलते तमाम रोक के बाद भी अवैध खनन होता रहता है। यह समस्या केवल हरियाणा तक ही सीमित नहीं है।

देश में शायद ही कोई राज्य हो, जहां अवैध खनन न होता हो। स्थिति यह है कि देश की राजधानी में अरावली की कई पहाडिय़ां अवैध खनन के कारण लुप्त होती जा रही हैं। ऐसा तब है जब ये पहाडिय़ां दिल्ली-एनसीआर के पर्यावरण के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। जैसे अरावली की पहाडिय़ां अवैध खनन की चपेट में हैं, वैसे ही देश की अन्य पहाडिय़ां भी। इसी के साथ नदियां भी बड़े पैमाने पर अवैध खनन का शिकार हैं। अवैध खनन में लिप्त तत्व माफिया बन गए हैं तो इसीलिए कि आम तौर पर उन्हें नेताओं और नौकरशाहों का संरक्षण मिलता है। इसी संरक्षण के कारण उनका दुस्साहस बढ़ता है।

देश के विभिन्न हिस्सों से ऐसी खबरें आती ही रहती हैं कि खनन माफिया के गुर्गों ने पुलिस कर्मियों या फिर अन्य अधिकारियों को धमकाया अथवा उन पर हमला किया। मिट्टी, गिट्टी, रेत आदि का अवैध खनन इसलिए बेरोक-टोक होता रहता है, क्योंकि एक तो खनन संबंधी नियम-कानूनों के पालन की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है और दूसरे मांग और आपूर्ति में अंतर को दूर करने की कोई सुविचारित नीति नहीं है। एक ऐसे समय जब देश में हर तरह के निर्माण कार्य तेजी पर हैं, तब राज्य सरकारों के साथ केंद्र सरकार को भी इसकी चिंता करनी होगी कि आखिर निर्माण कार्यों में प्रयुक्त होने वाली सामग्री कहां से आएगी?

इसमें संदेह है कि इस बारे में शायद ही कभी सोच-विचार किया जाता हो। चूंकि प्राय: सब कुछ निर्माण कार्य में लगी कंपनियों अथवा ठेकेदारों पर छोड़ दिया जाता है, इसलिए वे मनमानी करते हैं। इस मनमानी पर तब तक रोक नहीं लग सकती, जब तक मांग और आपूर्ति के बीच बढ़ते अंतर को कम करने की कोशिश नहीं की जाएगी। या तो इस अंतर को कम करने के जतन किए जाएं या फिर निर्माण कार्यों में प्रयुक्त होने वाली सामग्री के नए विकल्प खोजे जाएं। नि:संदेह खनन पर पूरी तौर पर रोक लगाना संभव नहीं, लेकिन ऐसे उपाय तो किए ही जा सकते हैं कि वह न तो पर्यावरण के लिए खतरा बन पाए और न ही माफिया तत्वों की मनमानी का माध्यम।