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अहमदाबाद। आज हमारे परम उपकारी प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा का गच्छाधिपति पद का प्रसंग बहुत ही भव्य रूप से पूर्ण हुआ। इस कार्यक्रम का प्रारंभ सुबह 9.30 से हुआ तथा पूर्णाहूति दुपहर को 3.00 बजे हुई। वहां पर उपस्थित जनमेदिनी इस कार्यक्रम को खूब ही आनंद से देख रही थी। यह कार्यक्रम कुछ लंबा चला परंतु सभी भक्त वर्ग उस घडी का बड़े ही बेसब्री से इंतजार करते हुए कार्यक्रम को निहाल रही थी। आज के इस कार्यक्रम का माहौल-उत्साह टोप लेबल का था। इस प्रकार के ह्रदयोद्गार टोप लेबल पर बिराजित तपागच्छापति प.पू. मनोहर कीर्ति सागर सूरीश्वरजी महाराजा ने अपने उद्गार में कहा था। महोत्सव ही इतना टॉप लेवल का है तो उनके अन्य कार्य की तो बात ही क्या करनी?
तपागच्छाधिपति ने सभा को उद्बोधन करते हुए कहा कि पद प्रदान कर्ता पू. गुरूदेव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा जिनशासन के सर्वोच्च टॉप लेवल के प्रभावक, जीर्णोद्धारक, तीर्थोंद्धारक, जिनशासन में जैन फेर जैसे अनेक नव्य-भव्य-दिव्य आयोजन कर्ता, प्रबुद्धज्ञानी, सर्वतोमुखी प्रतिभाधारक है ही। इस प्रसंग पर उपस्थित समाज के टॉप लेवल के सिर्फ श्रीमंत ही नहीं बल्कि शिक्षणमंत्री भूपेन्द्र सिंह चूडासमा जैसे टोप लेवल के राजकीय व्यक्ति, जीरावला तीर्थ, नाकोडा तीर्थ, उवसग्गहरं तीर्थ बलेश्वर लब्धि विक्रम राजयश सूरीश्वर तीर्थ के ट्रस्टी गणों, मुंबई मद्रास हैदराबाद-सिकंदराबाद-सूरत-नवसारी तथा अहमदाबाद के अनेक संघ के भाविकों तथा टॉप लेवल के सुप्रसिद्ध संगीतकार नरेंद्र वाणी गोता तथा विनीत गेमावत जैसे दो-दो संगीतकारों ने संगीत के सूर से इस प्रसंझ को चार चांद लगाकर इस प्रसंग को ओर भी टॉप लेवल का कर दिया था।
यह भव्य प्रसंग जैनं जयति शासनम् तीर्थ के दानवीर श्री मीना बेन दर्शन भाई लट्ठा परिवार के भव्य प्रांगण में हुआ तथा इस महोत्सव के प्रमुख लाभार्थी दानवीर श्री महेंद्रबाई पोपटलाल मेहता परिवार ने लिया था जिन्होंने कुछ वर्ष पूर्व ही महेन्द्रपुरम् तीर्थ तथा छणप तीर्थ का निर्माण किया था। इस तीर्थ में प.पू.आ. भगवंत राजयश सूरीश्वरजी महाराजा के करकमलों से 800 प्रभु की एक साथ अंजनशलाका हुई थी।
आज इस प्रसंग में गच्छाधिपति गौतम स्वामी की प्रतिमा, पझावती माता की प्रतिमा तथा मंत्र पट्ट के अर्पण करने की ऊंची बोलीओं से सभा मंत्रमुग्ध तो हुई ही साथ ही एक ओर आश्चर्यजनक दान की गंगा से भी सभा विस्मित हो गई थी।
कहते है कोई लाखों, क्रोड रूपिया मनोहर कीर्तिसागर जैसे महापुरू नहीं मिलेंगे। पूज्यश्री की उनके साथ पूर्व रात्रि बात हुई उससे ज्ञात होता है कि उनके पास स्मृति का खजाना है। 93 वर्ष के आचार्य भगवंत जिस स्फूर्ति से कार्य करते है वह अजब का उत्साह साक्षात् नजर आता है।
अस्वस्थ होने के कारण गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी साहेब इस प्रसंग पर हाजिर न हो सके परंतु उन्होंने अपने स्थान से वीडियो रिकार्डिंग करवाकर अपना संदेश भिजवाया। पूज्यश्री इस पद को धारण कर रहे है उसकी उन्होंने खुशी व्यक्त की।
इस प्रसंग पर विद्वान पू. जंबूविजयजी के प्रशिष्य प.पू. पुंडारिकरत्न सूरीश्वरजी महाराजा आदि ठाणा तथा जयसुंदर महाराजा के शिष्यों भी पधारे। इस प्रसंग को देदीप्यमान करने के लिए पूज्यश्री के गुरूभ्राता वीरेश यश सूरी तथा पू. भाग्ययश सूरीश्वरजी महाराजा भी डोसा से उग्र विहार करके पधारे। स्थानक वासी के अग्र मुनिओं ने भी पूज्यश्री को शुभकामनाएं भेजी।
पूज्यश्री ने जनमेदिनी को उद्बोधन करते हुए फरमाया कि दीक्षा लेने के पूर्व मातर मां पू. लब्धि सूरीजी महाराजा का प्रथम बार दर्शन हुए थे। तभी उनका ह्रदय उनके प्रति समर्पित बन गया था। वर्णवाद-गुणानुवाद क्या होता है इसकी जानकारी पूज्यश्री को दादा गुरुदेव से ही मिली। पू.गुरूदेव ने उन्हें आशीष दिये कि जहां कई भी किसी भी समुदाय में कुछ भी अच्छा दिखे तो अनुमोदना करनी। शक्य हो तो सहाय भी करना। पूज्यश्री ने फरमाया जहां संप्रदाय या समुदाय में परस्पर मिलन की भावना नहीं होती है वह खिड़की बिगैर का गोडाउन है। घर नहीं। गच्छ में रहना पड़े तो गच्छवाद मे कभी नहीं पडना। आज अज्ञान तिमिर भास्कर ग्रंथ का उद्घाटन भी हुआ। कार्य अनेक थे मगर समय कम था। जन जन के मुख पर एक ही बात थी यह गच्छाधिपति पद प्रसंग इतना भव्य होगा उसकी कल्पना भी नहीं थी सचमुच यह प्रसंग एक इतिहास बन गया।