केके पाठक
पशु पक्षी और जानवर इस प्रकृति का एक हिस्सा है, वह भी ईश्वर का ही अंश है, पशु पक्षी और जानवर- ईश्वर ने हमें इस प्रकृति के उपहार, और प्रकृति के सौंदर्य, और प्रकृति के सामंजस्य के लिए इस प्रकृति में उनका जन्म दिया है। प्रत्येक पशु पक्षी और जानवर का इस दुनिया में अपना-अपना महत्व है, इस दुनिया में महत्वहीन व अनावश्यक कुछ भी नहीं है। यह तो दुनिया के समझदार सबसे समझदार प्राणी मानव के व्यवहार की क्रूरता है ? कि वह ईश्वर की लीला और ईश्वर की रचना को समझने में नाकामयाब है, पशु ,पक्षी और जानवरों को भी अपनी पूरी जिंदगी जीने का अधिकार है, और कानूनन होना चाहिए, इसके लिए भारत सरकार को कड़े की नियम और कानून कायदे बनाने की जरूरत है। प्रकृति पर उनका भी पूरा अधिकार है- जिस प्रकार मानव का प्रकृति पर अधिकार है। मानव जीवन के लिए मूलभूत आवश्यकताओं का अधिकार है। उसी प्रकार पशु पक्षी और जानवरों को भी इस प्रकृति में जीने का पूर्ण अधिकार है, किंतु विकृत मानवता के कारण लगातार पशु पक्षियों पर अत्याचार हो रहे हैं, क्रूर मानव पशु पक्षियों एवं जानवरों के जीवन पर अपना अधिकार अपने बल और बुद्धि और विवेक का दुरुपयोग करके जमाना चाहता है। और जमा रहा है, जंगलों का काटना जंगल बचे नहीं, क्रूर मानव ने जंगलों में भी अपना आधिपत्य और अधिकार जमाना शुरू कर दिया है, तो पशु पक्षी कहां जाएं।
जंगलों के सभी फलदार पौधों, और उपयोगी पौधों पर मानव ने अपना अधिकार जमा लिया है, अब पशु पक्षी और जानवर क्या खाएं, घास के मैदानों को मानव ने बर्बाद कर दिया है, जल की उपलब्धता बांध और एनीकेट बनाकर रोक दी गई है, पशु पक्षियों के लिए जंगलों में रहना मुश्किल है, जंगलों में भी मानव घुस- घुस कर पशु पक्षियों और जानवरों के रहने के अधिकार को छीन रहा है। ऐसे में पशु पक्षी और जानवर शहरों की ओर कूच करने लगते हैं, जहां उन्हें शहरी लोग एक खेल और मजाक की वस्तु समझ कर मारते- पीटते और अधिकांशत: उन्हें जान से मार देते हैं। कभी उनको जहर दे दिया जाता है, तो कभी उनको रोटियों में भर के बारूद खिला दिया जाता है। यह मानवता के नाम पर कलंक है। और प्रकृति का उल्लंघन है। प्रकृति के नियमों का अवहेलना है। जिसका परिणाम मानव को आज नहीं तो कल भुगतना ही पड़ेगा। कुछ पशु पक्षी और जानवर जिन्हें मानव पालतू जानवरों के नाम से पुकारता है। उनके साथ भी कम अत्याचार नहीं होते, कुछ जानवरों, पक्षियों को मनुष्य पिजड़ों में, कैद करके अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करता है।
किसी की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करके अपने आप को आधुनिक और सभ्य मानव कहलाने का दम्भ भरता है, गाय बैल, सूअर, भैंस, भैंसा को व्यक्ति तभी तक पालता है जब तक वह दूध देते हैं, इसके बाद या तो उन्हें वह आवारा छोड़ देता है। जिसको क्रूर मानवता क़त्ल खानों तक पहुंचा देते है। जिन्हें जिंदा काट क़त्ल कर दिया जाता है। अधिकांशत पालतू जानवर जब मानव के काम के नहीं रहते, तो वह यह जानते हुए भी कि इसका उपयोग अब क़त्ल खानों में होगा तब भी वह व्यक्ति उन्हे क़त्ल खाने वालों को थोड़े से रुपया और पैसे की लालच में बेच देता है कितना लालची और घातक सोच वाला मानव है। जो मानवता के नाम पर एक बहुत बड़ा कलंक है। वैसे तो सरकार को देश के समस्त वैध क़त्ल खानों को हमेशा हमेशा के लिए बंद कर देना चाहिए, और अवैध क़त्ल खानों के लिए कड़े से कड़े कानून बनाकर सजा का प्रावधान रखना चाहिए, वह दिन कब आएगा जब गाय बैल, भैंस और भैंसा दीपावली मनाएंगे ? और वह दिन कब आएगा जब बकरा और बकरी भी ईद मनाएंगे ? तब वास्तव में मानव- मानव कहलाने लायक होगा। खेतों और बैल गाडिय़ों मैं किसान बैलों और भैसों से खेतों में जी भर कार्य लेता है, उसका यह नैतिक दायित्व है, कि उन्हें वह पौष्टिक भोजन दे, ताकि वे तंदुरुस्त रहें और उनके साथ मानवता पूर्ण व्यवहार करें, उन्हें लाठी और डंडों से ना मारे, अधिकांशत: यह देखा जाता है, कि लकड़ी के आगे डंडे के आगे एक बारीक खील लगाई जाती है ,जब बैल और भैंसे थक जाते हैं, या उन्हें भूख प्यास लगती है,तो वह रुक जाते हैं चलते नहीं हैं, बदले में क्रूर मानव उनके पिछवाड़े में कील चुभाता है, बेचारे दर्द के मारे, पुन: अपने कार्य में लग जाते हैं, यह पशु पक्षी और जानवरों के साथ क्रूरता पूर्ण व्यवहार है, जिस पर रोक लगाए जाने की आवश्यकता है।वे मार खाकर डर वस मानव का कार्य करने को मजबूर होते हैं, क्योंकि वह इसके प्रत्युत्तर में मानव को कोई जवाब देने में अक्षम होते हैं। किंतु ईश्वर सब देखते हैं, ईश्वर सर्व व्याप्त हैं, ईश्वर के पास आपके सारे कर्मों का लेखा जोखा होता है। दुनिया से नहीं तो कम से कम परमपिता ईश्वर से तो डरो..... और उसका प्रतिफल और परिणाम आप को अवश्य भुगतना पड़ता है, मानवता इतनी क्रूर है, कि शांति का संदेश देने के लिए कबूतरों को उड़ाती, है और इसके बाद मुर्गे की पार्टी चलती है। क्या इसको मानवता कहते हैं। दिखावटी पन खत्म होना चाहिए। और सच्ची मानवता- मानव में जागृत होना चाहिए व्यक्ति को अपने कर्मों से अपने- आप को मानव और मनुष्यता सिद्ध करना चाहिए।तांगे में घोड़ों को और घोडिय़ों को कोड़ों से पीटा जाता है, हाथी के कान के पास लोहे का हुक नुमा औजार लगाया जाता है, जिसे अंकुश कहते हैं। उसे खींचते हैं तो दर्द होता है और हाथी रुक जाता है, यह सब मानवता को कलंकित करने वाले कृत्य हैं। जीव जंतु पशु पक्षी और जानवरों से हमें प्यार करना चाहिए। उनसे प्यार भरा व्यवहार करना चाहिए। वह हमारे जीविकोपार्जन के साधन भी बनते हैं, फिर भी हम उनके साथ क्रूरता और अन्याय करना नहीं छोड़ते, यह कैसी मानवता है।
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