अहमदाबाद। मानव को जीवन में यदि किसी कार्य की सिद्धि मिलानी हो तो उसे साहस करना ही पड़ेगा। जो व्यक्ति कायर है, डरपोक है वह कभी जीवन में सफलता नहीं पाता है। जीवन को जीवंत बनाने वाला जो कोई तत्व इस दुनिया में है तो वह है साहस। कुछ कर दिखाने की तमन्ना के साथ जो प्रयास किया जाता है उसी का नाम सहास। लक्ष्य सिद्धि के लिए किया गया प्रकृष्ट प्रयास यानी साहस। सफलता को हासिल करने के लिए अपनी शक्ति का विचार किए बिना किया गया सफर याने साहस।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए पूज्यश्री फरमाते है जीवन के किसी भी क्षेत्र मेेंं साहस वह सफलता की सर्वश्रेष्ठ सीडी है। मान लो आपके पास सफलता को पाने के लिए अनेक साधन एवं साधना है मगर आपके पास साहस नहीं तो सम्पूर्ण तरीके से आपको सफलता नहीं मिलेगी यदि सफलता मिल भी गई तो उसमें कोई दम नहीं रहेगा। जहां साहस वहां सफलता मिले बिना नहीं रहता है। इसीलिए संस्कृत में एक युवाक्य है साहसे वसति सिद्घि जिनके पास साहस है उसे सिद्धि अवश्य मिलती ही है।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है साहसिक कौन बन सकता है? जिनमें नीचे बताए गए चार गुण है अथवा तो इनमें से कोई भी एक गुण है।
सत्वशील:- साहसिक व्यक्ति में महत्व का गुण सत्व है। जिनके पास सत्व है। वह सफलता साहस कर पाता है। विक्रमादित्य की साहस कथा आपने सुनी होगी। उनमें सत्व था तभी वे अपने जीवन में साहस करके झझूम सके।
निर्भय:- निर्भय याने निर्डर। कहते है साहस करते समय कितनी बार आंधी-तूफान आने की संभावना है ऐसे समय में जो व्यक्ति नीडर है वो नहीं टिक सकता है। डरपोक व्यक्ति साहस कभी नहीं कर सकता है। मान लो कोई तकलीफ वाला कार्य हो तो डरपोक व्यक्ति कार्य की सिद्धि नहीं कर पाएगा।
महत्वकांक्षी:- महत्वकांक्षी व्यक्ति के मन में लगभग करके महत्तम आकांक्षाओं जागृत होती रहती है तथा उस आकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए साहस किए बिना फलीभूत नहीं होता है। शूरवीर:- शूरवीर व्यक्ति हमेशा साहसिक ही होता है। शूरवीर मानवी कायरता का शत्रु है। वह कभी नार्मद नहीं बनता। अवसर आने पर मौत को हाथ में लेकर साहस का सहारा अवश्य ले लेता है।
साहस दो कार्य के लिए किया जा सकता है। सत्कार्य, असत्कार्य। सत्कार्य के किया गया साहस सद्गति की भेंट देता है जबकि अकार्य के लिए किया गया साहस दुर्गति की सजा दिलवाता है।
पूज्यश्री फरमाते है अहिंसा-संयम-तप एवं दान आदि धर्म को सिद्ध करने के लिए साहस आवश्यक है जैसे कि चरित्र धर्म बिना साहस सिद्ध नहीं होता है। शालिभद्र सेठ के मन में वैराग्य का प्रकटीकरण 32 पत्नीओं के त्याग के बाद चरित्र धर्म स्वीकारने की उनकी भावना थी। जैसे ही सुभद्रा अपने पति धन्ना को स्नान कराती हुई रो रही थी। एकाएक पानी का गरम बिंदु अपने शरीर पर पडऩे से धन्ना सेठ खड़े हुए। अरे सुभद्रा से क्या? एकाएक क्या हुआ? क्या मुझसे कोई भूल हुई? नहीं स्वामीनाथ! आपको कोई अपराध नहीं। दरअसल मेरा भाई शालिभद्र रोज की एक पत्नी का त्याग करके संयम पथ पर अग्रेसर हो रहा है। ओहो। वैरागी बना है फिर भी एक-एक का ही त्याग कर रहा है। एक ही झटके में 32 पत्नीओं का त्याग क्यों नहीं करता है? क्या वह कायर है? अरे स्वामीनाथ! ऐसा न कहो-बोलना सरल है लेकिन लेकिन करना कठिन है। सुभद्रा की ये बात सुनकर सत्वशील एवं शूरवीर ऐसा धन्ना सेठ ने एक ही पल में आठों पत्नीओं का त्याग करके संयम के लिए चल पड़े। उन्होंने शालिभद्र में भी साहस जुटाकर चरित्र ग्रहण करने के लिए तैयार किया।
तुरंत ही सुभद्रा ने अपनी भूल की माफी मांगी। नगर धन्ना सेठ में सत्वशीलता एवं शूरवीरता होने के कारण उन्होंने अपने साहस को मजबूत करके चरित्र धर्म का स्वीकार किया। पूज्यश्री फरमाते है व्यक्ति अगर साहस करे तो उसे अपने कार्य में सफलता अवश्य मिलती है बस सफलता को पाने के लिए साहस का आधार जरूर लेकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।
Head Office
SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH