केके पाठक
शुभ विचार रखने के लिए हमें सबसे पहले जातिगत, धर्मगत पंथ-गत, ऊंच-नीच वा समस्त मानवों के साथ-साथ, समस्त प्राणियों के प्रति सद्भावना रखनी होगी। भेदभाव को खत्म करना होगा, तभी हमारे विचार शुभ विचार हो सकते हैं, शुभ विचारों में भेदभाव शोभिनीय नहीं है, अशोभनीय है। अनुचित है, और जब तक हमारे मन में समस्त मानव और प्राणियों के प्रति एकता का भाव जागृत नहीं होता तब तक हमारे मन में उनके प्रति शुभ विचार नहीं आ सकते। हमें सभी प्रकार के भेदभाव से दूर प्राणी मात्र के लिए सत्यता के आधार पर अपनी सोच को रखना होगा। यही शुभ सोच है, जो सच है सो है वह हमारी जाति का हो हमारे धर्म का हो या हमारे पंथ का हो, सच को सच कहना ही शुभ विचार है, यदि शुभ विचार के साथ हम कर्म करते हैं। तो हमारे कर्मों में कोई भेदभाव नहीं होगा मुझे याद आता है की एक गांव में एक ही जाति के लोग बहुत ज्यादा थे। अर्थात जाति बहुल गांव था, उसमें एक दूसरी जाति का व्यक्ति रहता था। गांव के ही एक व्यक्ति ने उस दूसरी जाति के व्यक्ति की जमीन पर अवैध कब्जा कर लिया, समस्त गांव वाले निडर थे, कि हमारा गांव जाति बहुल है, और मुखिया भी हमारा ही है। जो कुछ भी फैसला होगा हमारे ही हक में ही होगा।
उस दूसरे जाति के व्यक्ति ने, हिम्मत बांध कर और जायजा लेने के लिए कि, कम से कम तजुर्बा तो होगा। समाज में शिकायत की- समाज की बैठक हुई और जो मुखिया था, वह ईश्वर को मानने वाला था। मानवता को मानने वाला था, उसने सारे तथ्यों पर अपनी नजर डाली और वह इस निष्कर्ष पर निकला कि, उसके अपने ही जाति वाले की गलती है। और उसने अपनी ही जाति वाले के विरुद्ध फैसला दिया। समस्त गांव वाले फैसला सुनकर सन्न रह गए। क्योंकि उन्हें इस फैसले की आशा ही नहीं थी, वह तो इसी चक्कर में थे कि हमारी ही जाति का मुखिया है, तो फैसला हमारी ही जाति के हक में होगा। लेकिन मुखिया ईश्वर को मानने वाला था, और मानवता को मानने वाला था, अत: उसने सच और झूठ के अंतर को तौलकर कर, अपना फैसला सुनाया जब बैठक समाप्त हुई तो कुछ लोगों ने उससे कहा क्या आप आजकल अपनी ही जाति वालों के दुश्मन बन रहे हैं। आप अपनी ही जाति वालों के विरुद्ध में क्यों फैसला सुना रहे हैं। तब उस मुखिया ने जवाब दिया कि मैं यहां जातिवाद करने नहीं बैठा हूं, मैंने मानवता के आधार पर ईश्वर को साक्षी मानकर सच और गलत के बीच में जो सही था, वही फैसला सुनाया है। आज ईश्वर और सच्चाई की जीत हुई है। और यही सही है, ऐसे कर्म ही व्यक्ति के चरित्र को महान बनाते हैं, हमें सदैव ईश्वर को साक्षी मान का अपने कर्मों को करना चाहिए ईश्वर सर्व व्याप्त हैं, उन से डरना चाहिए, वह हमारे प्रत्येक कर्म को देख रहे हैं। और हमारे प्रत्येक कर्म का हिसाब किताब अपने आप होगा। इसलिए सदैव सत्यता के साथ चलो ईमानदारी के साथ चलो इसी में आपके जीवन की भलाई है। और इसी में आप एक चरित्रवान व्यक्ति बन पाओगे आपके इस चरित्र से समाज में अच्छाई फैलती है, जो कि एक परोपकार का काम है। आपके चरित्र का लोग अनुसरण करते हैं। और अच्छाई सारे समाज में फैलती है। हमें सदैव मानवता के प्रति समर्पित रहना चाहिए क्योंकि ईश्वर ने किसी एक खास जाति को नहीं बनाया है, ईश्वर ने तो मानव को बनाया है, यह हमारी गिरी हुई और नीची सोच है, कि हम मानव- मानव में फरक करते हैं। और हमारा झुकाव जातिवाद की ओर ज्यादा होता है, जाति का होना ठीक है किंतु सही गलत सत्य- सत्य का जब भी आकलन करना हो तो हमेशा मानवता के आधार पर करो। जाति धर्म पंथ और मजहब के आधार पर नहीं। महान संत कबीरदास जी कहते हैं, कि जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान। मोल करो तलवार का पड़ा रहने दो म्यान।। आपको आपके अच्छे कर्म का अच्छा फल तभी प्राप्त होगा, जब आप बिना किसी भेदभाव के अपना निर्णय लेंगे, या अपना निर्णय देंगे। जब तक आप भेदभाव से ग्रसित रहेंगे, तब तक आप महान नहीं बन सकेंगे और सच्चाई का अनुसरण नहीं कर सकेंगे। सच्चाई का निष्पक्ष अनुसरण ही आपके व्यक्तित्व को महान बनाता है। यदि आप धोखा छल और कपट करते हैं, और जातिगत भेदभाव रखते हैं, तो उस बेचारे दुखी व्यक्ति की आंहे आपका सब कुछ बर्बाद करके रख देंगी। यह प्रकृति और कुदरत का नियम है, ईश्वर के पास सब का हिसाब किताब रहता है दुनिया कर्म प्रधान है आप जैसे कर्म करोगे उसका प्रतिफल भी आपको वैसा ही प्राप्त होगा अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा व्यक्ति जाति से नहीं कर्म से महान बनता है। यदि आपके कर्म अच्छे हैं तो आप अवश्य महान व्यक्ति बनोगे। आप हमेशा जीवन में सुखी रहोगे, आपके घर परिवार का भला होगा, अच्छा ही अच्छा होगा, शुभ ही शुभ होगा। ईश्वर के पास देर है, अंधेर नहीं वह अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा ही लौटाते हैं, कहा गया है कि इस दुनिया में सब कुछ लौटकर आ जाता है- अगर आपने किसी के साथ अच्छा किया है तो आपके पास अच्छाई लौटेगी। और यदि आपने किसी के साथ बुरा किया है तो आपके पास बुराई लौटेगी। यह सुनिश्चित है। यह प्रकृति और ईश्वर का नियम है। फैसला आपके हाथ में है। कर्म करने के लिए आप स्वतंत्र हो बस शर्त इतनी है कि आप उसके प्रतिफल से बच नहीं सकते।
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