
अहमदाबाद। शाहजहां का बनाया हुआ ताजमहल एक अजायबी है, ईजिप्ट का पीरामिड हमारे लिए एक अजायबी है। वस्तुपाल तेजपाल का बनाया हुआ दिलवाड़ा का मंदिर एक अजायबी है। इसी तरह शास्त्रकार महर्षि फरमाते हैं कि मानव को जो मनुष्य जन्म मिला है वह भी एक अजायबी है। कहते है दुनिया के बड़े वैज्ञानिक भी शरीर और मन का रहस्य अब तक नहीं जान पाए। हमारे में बहुत सारी ताकात भरी पड़ी है। शरीर एवं मन से जो कार्य करवाना है वो हम करवा सकते है परंतु अब तक हमने अपना लक्ष्य निश्चित ही नहीं किया तथा न ही इस मानव जीवन के मूल्य को समझे है। यदि हम इस मानव जीवन के मूल्य को बराबर समझकर इस मानव जीवन का उपयोग आराधना साधना विगेरे में कर लेते तो कब के वीतराग बन गए होते।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है हम इस मानव जन्म के मूल्य को बराबर नहीं समझ पाए तभी इस संसार में भटकना पड़ रहा है अनेक कष्ट एवं दु:खों को भी सहना पड़ रहा है जब तक हम गहराई से इस मनुष्य जीवन के मूल्य पर विचार नहीं करेंगे तब तक हमें सही मूल्य की जान नहीं हो पाएगी परमात्मा महावीर ने भी ये मनुष्य का अवतार पाया वे भी मनुष्य ही थे हम भी मनुष्य ही है फरक इतना था कि परमात्मा का संघयण वज्र ऋषभनाराच था और हमारा संघयण छेवट्ठुं है इन सब के होने के बावजूद भी परमात्मा ने वीतरागीता पद को पाकर अपना जीवन सफल कर दिया और हम अब तक इस संसार में ही भटक रहे है।
पूज्यश्री फरमाते है हमारा इस संसार में भटकने का क्या कारण हो सकता है? हमारे में अनंत शक्ति भरी पड़ी है यदि हम सही ढंग से विचार करते तो हमें इसका रहस्य जरूर मिलता परंतु हमारा प्रयत्न ही नहीं है। हम इस दुर्लभ मनुष्य जनम की कीमत नहीं समझ पा रहे है इसीलिए कहते है दुर्लक्षी आत्मा कभी दुर्लभ ऐसे मनुष्य जीवन का लाभ नहीं उठा सकती। कहते है माता-पिता के रक्त एवं वीर्य से शरीर बन सकता है लेकिन कोई यंभ या मशीन, मनुष्य को नहीं बना सकता है। इस चीज पॉशीटीव सोचो-नेगेटीव थींकींग मन में न घुसाओ। कोई उपवास करता है तो हमसे मासक्षमण क्यों नहींहोगा? महापुरूष अपने जीवन में जो कष्ट आए उसे सहन करके ही महान बनें है तो हम भी कोशिश करके जरूर आगे बढ़ेंगे ऐसी पॉशीटीव सोच जिनकी होती है वह व्यक्ति जरूर परमात्म तत्व को पाने में सफल बनता है।
मन में दृढ़ निश्चय करो कि हमें आत्मा से परमात्मा ही बनता है। इस प्रकार का लक्ष्य अगर आप बनाओंगे तो आप जरूर वीतरागीता को पाने में सफल बनोंगे जिनमें एक बार वीतरागीता आ गई उनमें के केवलज्ञान की ज्योति जरूर प्रगटेगी।
एक बात ध्यान में रहे कोई हमें कुछ भी कहे हमें मन पर नियंत्रण रखना है। जितने शांत आप बनोंगे उतनी ही जल्दी आप में वीतरागीता आएगी मन पर कंट्रोल रखकर कोई कितना भी गुस्सा दिलवाए हमें अपने आप कर काबू रखना है।
एक बार संत खेत में गन्ने लेने गए। गन्ने की गठरी अपने सिर पर उठाकर अपने घर की ओर लौट रहे थे कि रास्ते में बच्चे इकट्ठे हो गए संतजी! एक गन्ना दो ना। इस प्रकार एक-एक करके बच्चों ने संतजी के सभी गन्ने ले लिए अब संत के पास सिर्फ एक गन्ना बचा था। संत की पत्नी अपने पति की राह देखकर बैठी थी। अब तक क्यों नहीं आए थे सोचकर वह बाहर देखने गई। उसने अपनी आंखों से बच्चों की शरारत एवं संतजी का बच्चों को गन्ने देने का दृश्य देखा। गुस्से से संत के हाथ से गन्ना लेकर संत पर वार किया। गन्ने के दो टुकडे हो गए संत हंसने लगे। पत्नी ने पूछा मैंने आप पर वार किया फिर भी आप हंस रहे हो अरे! अब मुझे मालुम पड़ा, तुं, पतिव्रता नारी है। पति को छोड़कर अकेली नहीं खाएगी इसीलिए तुने इस गन्ने के दो टुकडे बनाए।
पूज्यश्री फरमाते है संत की महानता देखो गन्ने का मार खाया फिर भी शांत एवं प्रसन्न है। अपने मन पर काबू रखना है क्योंकि वीतरागीता इतनी आसानी से नहीं पाई जाती है। इसी वीतरागीता को पाने के लिए हमें अपने जीवन से राग द्वेष-कषायों को विदाई देनी होगी तभी तुम्हारे में केवलज्ञान रूपी ज्योति प्रगटेगी बस मन को काबू में रखकर, कषायों को जीतकर शीघ्र वीतरागीता को पाए यही शुभाशिष।