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अहमदाबाद। परम मंगलकारी परमात्मा का शासन हमें मिला है। इस परमात्मा के शासन में जो बात हमें बताई है। यदि हम उनकी बात ठीक तरह से समझ गए तो हमारे बेड़ापार हो जाएगा वरना जो बात बताई है। उसे नहीं समझने पर आप यदि सो वर्ष जी गए तो भी आपके वे सो वर्ष व्यर्थ ही है। हमें जो जैन धर्म मिला है, उसका हमें आनंद होना चाहिए। हम इसलिए आनंदित नहीं होते, क्योंकि हमें जैन धर्म का मूल्यांकन करना नहीं आया। उसकी सही कीमत समझ नहीं पाए।
मान लो, कोई व्यक्ति हीरे की अंगूठी पहनकर आया है सामने वाले व्यक्ति उस हीरे की अंगूठी को देखकर उसका सही मूल्यांकन नहीं कर पाता परंतु उसके हाथ में रही हुई हीरे की अंगूठी की चमक को देखकर खुश जरूर होता है। इसी तरह जैनधर्म की कीमत नहीं समझ पाया परंतु जैन धर्म मिला है उसका आनंद तो अवश्य होना ही चाहिए।
जैन जयति शासनम् तीर्थे बिराजित प्रखर प्रवचनकार, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है जीवन में सुख एवं दुख दोनों प्रकार के प्रसंग आएगें। चाहे दु:ख हो या सुख का प्रसंग हो मानवी को हरेक प्रसंग में प्रसन्नता पूर्वक रहना है। पाश्र्वनाथ भगवान के जीवन में भी कमठ ने परमात्मा पर उपसर्ग किया। परमात्मा जरा भी विचलित हुए बगैर कमठ को धर्म का सद्बोध करके सद्गति को पहुंचाया।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है हेमचंद्राचार्य महाराजा ने अपनी काव्य कृति में कमठ ने परमात्मा पर उपसर्ग देखकर परमात्मा को दु:ख दिया फिर भी कमठ का नाम पहले लिखकर धरणेन्द्र का बाद में लिखा। तब किसी व्यक्ति ने हेमचन्द्राचार्यजी महाराजा को सवाल किया आपने इस तरह से कमठ का नाम पहले क्यों लिखा? तब हेमचंद्रा चार्य जी महाराजा फरमाते है भैया। हरेक के जीवन का क्रम है कि दु:ख के बाद ही सुख आता है पहले दु:ख का अनुभव कर लो फिर सुख ही सुख है।
पूज्यश्री फरमाते है जीवन में हरेक क्षण में दु:ख के प्रसंग आते ही रहेंगे। हमें तैयारी पूर्वक हरेक प्रसंग का स्वीकार करके प्रसन्न रहना है। एक प्रसंग याद आता है। एक बार पति-पत्नी के बीच में झगड़ा हुआ। पत्नी ने गुस्से से पति को कह दिया, मैं पियर जा रहा हूं तब पति ने कहा, तुं जा रही है वह मेरा पुण्योदय है। पत्नी ओर ज्यादा गुस्से से बोली, मैं वापिस नहीं आऊंगी तब पति ने उसकी बात सुनकर कहा, ये मेरा महापुण्योदय है। पत्नी अब तो आग बबूला होकर कह उठी मैं मर जाऊंगी ओहो! तुं मर जाएगी वह तो मेरा महामहापुण्योदय है तब पत्नी ने धीरे से कहा, अब मैं मरूंगी ही नहीं तब पति कहता है यह मेरा पापोदय है।
जीवन में अनेक प्रकार के प्रसंग आएगें हमें उसका प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार करता है। मानव भव को प्राप्त किया है तो अपने जीवन में कुछ ऐसे कार्य कर दिखाओ कि आपकी अनुपस्थिति में लोग आपका उदाहरण  याद करें। एक भाई साहेब की मां बीमार पड़ी. उस धंधा तक छोड़ दिया। मां की सेवा को पहले पसंद देकर पैसा कमाना तक छोड़ दिया।
पूज्यश्री फरमाते है जैन धर्म पाया है कुछ ऐसे संकल्प करो कुछ ऐसे कार्य करो समाज में सोसायटी में लोग आपके कार्य के गुणगान करके याद करें। एक बार पूज्यश्री ने किसी युवान को पूछा आपको सबसे ज्यादा आनंद किसमें आता है? रसगुल्ला खाने में अथवा टी.वी. देखने में या तो फिर क्रिकेट खेलने में? तब युवान ने हमसे कहा, साहेब! आपने सुंदर बात की। दूसरों का भला करने में कुछ ओर ही आनंद आता है। आपके पास धन संपत्ति कुछ ज्यादा है तो उसका उपयोग परार्थ के लिए करना चाहिए। किसी को गोड गिफ्ट मधुरवाणी मिली हो तो अन्य को अपनी मधुर वाणी के द्वारा भी भक्ति में जोड़ सकते हो अथवा तो साक्षात् सरस्वती आपके पास हो तो दूसरों को पढ़ा लिखाकर भी उस सरस्वती का सदुपयोग कर सकते हो।
हमें जो संपत्ति मिली है वह संपत्ति भोगने के लिए नहीं अपितु त्याग के लिए है। शालिभद्र के पास अढ़लक संपत्ति थी उन्होंने एक ही झटके में पत्नी तता संपत्ति का त्याग करके संयम का मार्ग अपनाया। बस आप भी अपने जीवन में किसी न किसी प्रकार से दूसरों का भला करके शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।