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केके पाठक
हमारे जीवन में सफलता के लिए शुद्ध आहार का होना नितांत आवश्यक है शुद्ध आहार से तात्पर्य ऐसा भोजन जो किसी भी प्राणी को बगैर कष्ट दिए अपने श्रम द्वारा कमाया गया हूं बल्कि हमारे इस शुद्ध आहार में प्राणियों का भी कुछ हिस्सा हो उनके लिए भी हम कुछ कर सकें हमारी भारतीय प्रणाली में इतने शुद्ध संस्कार है कि यदि हम उनका पालन करें तो यह संसार स्वर्ग बन जाए हमारी भारतीय संस्कृति में जीव जंतुओं को भोजन कराने का प्रावधान है अपने भोजन में से कुछ हिस्सा निकाल कर उन्हें देने से उनकी आत्मा तृप्त होती है व उनके तृप्त आत्मा से जो सकारात्मक ऊर्जा निकलती है उससे लोगों का कल्याण हो जाता है ऐसे प्राणी जो मानव के ऊपर निर्भर हैं वैसे तो वे अपना भोजन स्वयं खोज लेते हैं परमपिता ईश्वर ने सबके लिए भोजन की व्यवस्था की है किंतु मानव होने के नाते यदि हम अपने शुद्ध आहार मैं से केवल एक रोटी गाय या किसी भी जानवर को देते हैं तो उसकी आत्मा को तृप्ति मिलती है यही हमारे मानवता होने की निशानी है ना की उस जानवर को मार कर अपना भोजन बना लेना यह अमानवीय कृत्य है मैंने यहां पर गाय का उदाहरण दिया क्योंकि भारतीय संस्कृति में गाय को बहुत महत्व दिया गया है वैसे तो प्रकृति के सारे प्राणी गाय बैल भैंस बकरा बकरी गधा घोड़ा ऊंट कुत्ता पक्षी यहां तक कि चींटी मछली इन सबको भोजन देने का प्रावधान हमारी भारतीय संस्कृति में है जिससे मानवता का कल्याण होता है और उनकी आत्मा से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा मानवता का भला करती है शुद्ध आहार शाकाहार ही है और वह भी श्रम द्वारा कमाया गया जिसे कमाने में किसी भी मानव को धोखा तकलीफ भ्रष्ट आचरण द्वारा ना कमाया गया हो मुफ्त में हराम में ना कमाए गया हूं वही शुद्ध आहार की श्रेणी में आता है श्रेणी में आता है लोगों की मानसिकता में स्वामियों परिवर्तन होने लगेगा लोगों की मानसिकता विकृत होने के कारणों में  के कारणों में  एक कारण  हमारे आहार की शुद्धता भी है  यह परंपरा हमारी संस्कृति से धीरे धीरे खत्म होती जा रही है जिसका परिणाम घर परिवार समाज और देश को भुगतना पड़ रहा है हराम की कमाई खाने किसी जीव जंतुओं को मारकर खाने से हमारी मानसिकता भ्रष्ट हो जाती है और हमारा आश्रम अशुद्ध हो जाता है हमारे मन में अशुद्ध विचार आने लगते हैं जिन्हें हम अपने आचरण में उतार कर भ्रष्ट आचरण के व्यक्ति बन जाते हैं जिसके कारण हमारा समाज घर परिवार और देश मैं नकारात्मक ऊर्जा के कारण अपराध भ्रष्टाचार धोखाधड़ी मारपीट चोरी डकैती जाती पाती की भावनाएं देवस्थान की आदतें मद्यपान की आदतें पनपती हैं जो शिवाय बर्बादी के और कुछ नहीं देती जिनका प्रणाम सदैव बुरा और बुरा होता है हमारे मन में शुद्ध विचार तभी आते हैं जब हम अपना जीवन यापन करने के लिए शुद्ध आहार की व्यवस्था करते हैं शुद्ध विचार मन का शुद्धिकरण लिखित और अमल में तालमेल बैठाना बैठता है और हम सदैव जो सच लिखा है उसका पालन करते हैं ऐसा कभी नहीं होता कि हमारे देश और समाज के नियम कुछ और कहते हो और हम करते कुछ और हो हमारे संविधान का ठीक ढंग से पालन नहीं होने का एक मुख्य कारण यह भी है और संविधान में जो भेदभाव की भावनाओं को उभारा गया है और हमेशा उस भेदभाव को बनाए रखा जाता है उसका मुख्य कारण भी यही है हराम की कमाई दूसरों दूसरे जीव जंतुओं को मारकर उन्हें अपना भोजन बनाने मद्यपान की आदतें मैं लोगों की मति भ्रष्ट कर दी है और उन्हें शिवाय भ्रष्टाचार भेदभाव और हराम की कमाई कमीशन खोरी धोखेबाजी कहीं से भी अर्थ की उपलब्धता और उसका दुरुपयोग जैसी सोच हमेशा उनके मन में बनी रहती है जिसके कारण आज हमारा पूरा समाज अस्त व्यस्त है समाज जातिगत संगठनों का नहीं होता समाज तो मां लोगों का होता है प्रदेश और देश भी उल्टे सीधे बयानों उल्टे सीधे कृतियों मिले हुए अधिकारों का मनमाने ढंग से उपयोग जातिगत धर्म का धर्म गत पंत गत ऊंच-नीच करनी में स्पष्ट दिखाई देती है और उसे कानूनी मान्यताएं भी प्रदान कर दी जाती हैं भ्रम की स्थितियां पैदा की जाती है पहले कुछ कहा जाता है बाद में कुछ कहा जाता है यदि आप पहले वाले का पालन करते हो तो जो बाद में कहा गया है उसमें आप थक जाते हो और अगर आप बाद में जो कहा गया है उसका पालन करते हो तो पहले जो कहा गया है वह तो मैं व्यस्त हूं मालूम पड़ता है जैसे हमारे संविधान में स्पष्ट लिखा है कि हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है यहां पर किसी भी नागरिक से जातिगत धर्मगढ़ पंचगन भेदभाव नहीं किया जावेगा शासन प्रणाली में भी स्पष्ट लेख है कि जनता का जनता पर जनता द्वारा शासन ही लोकतंत्र है पर वास्तव में ऐसा कहां है बाद में कुछ और कहा गया है और होता कुछ और है यह सब हमारे शुद्ध आहार और शुद्ध विचार ना होने का ही परिणाम है जब तक हमारा शुद्ध आहार नहीं होगा हमारी मानसिकता में परिवर्तन नहीं आ सकता और हमारा मान शुद्ध नहीं हो सकता हमारा शुद्धिकरण नहीं हो सकता लोग ऐसे ही कथनी और करनी में भेदभाव करके धर्म की स्थितियां पैदा करते रहेंगे जिसके कारण मानवता कलंकित होती रहेगी वक्त रहते समाज हित जनहित देशहित मैं और सब प्राणियों के हित में हमें अपनी जीवन प्रणाली में सुधार लाने की आवश्यकता है शुद्ध आहार और शुद्ध विचारों को अपने आचरण में समाहित करने की आवश्यकता है लोग भाषण तो देते हैं और आज के समय में भाषण कौन देता है यह तो आप भली-भांति जानते ही हैं कि संस्कार वार मनु किंतु हमारी करनी हमें संस्कारवान बनने से रोकती है यह हमारे कर्मों का ही प्रतिफल है