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अहमदाबाद। परमात्मा एक ऐसा तत्व है जो राग एवं द्वेष से रहित है। परमात्मा में मुख्य दो गुण दिखते हैं, एक वीतरागीता एवं दूसरा सर्वज्ञता। वीतरागीता के बिना सर्वज्ञता शोभता नहीं है। इसीलिए सर्वज्ञ बनने के पहले आत्मा में वीतरागीता आनी चाहिए।
आत्मा में सर्वज्ञता के साथ वीतरागीता न आए तो समझ लेना कि दूसरे दोषों को देखकर अंतर में द्वेष प्रकट होता है। किसी भी व्यक्ति के प्रति तिरस्कार भाव प्रगट होता है इसीलिए कहा है सर्वज्ञता वीतरागीता से ही शोभती है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है दक्षिण भारत में एक बड़े जज को लेक्चर के लिए बुलाया था उसके पहले उन्होंने जैन धर्म के विषय में बराबर अभ्यास चालु किया था। भाषण में उन्होंने कहा, मैं हिन्दु हूं। वह भी एक महान धर्म है। भगवान महावीर का चरित्र मैंने पढ़ा। मैं राम भगवान का भक्त हूं। मुझे उन पर श्रद्धा है वे मुझसे भी बड़ी हस्ति है।
आप मार्किट में दूध लेने गए। पचास रूपिया देकर दूध ले आए। दूसरे दिन उसी मार्किट में पचीस रूपिया का दूध मिलता उसे आप खरीद कर लाए। आपके मन में आनंद था कि आज आप दूध सस्ते में लेकर आए परंतु जब आपने दूध पीया तब मालुम पड़ा कि कल जो दूध लाया था वह अमूल का था तथा आज जो दूध लाया है वह पानी वाला है इसी तरह आपको हरेक देव का मूल्यांकन करना चाहिए। उसमें सिर्फ फरक इतना है कि जिस देव में वीतरागीता है वह देख सर्वोत्तम तथा सर्वोत्कृष्ट है।
जज ने कहा, देव, देव में फरक है। परमात्मा महावीर का चरित्र जो मैंने पढ़ा है उसमें जानने में आया कि परमात्मा महावीर जंगल में गए वहां पर उन्हें चंडकौशिक सांप ने डंक मारा तभी शक्ति संपन्न परमात्मा ने चंडकौशिक को मारा नहीं बल्कि उन्होंने कहा, बुज्झ-बुज्झ चंडकौशिक! इस तरह सांप को संबोधन करके उपदेश दिया। भयंकर तथा क्रोधी ऐसा चंडकौशिक सांप का गुस्सा शांत हो गया।
रामचरित्र में एक घटना आती है। राज, लक्ष्मण एवं सीता तीनों जंगल में चल रहे थे अचानक एक कौए ने आकर सीता के मस्तक पर चांच मारी। राम ने इस देखा पत्नी के ऊपर अत्यंत स्नेह के कारण उन्होंने कौए को तीर मारा तथा कौआ मर गया।
मेरे मन में एक प्रश्न उठा। महान कौन? कोई अज्ञानी प्राणी को मार डाले वो महान या कोई अज्ञानी प्राणी को आशीर्वाद देकर उसे नारे वो महान? परमात्मा सभी जीवों के प्रति उनके ह्रदय में मैत्री भाव तथा करुणा भाव उछलता है।
उपदेश प्रसाद ग्रंथ में कहते है जब आत्मा में परमात्मा के प्रति दृढ़ श्रद्धा होती है तभी हम धर्म में स्थिर कहे जाते है। किसी ने मुझे पूछा, साहेब! दीक्षा कौन लेता है? जिनका संसार उजड़ गया है व े? हरेभरे संसार में भी जिसे अकेलापन लगता है वे? जिसके पास खाने के लिए अन्न नहीं वे?
भाई! जिसने संसार की वासना मिटा दी है हरेभरे संसार में भी जिनका वैराग्य भाव उछलता है ऐसे लोग मस्ती से दीक्षा लेते है। एक व्यंग है
पिताजी पिन्टु के साथ खोलते खेलते कहा, बेटा! इसने जो पहलीहै वो घडियाल मेरी है। पिन्टु ने कहा, नहीं, ये तो मेरी है। यह पेन मेरी है, नहीं मेरी है। अच्छा। यह जो तेरी मम्मी है वो मेरी पत्नी है। पिन्टु ने कहा, नहीं ये तो आपकी नहीं मेरी है।
छोटे बच्चों में ऐसा ममत्व भाव होता है कि हरेक चीज पर अपना खुद का अधिकार जमाना चाहते है। तथा बालक में निर्दोषता भी इतनी ही है। हम बच्चों को जिस प्रकार सिखाए ऐसा ही बोलने लगता है इसलिए जीवन में ध्यान रखना चाहिए।
वे पिता जी उस छोटे बालक को साथ में लेकर मेरे पास आए तता कहने लगे, साहेब! यह लड़का कुछ भी धर्म आराधना नहीं करता है। साहेब! मुझे बहुत ही चिन्ता हो रही है कि ये धर्म नहीं करेगा तो उसकी दुर्गति होगी।
मेरा आप लोगों को एक प्रश्न है कि बताओं कौन से मां बाप अपने बालक के लिए इस प्रकार की चिंता करता है आज का अेज्जुकेटेड पिता बच्चे के अेज्जुकेशन की चिंता करता है। उसके लिए वे लाखों कमाते है तथा लाखों खर्चते है।
मेरे लड़के को अच्छी से अच्छी बहु मिलने इसके लिए देश परदेश परिभ्रमण करते हो मेरा लड़का धर्म से वंचित न हो इसका ख्याल रखते हो? उसमें सम्यक्त्व आता है। हम सम्यक्त्व में दृढ़ बनकर अंत में परमात्म स्वरुप को प्राप्त करने का प्रयास करें।