
अहमदाबाद। एक भाई को घूमने जाना था। कई दिनों से पडोसी को कह रहा था मुझे काश्मीर जाना है इस बात को कहकर सात दिन बीत गए। पडोसी ने पूछा, भाई! आप तो कह रहे थे काश्मीर जाना है फिर गए क्यूं नहीं? किसका इंतजार कर रहे हो? भाई साहेब ने पडोसी को कहा, भाई काश्मीर जाना तो था परंतु मैं किसी कंपनी के लिए इंतजार कर रहा था। दुनिया में कितने लोग ऐसे है जिसे कंपनी के बगैर बाहर घूमना अच्छा नहीं लगता कहीं भी गए चाहे वह होटल जाता हो, थेटर जाता हो या कहीं हिल स्टेशन जाता हो, किसी न किसी दोस्त को साथ लेकर ही जाता है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है कोई भी मनुष्य जब जन्म लेता है तब वह अकेले ही पैदा होता है। संसार में आने के बाद उसका रिश्ता हर भाइर्, बहन के रूप में कोई पति, तो कोई पत्नी। इस प्रकार हर एक के साथ किसी न किसी तरह से उसका नाता जुड़ता है। यदि आपके साथ संबंध जोडऩे वाले आपका साथ न दे तो डरने की कोई जरूरत नहीं। ऋषभ देव भगवान ने हजारों के साथ दीक्षा ली थी जबकि महावीर स्वामी भगवान अकेले ही दीक्षित हुए उनके साथ किसी ने कंपनी नहीं दी। मान लो कभी आप घर में अकेले हो आपके परिवार वाले कहीं बाहर गए है घर का वातावरण शांत है सूर्यास्त के बाद का समय है आप शांति से टी.वी. देख रहे हो अचानक कहीं से कुछ गिरने की आवाज आती है यदि आप डरपोक हो तो डर जाते हो। आप की जगह कोई बहादुर होगा तो सोचेगा चूहा है उसी ने कुछ गिराया है। दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते है उन्हें ऐकांत में डर नहीं लगता है।
एक कवि अपने घर में अकेला था। अपनी मस्ती की जिंदगी जी रहा था। घर में रहते हुए उसका समय कहां पुरा होता था वो भी उसे मालुम नहीं किसी ने कवि से पूछा, आप अकेले घर में कैसे खूब सुंदर जवाब दिया। डर किसी बात का? मैं तो अपनी मस्ती में मस्त होता हूं तथा भगवान जो मेरे साथ है फिर मुझे डर किस चीज का है?
पहले के जमाने में श्रावक तथा साधु रात को श्मशान में जाकर काउसग्ग करते थे। एकांत एवं मौन भगवान से डायरेक्टर अेटेचमेंट कराता है। एकांत से प्रचंड शक्ति मिलती है। आत्मा नित्य है। कोई आपको मारने आया। मृत्यु का जिसे डर नहीं। उसने जिंदगी की बाजी जीत ली है। आत्मा नित्य है जो पूरी तरह से यह बात समझ गया है वह व्यक्ति जन्म मरण से डरता नहीं है।
एक लड़का अंधेरी कोठरी में गया। जोर से चिल्लाकर दादा को कहा, दादा! लाईट नहीं है यहां तो अंधेरा है दादा ने कहा, बेटा! तुं चुपचाप वहीं बैठ जा। कुछ ही देर में जो पहले नहीं दिख रहा था वह अभी धीरे-धीरे कुछ कुछ दिखने लगा है।
विज्ञान का कहना है कि जब हम एकांत में होते है तब हमारी आंख की पुतली चौड़ी हो जाती है इसी प्रकार अध्यात्म जगत में एकांत में हमारी आत्मा चौड़ी हो जाती है। जब भी अंधकार का, एकांत का डर लगता हो तब हमें सोचना चाहिए कि हमारी आत्मा ज्ञान-दर्शन चरित्र से युक्त है इससे अपनी आत्मा में हिम्मद आती है। हम अभी तक सविकल्प दशा में जी रहे है निर्विकल्प दशा अभी तक हमारे में आई नहीं है इसलिए डर लगना स्वाभाविक है। अगर आप विचार अच्छा करोंगे, निडरता की सोच अपने में पैदा करोंगे तो आत्मा निर्भय बनेगा।एकांत में रहने वाला मृत्यु के भय को जीतने वाला होता है तथा एकांत में जिसे नमस्कार महामंत्र याद आता है उसका जीवन धन्याति धन्य बन जाता है। निर्डर बनो निर्भय बनो शीघ्र आत्मा की उन्नति करके आत्मा से परमात्मा बनो।