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अहमदाबाद। मनुष्य का जन्म हमें प्राप्त हुआ है तो हमें हर पल हर क्षण जागृत होकर आराधना-साधना में लग जाना है। सामान्य बातों से डिस्टर्ब नहीं होना है। निरर्थक चीजों में हमारा जीवन पूरा न हो जाए उसका ख्याल रखना है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए पूज्यश्री फरमाते है एक आदमी को कम सुनाई दे रहा था। कोई व्यक्ति उसके आगे जोर से बोले तभी उसे सुनाई देता था। किसी युवक ने इस विचारवान् व्यक्ति को पूछा, भैया! आपको सुनने में कम आता है तो तकलीफ ज्यादा ओर मुझे? नहीं नहीं तकलीफ तो उन्हें होती है जो मुझे सुनाने के लिए चोर से बोलते है। विचारवान लोग --- में अपना जीवन नहीं बिताते है। कहते है जहां --- होता है वहां समय नहीं बिगड़ता है। किसी को कुछ देने आए तो वह भी एक प्रकार की भलाई ही।
आप चाहे कोई भी धर्म लो हरेक धर्म में कोमन बात आती है ऐसा कोई धर्म नहीं जिसने ऐस कहां हो तुम किसी का भला मत करना सभी धर्म में लगभग सभी बातें एक सरीखी बताई है हमारा धर्म, तुम्हारा धर्म, हमारी फिलोसफी ऐसी है इस प्रकार से धर्म की बात पर कितने विवाद करते है लडाई झघड़ा करते है। कितने का कहना है हमारा धर्म करेंगे तो स्वर्ग मिलेगा, हमारे धर्म का यदि पालन, नहीं किया तो नरक में जाना पड़ेगा। किसी भी धर्म में जन्म लेने से स्वर्ग की गेरंटी नहीं बताई है न ही नरक की सजा बताई है।
कहते है किसी भी अच्छी बातों को अच्छे सेन्स में अच्थी तरह से पालन करने से ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है तथा कोई भी धर्म का पालन अच्छी तरह से नहीं किया तो दुर्गति निश्चित है।
आचारों प्रथमो धर्म यह बात जिस किसी ने भी हमें बताई है उसने हमें सोच समझकर ही बताई है। इसीलिए हमें अपना कत्र्तव्य समझकर इन आचारों का पालन करना चाहिए। पहली सूक्ष्म हिंसा बताई है आप के कारण किसी के मन को ठेस न लगे उस तरह से हमारी वाणी होनी चाहिए। अच्छे कुल में जन्म लेने से ही मोक्ष है ऐसा नहीं है बल्कि धर्म के आचारों का पालन करने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
योगशास्त्र में हेमचंद्राचार्य जी ने धर्म की व्याख्या बताई है दुर्गति में गिरते हुए प्राणीओं को धारण करने वाला धर्म ही है। एक बार सिद्धराज राजा ने हेमचंद्राचार्य महाराजा को पूछा, साहेब! कौन सा धर्म अच्छा है। हिन्दु-मुस्लिम, शिव धर्म या जैन धर्म तब हेमचंद्राचार्य जी ने राजा सिद्धराज को बताया राजन् सभी धर्म में अहिंसा का पालन-झूठ नहीं बोलना बिना पूछे किसी के अधिकार की चीज नहीं लेना-किसी के ऊपर बूरी नजर नहीं रखना, किसी के सात बूरा व्यवहार नहीं करना तथा आवश्यकता से ज्यादा चीजों का संग्रह नहीं करना इस तरह से पांच आचार सभी धर्म में कोमन ही है संक्षेप में कहे तो अहिंसा, सत्य, अचौर्थ, ब्रेह्रचर्य एवं अपरिग्रह इन पांच आचारों के पालन से ही किसी भी जीव को मुक्ति की प्राप्ति होती है।
हिंदु धर्म, मुस्लिम धर्म, क्रिस्टयन् धर्म विगेरे धर्मों के नाम शास्त्र में नहीं बताए थे सभी धर्म के नाम स्वयं लोगों ने ही रखा है। धर्म तो वह है जो सद्गति को दे। कितने लोग अत्याचार करते है कहते है यदि आप हमारा धर्म नहीं मानोंगे तो मार डालेंगे। पूज्यश्री फरमाते है किसी को मारना वह भी अधर्म ही है। तुम्हारा धर्म कहां गया? किसी की हिंसा नहीं करना यह बात स्पष्ट हरेक धर्म में बताई है तो इसका ख्याल रखना ही चाहिए।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रं\चर्य, परिग्रह विगेरे आचार जिनमें पाए जाते है वे सभी हमा ही है। कुल धर्म में पैदा होने वाले जैसे कि कोई मुस्लिम में पैदा हुआ अब्दुल कलाम जैसे मुसलमान ने अपने जीवन में कभी मांसाहार को हाथ नहीं लगाया। वे अहिंसामय जीवन जीए। कहते है व्यक्ति के कुलधर्म को नहीं देखना है बल्कि व्यक्ति के चरित्र को देखना है उनमें कैसे कैसे सद्गुण भरे पड़े है दुनिया व्यक्ति के धर्म को नहीं देखेगी उसमें रहे सद्गुणों को देखकर ही सारी जिंदगी याद रखेगी। कोई किसी में अच्छाई देखता है तो उसे जीवनभर याद रखता है।
किसी सज्जन का पाकिट भूल से आटो रिक्शा में रह गया। सज्जन अपने घर पहुंच गए मगर आटो रिक्शा वाले ने अपनी रिक्शा में जैसे ही पाकिट देखा उसमें लाख रूपिये थे तुरंत ही ऐड्रस के मुताबिक सज्जन को लौटाने उसके घर गया। सज्जन अपने पैसों को पाकर खुश हुआ भेंट के रूप में रिक्शा वाले को 5000 रुपिये दिए। रिक्शे वाले ने कहा साहब! मुझे भेंट नहीं चाहिए मैं ईमानदारी को कमाकर ही खाता हूं। रिक्शे वाले ने पैसे लौटा दिए लेकिन सज्जन जीवन भर तक उस रिक्शा वाले को भूल नहीं पाया कारण व्यक्ति में रहे गुणों, हरेक के दिल में याद बनकर रह जाती है मधुर वचनों को, आपके अच्छे वर्तन को, आपके सद्गुणों को हमेशा के लिए याद रखकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।