Head Office

SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH

मुंबई (ए)। मानव जन्म मूल्यवान है इस मानव जन्म को प्राप्त करने के बाद इस जन्म के मूल्य को समझकर हमें हमारे जीवन को संस्कार से भर देना है तभी हम महान बन सकते हैं। जंगल एवं बगीचे में क्या फरक है? जंगल अपने आप से स्वयं फैला हुआ है जिसमें किसी चीज का सही तरीके से ठिकाना नहीं, अस्त व्यस्त है जबकि बगीचा किसी माली ने सही तरीके से उसमें पेड़ पौधों को उगाया तथा रोज उसकी देखरेख करके आपनी का सिंचन भी किया है। 
लोक व्यवहार में जो संस्कारित नहीं आवारा की तरह इधर उधर भटकता है उसे लोग जंगली कहते है। जंगली जीवन जीने वालों में सुधार लाना होगा।
वह किस तरह संभव है? तो कहते है प्रवचन के माध्यम से पूज्यों की वाणी का श्रवण करके जीवन में परिवर्तन लाना है।
किसी ने पूछा, आपकी जिंदगी कैसी है? सौदागर जैसी-संत जैसी साधु जैसी या मैनेजर जैसी? विद्यार्थी जैसी मेरी जिंदगी है। कहीं कुछ सीखने को मिला ग्रहण कर लेता हूं। मुझे तो कुछ सीखकर जीवन को एक आकार देना है। गलत आदतों को सुधारकर जीवन में परिवर्तन लाना है।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है भक्तामर की एक-एक गाथा में ऋद्धि है शब्द चित्र है मंत्र है अलंकार है, शब्द की जमावट है। भक्तागर स्त्रोत याने जीवन निर्माण का एक सूत्र है।
पूज्यश्री फरमाते है जीवन में यदि कुछ मिलाना है तो भक्ति की ओर नजर रखना शक्ति की ओर मत देखना। शक्ति तो भक्ति से अपने आप में प्रकट होती है। हम कभी किसी से प्रेम करते है, स्नेह करते है अथवा तो भक्ति करते है। कहते है प्रिय पात्र के प्रति प्रेम होता है राष्ट्र-देश-विश्व के प्राणी मात्र के प्रति स्नेह तथा परमात्मा के प्रति समर्पण यानि भक्ति।
कहते है तुम्हारे पास शक्ति हो के जा हो एक बार परमात्मा के प्रति लीन होकर भक्ति करते हो शक्ति अपने आप आ जाती है। अनंत शक्ति का अनुसंधान होता तब जीवन धन्य बनता है। कितने लोग जीवन में हताश निराश क्यों होते है उसका क्या कारण है?
पूज्यश्री फरमाते हताश-निराश का कारण संसार नहीं बल्कि शक्ति, परम तत्व के साथ जुड़ी नहीं है इसीलिए मानवी दु:खी होता है। जो व्यक्ति परम तत्व के साधु जुड़ जाता है उसे कभी जीवन में हताश-निराक्ष नहीं होना पड़ता है। 
एक चार साल की लड़की उत्साही है। शरीर से वह दुबली पलती है उसका छोटा भाई शरीर से भारी है वह उसे उठाकर घूमती है। दादाजी कहते है बेटा। ये तुं क्या कर रही है? दादाजी ये मेरा छोटा भैया हैं उस लड़की स्नेह है लगाव है। जहां समर्पण है वहां मुश्किले नहीं आती है। मानतुंग सूरि महाराजा फरमाते है, शक्ति क्या है? ये जानना नहीं है परंतु भक्ति लानी है क्योंकि भक्ति शक्ति को प्रकट करती है।
सुखी संपन्न व्यक्ति 40-40 वर्ष से अभी भी जीवन की वास्तविकता नहीं समझता है और जिनके पिता नहीं उस व्यक्ति पर घर का बोज आने पर उसमें शक्ति कहां से आ जाती है कि वह अपने परिवार की जिम्मेदारी अच्छी तरह से निभा लेता है। जीवन में संस्कार के बीज बोने है। परपल जीवन  को सुधारते रहो परिवर्तन लाते रहो।
मानतुंग सूरि महाराजा फरमाते है एक हिरणी ने अपने बच्चे को जन्म दिया। बच्चे के रक्षण हेतु वह उसी के पास बैठकर उसकी रक्षा करती है हिरणी को अपने बच्चे से लगाव है वह उसे छोड़कर कहीं नहीं जाती। अचानक जंगल में शेर के दहाडने की आवाज आई। हिरणी समझ गई कि शेर उसकी ओर जा रहा है वह पूरी तरह से सावधान है। वह उस शेर के आगे खड़ी है। शेर जैसे ही नजदीक आया कि वह उस शेर पर छलांग लगाती है शेर पीछे हट जाता है। शेर अपने मन में शंका करता है कि उस हिरणी में वह शक्ति कहा से आई? कुछ कारण होगा। पीछे देखा तो हिरणी का बच्चा है। नवजात शिशु है तो हिरणी को नहीं मारना। शेर वापिस जंगल की ओर लौट गया। मानतुंग सूरि महाराजा फरमाते है हिरणी में शक्ति कहां से प्रकट हुई। उसका परमात्मा के साथ अनुसंधान हो गया। परमात्मा के पास अनंत शक्ति है। परम तत्व से प्रेम करोंगे सफलता कभी न कभी मिलेगी ही। जीवन में प्रेम-स्नेह एवं भक्ति तीनों जरूरी है। आप भी अपने बच्चों के लिए समय निकालकर उन्हें प्रेम-वात्सल्य देकर उन्हें जीवन में आगे बढ़ाये बस, सभी से प्रेम-स्नेह का व्यवहार रखकर परमात्मा को समर्पित बनकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।