केके पाठक
सौंदर्य प्रकृति का उपहार है, सौंदर्य के प्रति आपकी दृष्टि नहीं दृष्टिकोण भी सुंदर हो इसीलिए कहा गया है कि- सत्यम शिवम सुंदरम- ईश्वर सत्य है- सत्य ही शिव है- और शिव ही सुंदर है- उमा कहउ मैं अनुभव अपना सत्य हरि- भजन जगत सब सपना, परमपिता ईश्वर के इस जगत में जो कुछ भी है सब सुंदर है, ईश्वर की हर कृति सुंदर है। आप कभी खजुराहो के मंदिर गए होंगे, मंदिर के चारों तरफ सांसारिक प्रक्रियाएं, सौंदर्य, समाज, नियम कानून और स्वेच्छा, साथ में मर्यादा इस संसार को गति प्रदान करने के लिए इस संसार को चलाने के लिए ईश्वरीय कृपा ईश्वरीय दया मर्यादित जीवन के दृश्य देखने के बाद भी यदि आपका और आपके मन का भटकाव दूर नहीं होता। तो आप कभी भी ईश्वर को नहीं जान सकते। जब आपके मन का भटकाव दूर होगा, आप इस मर्यादित सांसारिकता, खुली हुई मर्यादित सांसारिकता से ऊपर नहीं उठते। तब तक आप प्रभु के श्री चरणों में नहीं पहुंच सकते खजुराहो के मंदिर में चारों तरफ सांसारिक खुली मर्यादित चित्र यही इंगित इशारा करते है कि क्या आप जीवन भर इसी भटकाव में भटकते रहेंगे या इससे आगे भी बढ़ेंगे। अगर आप इससे आगे बढ़ते हैं, तो मंदिर के अंदर साक्षात परमपिता ईश्वर श्री मतंगेश्वर महादेव जी विराजमान है। आपको अपना दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता है। इस संसार में जितने भी प्राणी मानव जीव जंतु दिखाई दे रहे हैं, वह सब इसी ईश्वरीय कृपा के परिणाम हैं, हम और आप भी परमपिता ईश्वर की इसी महान कृपा के परिणाम हैं। राज महल में दरबार लगा हुआ था, राज महल में रोज दरबार लगता था रात्रि के 11बजे से रात्रि के 12 बज जाते थे। एक दिन राजा और रानी का बिस्तर लगाने वाला राजसेवक जो लगातार 40 वर्षों से लगातार हर रोज राजा और रानी का बिस्तर लगा रहा था। उस दिन ना जाने क्या उसको सूझा उसने शयनकक्ष में लगे, आदम कद शीशे में अपना अक्स चेहरा देखा, और वह सपनों में खो गया। उसे अपने जवानी की याद आ गई 40 वर्ष पहले की याद आ गई रोज-रोज यही काम करते करते आज मैं बूढ़ा हो चला हूं। मेरे बाल सफेद हो गए हैं। मैं रोज बिस्तर लगाता हूं, हमारे महाराजा और महारानी का विस्तर लेकिन मैंने कभी भी इस बिस्तर में 5 मिनट लेट कर बिस्तर का आनंद लेने की जुर्रत नहीं की, क्यों ना आज इस राजशाही विस्तार का पांच- दस मिनट लेटके आनंद ले लिया जाए, वैसे भी अभी 10 ही बजे हैं महाराजा और महारानी तो लगभग 11-12 बजे तक इस राजशाही बिस्तर में सोने के लिए आते हैं। फिर क्या था राज सेवक ने थोड़ी देर के लिए अपने शरीर को बिस्तर पर लेटा दिया - 5 मिनट हो गए -7 मिनट हो गए और यह क्या राज सेवक को गहरी नींद आ गई, राज सेवक ने रजाई खींची और ओढ़ कर सो गया। कहते हैं कि भूख ना देखें झूठा भात, और नींद ना देखें टूटी खाट। राजसेवक को उस राजशाही मखमली विस्तार ने सुला दिया राजसेवक आराम से सो रहा था रात्रि के 11 बजे महारानी का शयन कक्ष में प्रवेश हुआ। महारानी ने देखा तो उन्हें यूं लगा। जैसे महाराजा आज जल्दी राज दरबार से आकर थक कर सो गए होंगे। महारानी भी बगल में अपनी रजाई खींचकर सो गई रात्रि के 12 बजे दरबार समाप्ति के पश्चात महाराजा का आगमन हुआ, उन्होंने देखा यह बिस्तर पर एक तरफ महारानी और एक तरफ दूसरा कोई और राजा साहब ने तुरंत अपने मयान से तलवार निकाली और रानी के सर पर रानी की गर्दन पर वार करने वाले ही थे, कि उन्हें कुछ याद आया कि आज राज दरबार में चर्चा के दौरान एक वरिष्ठ मंत्री ने एक बात कही थी कि, कभी-कभी आंख का देखा भी गलत हो जाता है। राजा साहब ने सोचा अब यह दोनों मेरे शिकार तो है ही, क्यों ना वरिष्ठ मंत्री को बुलाकर एक बार चिंतन मनन कर लिया जाए। कि वास्तव में सच्चाई क्या है, वरिष्ठ मंत्री के कहने का तात्पर्य क्या था, फिर क्या था वरिष्ठ मंत्री को बुलवाया गया, वरिष्ठ मंत्री आया और राजा साहब से कहा आप इस दरवाजे के पीछे तलवार लेकर खड़े हो जाइए, आप तब तक बाहर नहीं निकलेंगे, जब तक मैं आप से नहीं कहूंगा, राजा साहब चुपचाप दरवाजे के पास तलवार लेकर खड़े हो गए, वरिष्ठ मंत्री पलंग के नीचे घुस गया। और उसने एक आलपिन ली, और धीरे से रानी साहिबा को चुभोई और फिर धीरे से वही आलपिन बगल में सो रहे, व्यक्ति को चुभोई दोनों ने अपना चेहरा खोला, दोनों की नींद खुल गई, राजा साहब का दिमाग तमतमा गया, यह क्या देख रहा हूं मैं.....? किंतु वरिष्ठ मंत्री की बात उन्हें याद थी वरिष्ठ मंत्री ने यह क्रम तीन चार- बार दोहराया जब दोनों की नींद पूरी तरह खुली तो दोनों उठ कर बैठ गए। और दोनों एक दूसरे की तरफ देखकर हतप्रभ रह गए। राजसेवक ने तुरंत महारानी के चरण पकड़ लिए और पूरे घटनाक्रम को उनके सामने सुना दिया। रानी साहिबा ने भी किस प्रकार राजसेवक को राजा समझकर बगल में लेटने का पूरा घटनाक्रम राजसेवक को सुनाया, दोनों में सहमति बनी यह बात किसी को पता नहीं चलना चाहिए, राजसेवक ने कान पकड़कर उठक- बैठक लगा कर क्षमा मांगी। और रानी साहिबा के पैर छुए कि मुझे क्षमा कर दो इतने में वरिष्ठ मंत्री ने राजा साहब को इशारा किया, राजा साहब दरवाजे की आड़ से बाहर निकले और सच्चाई को जानकर मन ही मन पछताने लगे। अगर मैंने सही दृष्टिकोण नहीं अपनाया होता और अपनी दृष्टि पर ही भरोसा किया होता तो, आज मेरे हाथों कितना बड़ा अनर्थ हो जाता। इसीलिए कहा गया है कि दृष्टि नहीं दृष्टिकोण को भी सुंदर बनाओ। पहले सोचो फिर समझो उसके बाद कुछ करो।
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