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मुंबई। खाली मन शैतान का घर है। इस कहावत को ध्यान में रखते हुए मानव को खाली बैठने के बजाय किसी न किसी विषय पर चिंतन करते रहना चाहिए। चिंतन करने वाला व्यक्ति जरूर कुछ अच्छे निर्णय पर आता है तथा अच्छे निर्णय से वह जीवन में कुछ न कुछ जरूर पाता है। शास्त्रकार महर्षि फमारते है छोटे से छोटा जीव भी सुख के लिए प्रवृत्ति करता है। सुख क्या चीज है? वह किस तरह से मिलाया जा सकता है यह समझना बहुत जरूरी है।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवजनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू.राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते  है, स्व. पर नियंत्रण अर्थात् स्व. की आधीनता उसे सुख कहते है। हमारे अपने जीवन में कोई भी विकट परिस्थिति आए तो उसे सुखद में बदल देना है। प्रतिकूल परिस्थिति को अनुकूल परिस्थिति नहीं बनाएगा वह व्यक्ति हमेशा दुखी होगा।
मानलो, कोई व्यक्ति अपने जीवन में कुछ मिलता है तो हम तुरंत दुखी हो जाते है। इसका क्या कारण है? अनादिकाल से हमारे में भय संज्ञा रही हुई है। हमें डर है कि जो व्यक्ति जरूर आपका नुकसान करेगा। कोई व्यक्ति आपका बूरा आपका नुकसान करेगा। कोई व्यक्ति आपका बूरा करने मात्र से आपका बूरा नहीं होने वाला है।
एक प्रधान का किसी ने चालीस बार हत्या करने का प्रयत्न किया फिर भी उसे सफलता नहीं मिली। कोई हमारा बूरा करने मात्र से बूरा ही होगा ैसा हमारे मन में एक डर सा बैठ गया है उसी कारण हम दु:खी है। हमारे दिलों दिमाग से इस भय को निकाल देना है। एक युवान चौथी मंजिल पर खिड़की के पास बैठा है किसी ने उसे धक्का मारा वह नीचे गिरा परंतु उस युवान का पुण्य बड़ा तेज था कि उसी समय कोई अन्य व्यक्ति उसी बिल्डिंग के नीचे से पसार हो रहा था उसके पास चार पईए की हात लोरी थी नसीब से वह युवान उसी लोरी में गिरा उसे किसी भी प्रकार की ईजा नहीं आई वह युवान बच गया।
कोई आपका बूरा करता हो, और आपका पुण्य तेज है तो कोई भी आपका बाल बांका नहीं कर सकता है। एक मजदूर होटल की सफाई कर रहा था उसे गिराने के उद्देश्य से किसी ने जानबूझकर पानी डाला वह फिसल गया लेकिन किसी ने उसे गिरपते हुए बचा तो वह बच गया। बूरा करने वाला हमारा बूरा भले ही चाहता तो हमें परमात्मा का शरण स्वीकारना है। हमने यदि किसी का बूरा किया होगा तभी हमारा खराब होगा वरना वह दु:ख भी सुख में परिवर्तित  हो जाएगा।
एक लड़का अपने मां बाप के सात मेले में गया। जो भी अच्छी चीज मेले में गया। जो भी अच्छी चीज मेले में देखता है वह जिद्द करके उसे खरीदने को कहता है बाल है, उसे क्या मालुम उसके मां बाप की परिस्थिति कैसी है? इस तरह वह बालक जो भी चीज अच्छी देखता दुकान में घुस जाता था। ऐसे में वहअपने मां बाप से बिछड़ गया। मां अपने बालक को ढूंढ रही है और बच्चा अपने मां को ढूंढ रहा है। मेले में इतने लोगों के बीच मां न मिलने से वह बालक रो पड़ा। उसे रोते देखकर कितने लोगों ने उसे चुप रखने के लिए मोटर-गाड़ी ऐरोप्लेन-चोकलेट खरीदकर दिया। लेकिन उस बालक ने किसी के हाथ की चीज न ली। कहते है शरण में शक्ति है। उस बालक को तो सिर्फ मां ही चाहिए थी। पूज्यश्री फरमाते है मां कैसी भी हो? कभी गलती होती है तो वह बच्चे को मारती भी है तथा यदि उस बालक का पिता उसे मार रहा हो तो मां उससे बचाती भी है। बालक का शरण जिस प्रकार मां है उसी तरह हमें भी परमात्मा का शरण स्वीकारना है दुख सुख में पलट जाएगा। सुख प्राप्ति का उपाय, आप किसी श्रद्धेय के पास जाओं उनकी शरणागति स्वीकारो शरणागति से सुख मिलाकर आत्मा से परमात्मा बनें।