
मुंबई। मनुष्य का जन्म हमें प्राप्त हुआ है तो हमें हर पल हर क्षण जागृत होकर आराधना साधना में लग जाना है। सामान्य बातों से डिस्टर्ब नहीं होना है। निरर्थक चीजों में हमारा जीवन पूरा न हो जाए इसका ख्याल रखना है।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है एक आदमी को कम सुनाई दे रहा था। कोई व्यक्ति उसके आगे जोर से बोले तभी उसे सुनाई देता था। किसी युवक ने उस विचारखान व्यक्ति को पूछा, भैया! आपको सुनने में कम आता है तो तकलीफ ज्यादा होती होगी? विचारवान ने कहा, युवान क्या कहा आपने? तकलीफ ओर मुझे? नहीं नहीं तकलीफ तो उन्हें होती है जो मुझे सुनाने के लिए जोर से बोलते है। विचारवान लोग कम्पलैन में अपना जीवन नहीं बिताते है। कहते हैं जहां रिक्वायरमेंट होता है वहां समय नहीं बिगड़ता है। किसी को कुछ देने आए हो वह भी एक प्रकार की भलाई ही है।
आप चाहे कोई भी धर्म ले लो हरेक धर्म में कोमन बात आती है ऐसा कोई धर्म नहीं जिसने ऐसा कहां हो तुम किसी का भला मत करना सभी धर्म में लगभग सभी बातें एक खरीखी बताई है हमारा धर्म, तुम्हारा धर्म, हमारी फिलासफी ऐसी है इस प्रकार से धर्म की बात पर कितने विवाद करते है लड़ाई झगड़ा करते है। कितने का कहना है हमारा धर्म करेंगे तो स्वर्ग मिलेगा, हमारे धर्म का यदि पालन नहीं किया तो नरक में जाना पड़ेगा। किसी भी धर्म में जन्म लेने से स्वर्ग की गारंटी नहीं बताई है न ही नरक की सजा बताई है।
कहते है किसी भी अच्छी बातों को अच्छे सेन्स में अच्छी तरह से पालन करने से ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है नया कोई भी धर्म का पालन अच्छी तरह से नहीं किया तो दुर्गति निश्चित है।
आचायों प्रथम धर्म यह बात जिस किसी ने भी हमें बताई है उसने हमें सोच समझकर ही बताई है। इसीलिए हमें अपना कत्र्तव्य समझकर इन आचारों का पालन करना चाहिए। पहली सूक्ष्म हिंसा बताई है आप के कारण किसी के मन को ठेस न लगे उस तरह से हमारी वाणी होनी चाहिए। अच्छे कुछ में जन्म लेने से ही मोक्ष है ऐसा नहीं है बल्कि धर्म के आचारों का पालन करने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
योगशास्त्र में हेमचंद्राचार्य जी ने धर्म की व्याख्या बताई है दुर्गति में गिरते हुए प्राणीओं को धारण करने वाला धर्म ही है। एक बार सिद्धराज राजा ने हेमचंद्रचार्य महाराजा को पूछा, साहेब! कौन सा धर्म अच्छा है। हिंदु-मुस्लिम-शिव धर्म या जैन धर्म तब हेमचंद्राचार्य जी ने राजा सिद्धराज को बताया राजन्! सभी धर्म में अहिंसा का पालन झूठ नहीं बोलना बिना पूछे किसी के अधिकार की चीज नहीं लेना किसी के ऊपर बूरी नजर नहीं रखना, किसी के साथ बूरा व्यवहार नहीं करना तथा आवश्यकता से ज्यादा व्यवहार नहीं करना तथा आवश्यकता से ज्यादा चीजों का संग्रह नहीं करना इस तरह से पांच आचार सभी धर्म में कोमन ही है संक्षेप में कहे तो अहिंसा सत्य अचौर्य ब्रंह्मचर्य एवं अपरिग्रह इन पांच आचारों के पालन से ही किसी भी जीव को मुक्ति की प्राप्ति होती है।
हिन्दू धर्म-मुस्लिम धर्म-क्रिश्चियन धर्म वगैरह धर्मों के नाम शास्त्र में नहीं बताए थे सभी धर्म के नाम स्वयं लोगों ने ही रखा है। धर्म तो वह है जो सद्गति को दे। कितने लोग अत्याचार करते है कहते है यदि आप हमारा धर्म नहीं मानोंगे तो मार डालेगी पूज्यश्री फरमाते है किसी को मारना वह भी अधर्म ही है। तुम्हारा धर्म कहां गया? किसी की हिंसा नहीं करना यह बात स्पष्ट हरेक धर्म में बताई तो इसका ख्याल रखना ही चाहिए।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है अहिंसा सत्य-अचौर्य-ब्रंह्मचर्य-परिग्रह विगेरे में पैदा होने वाले जैसे कि कोई मुस्लिम में पैदा हुआ अब्दुल कलाम जैसे मुसलमान ने अपने जीवन में कभी मांसाहार को हाथ नहीं लगाया। वे अहिंसामय जीवन जीए। कहते है व्यक्ति के कलधर्म को नहीं देखना है बल्कि व्यक्ति के चरित्र को देखना है उनमें कैसे-कैसे सद्गुण भरे पड़े है। दुनिया व्यक्ति के धर्म को नहीं देखेगी उसमें रहे सद्गुणों को देखकर ही सारी जिंदगी याद रखेगी। कोई किसी में अच्छाई देखता है तो उसे जीवन भर याद रखता है।
किसी सज्जन का पाकीट भूल से आटो रिक्शा में रह गया। सज्जन अपने घर पहुंच गए मगर आटो रिक्सा वाले ने अपनी रिक्शा में जैसे ही पाकीट देखा उसमें लाख रुपए थे। तुरंत ही अेड्रस के मुताबिक सज्जन को लौटाने उसके घर गया। सज्जन अपने पैसों को पाकर खुश हुआ भेंट के रूप में रिक्सा वाले को पांच हजार रुपये दिए। रिक्शे वाले ने कहा साहब। मुझे भेंट नहीं चाहिए में ईमानदारी से कमाकर ही खाता हूं। रिक्शे वाले ने पैसे लौटा दिए लेकिन सज्जन जीवन भर तक उस रिक्शा वाले को भूल नहीं पाया कारण व्यक्ति में रहे गुणों, हरेक के दिल में याद बनकर रह जाती है। बस आचार धर्म में ऐसे धर्मी बनो कि लोग आपके मधुर वचनों का, आपके अच्छे वर्तन को, आपका सद्गुणों को हमेशा के लिए याद रखकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।