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मुंबई। एक महान ग्रन्थकारों ने कहा है कि हमारी आत्मा में अनंत शक्ति है। कितने भी दोष आएंगे जरूर उन दोषों की शुद्धि हो जाएगी। हमारी आत्मा निर्मल स्वरूप वाली है। हमारी शक्ति के मुताबिक हम परमात्म स्वरूप जरूर बन सकते हैं, परंतु हमें उसकी दिव्य प्रति नहीं हो रही है। तथा हम उस परमात्मा स्वरूप को पाने के लिए कुछ प्रयत्न भी तो नहीं कर रहे है। मान लो, आपको कहीं जाना है तो आपको पहले मुकाम तय करना ही होगा इसी तरह हमारे में परमात्म तत्व की महान शक्ति भरी है।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है कोई व्यक्ति यदि हिन्दुस्थान की अथवा तो अफ्रीका की हीरे की रवाण में गया हो। वहां उसे पत्थर ही पत्थर दिखे हो। उसने उस पत्थर को उठाया भी हो तो वह व्यक्ति उस पत्थर की सही पहचान नहीं कर पाएगा उस पत्थर की सही पहचान नहीं कर पाएगा उस पत्थर की सही पहचान झवेरी ही  कर सकता है क्योंकि उस पत्थर का सही मूल्य झवेरी ही जान सकता है इसी तरह हमारी आत्मा में प्रचंड शक्ति भरी पड़ी है उसे हमे पहचानना होगा। आत्मा को अशुद्ध में से शुद्ध बनाना होगा। आन्तरिक विकास चैतन्य का विकास आत्मा के विकास के लिए प्रयत्नशील बनना होगा।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है आत्मा को बाह्र सुख प्रिय है उसे दु:ख जरा भी पसंद नहीं। वह तो दु:ख है कीड़ी आंख से नहीं देख सकती लेकिन (घ्राणोन्द्रिय) सुगंध से उसे पता चलता है कहीं पर शक्कर है तो वह तुरंत वहां पहुंच जाती है।
मानव भी इसी तरह सुख को मिलाने के लिए कीड़ी की तरह दौड़ रहा है। उसे दु:ख नहीं चाहिए सिर्फ सुख की ही अभिलाषा रखता है।
पूज्यश्री फरमाते है आप को सुख पसंद है तो क्या, दूसरे भी जीव सुख नहीं चाहेगें? अवश्य चाहेंगे ही। हमें दूसरों के सुख के लिए भी ख्याल रखना होगा। जो लोग कोरोना के रोग से पीडि़त है उनकी पीड़ा मिटाकर उन्हें सुख देना होगा। मानलो, आप किसी को सुख नहीं दे सकते तो उनका अधिकार भी छीनने का आपको कोई राईट नहीं। दुनिया की गवर्मेन्ट भी इस महामारी को नहीं मिटा पा रही है।
कितने अज्ञानी पशु पक्षीओं को मारकर उनका मांस खाते है उनमें कितनी क्रूरता है इसी कारण यह पर्यावरण दूषित बन गया है। अब पर्यावरण भी यहीं कहता है मुझे दूषित किया है अब मैं भी तुम्हें नहीं छोड़ूंगा महामारी को फैलाकर ही रहूंगा।
 मानव ने कभी अन्य के सुख के बारे में सोचा ही नहीं। सुख दुखी है तो अपने दु:ख को दूर करने के लिए अनेक मार्ग ढूंढ नेता है कभी इन मूंगे पशुओं का भी सोचा? उन पर क्या बीतती होगी किस जबान से वे अपनी दर्द भी दास्तान सुनाये। जरा इन पशुओं पर दया करके तो देखो। उनको भी जीने का अधिकार दो सिर्फ स्वयं के सुख की ही मत सोचा। पूज्यश्री फरमाते है आप कभी फुर्सत निकालकर योग शास्त्र तरह से जीवन जीना चाहिए आप इस ग्रंथ को पढ़ेंगे आपको जरूर रास्ता मिलेगा। बस, आखिर में हमें इतना ही कहना है आप किसी को सुख न दे सको तो समूह में दूसरों के सुख की प्रार्थना करके शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।