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हम उस देश के वासी हैं- जिस देश में गंगा बहती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार गंगा का अवतरण भगवान शिव की जटाओं से- श्री भागीरथी जी के अथक प्रयासों से प्रकृति में मानवता के कल्याण के लिए, हुआ है,गंगा मोक्षदायिनी, पापनाशिनी,आपके जीवन का कल्याण कर उद्धार करने वाली है, कुछ नासमझ लोग गंगा स्नान का मजाक उड़ाते हैं, उनका कहना है, कि गंगा में स्नान करने से तन धुलता है,उन्हे तन धुलने  के महत्व को भी समझना होगा। उनका कहना कुछ- कुछ सही भी है तन धुलने से तात्पर्य, मैं अब इस तन से कोई भी नियम विरोधी कार्य, पापपूर्ण कार्य, प्रकृति विरोधी कार्य, संविधान विरोधी कार्य, समाज विरोधी कार्य नहीं करूंगा मन मैं ऐसा संकल्प लेकर गंगा में डुबकी लगाना ही,वास्तव में गंगा स्नान करना है। गंगा स्नान करने का तात्पर्य और मतलब जो वेद पुराणों में लिखा हुआ है, उसके अनुसार गंगा स्नान करते समय व्यक्ति को यह प्रण लेना पड़ता है कि मैं इस तन के द्वारा कभी भी कोई गलत कार्य, अनैतिक कार्य असंवैधानिक कार्य, पाप पूर्ण कार्य नहीं करूंगा। इसके बाद उसको डुबकी लगानी होती है  यही वास्तविक गंगा स्नान है  इसके बाद यदि वह व्यक्ति अपने प्रण से, विमुक्त हो जाता है और फिर अपने शरीर से पाप और अन्याय पूर्ण कार्यों में सनलिप्त हो जाता हैं, तो उसके गंगा स्नान करने का कोई महत्व नहीं रह जाता। क्योंकि वह प्रण अपने मन से करता हैं की,अपने तन से पाप पूर्ण कार्य,अन्याय पूर्ण कार्य नहीं करेगे, अत: उनका गंगा स्नान व्यर्थ हो जाता है, यदि यह प्रण लेने के बाद भी वह अपने मन को वश में नहीं रख पाता और तन द्वारा गलत कार्य करता है, तो उसका गंगा स्नान महत्वहीन है। यदि आप अपने प्रण पर कायम रहते हैं, तो आपके जीवन का  गंगा स्नान से कायाकल्प हो जाता है। और आप एक सुंदर, सभ्य और सुशील सामाजिक प्राणी बन जाते हैं। जिसे वास्तव में मानव और इंसान कहा जाता है। गंगा का इतना महत्व है कि लाखों  किलोमीटर दूर से भी यदि आप गंगा का नाम लेकर गंगा का स्मरण करके, उनसे प्रार्थना करते हैं तो आपकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। और आप का कल्याण हो जाता है, लेकिन यह निर्भर करता है आपके मन की सच्चाई समर्पण और वास्तविकता पर यदि आप दिखावा करते हो तो आपको इसका प्रतिफल कभी भी प्राप्त नहीं होगा, एक व्यक्ति रास्ते से जा रहा था उसे एक आम का  पेड़ दिखाई दिया उसमें उसने देखा कि उसमें पके- पके आम के फल लगे हुए हैं, वह व्यक्ति झाड़  के पास गया, और उसने 02-04 आम तोड़ लिए, इतने में आम के बगीचे का मालिक आया, और उसने उस व्यक्ति की पीठ पर डंडा दे मारा, अब आप देखिए की कसूर उसकी आंखों का था जिसने आम देखे थे, और वह पैरों से चलकर गया था, और उसके हाथों ने आम तोड़े थे, और उसने अपने मुंह से आम को खाया था। लेकिन पीठ का इसमें कोई रोल नहीं था, फिर भी मार डंडे द्वारा पीठ पर पड़ी। जब पीठ पर मार पड़ी तो दर्द हुआ और आंसू आंख से निकले, कहने का तात्पर्य जिसका कसूर था वहीं से आंसू निकले। अर्थात अपने मन और आंखों को वश में रखना सीखिए। इसी प्रकार गंगा स्नान में यदि आपका प्रण टूटता है, तो सबसे पहले आपका मन दोषी है। इसके बाद आपका तन। सजा पहले आपके मन को मिलेगी, और तकलीफ आपके तन को होगी, इसलिए गंगा स्नान मन कर्म और वचन से करें, वेदों में लिखा हुआ है कि गंगा का पर्याय जल है, अत: अगर हम जल से स्नान करते हैं, तो हमारा तन शुद्ध और साफ रहना चाहिए,भौतिक रूप से नहीं कर्मों के रूप से भी,  हमारा मन स्थिर रहना चाहिए उसमें सदैव सकारात्मक विचार आना चाहिए, यही वास्तविक गंगा स्नान है,भारतीय संस्कृति में बहुत गहराई है,जब तक आप उसमें गोते नहीं लगाते, तब तक आप भारतीय संस्कृति को नहीं समझ पाएंगे। उसमें जीवन के कल्याण और मानवता के कल्याण के सिवाय और कुछ भी नहीं है, जियो और जीने दो की प्रेरणा है, विश्व के समस्त प्राणियों के सुखमय जीवन की कामना है। और सदकर्मों की प्रेरणा है। और नासमझो के लिए यह एक समझ है।